जिन्दगी से संवाद

पीर से मोहब्बत की बरकत,
मुरीद को ‘रूहानी अमीर’ बना देती है !

शिव शर्मा
पीर और मुरीद का रिश्ता रूहानी होता है। दोनो तरफ रूह है। इबादत रूहानी तो कृपा भी रूहानी। वहां वस्तु नहीं है। वस्तुवाद नहीं है। वहां धन-दौलत वाली अमीरी नहीं है। वहां तो रूहानी फकीरी है। यह रूहानी फकीरी ही रूहानी अमीरी है। फकीर का जिस पर दिल आ गया उसे रूहानी अमीरी बख्श देता है।
निजामुद्दीन औलिया कभी भी दिल्ली के किसी सुल्तान (धन दौलत व सत्ता के स्वामी) के पास नहीं गये। लेकिन अपने मुरीद खुसरो के लिए कह दिया – मै खुसरो के बिना जन्नत में नहीं जाऊंगा। उधर खुसरो एक कलाम में लिखते हैं कि – जो मे जानती बिसरत है सैया, घंुघटा में आग लगा देती। खुसरो ने बहुत बड़ी बात कह दी – यदि मुझे पता होता कि पीर साहब पर्दा फरमाने वाले हैं तो मै उनसे पहले ही खुद शरीर छोड़ देता। मै उनके लिए मर कर उनमें फना फिल् (अल्लाह) हो जाता। फिर थोड़े समय बाद खुसरो ने शरीर छोड़ दिया। उस मुरीद को काल ने नहीं मारा ; खुद उसने ही देह का त्याग कर दिया। उसने मुरीदी को बुलन्द कर दिया। मुरीदी को ‘अमर’ कर दिया। खुसरो के लिए उनके गुरु ही रसूल थे, गुरु ही अल्लाह थे। बीच में अन्य कोई नहीं। बीच में दुनिया थी ही नहीं। .
खुसरो बोले कि ‘घुंघटा में आग लगा देती’ अर्थात् बची हुई आयु की सीमा को तोड़ देता। उम्र के बंधन को मिटा देता। मौत संबंधी नियति के विधान (घुंघट) की मर्यादा भंग कर देता और मेरे औलिया में स्वयं को ‘दफन’ कर देता। इतनी बड़ी बात विश्व में अन्य किसी मुरीद ने नहीं कही – ऐसा पढने या सुनने में नहीं आया। खुसरो ने दिल्ली सल्तनत की अमीरी भी अपने गुरु के कदमों में छोड़ दी। वह केवल मुरीद रह गया, अन्य सारी छाप तिलक छोड़ दी थी। उसने कहा – जिस सावन में पिया घर ना हो, आग लगे उस सावन को अर्थात् जिस दुनिया में पीर मेरे साथ नहीं हो, वह दुनिया मेरे लिए व्यर्थ है। पीर के जाते ही उसने भी दुनिया छोड़ दी।
हमारे गुरुदेव भी कहते थे कि खुसरो जैसा मुरीद फिर कभी नहीं हुआ। उसके लिए निजामुद्दीन साहब ने कहा – यदि शरीअत (इस्लाम के नियमों की किताब) इजाजत देती तो मै कब्र में भी इस तुर्क को (खुसरो को) अपने साथ रखता। यही कृपा खुसरो के लिए रूहानी अमीरी में रूपांतरित हो गई। उसकी शायरी रूहानी। उसके शब्द रूहानी। उसकी गायकी रूहानी। उसकी सोच यहानी। उसका वजूद ही रूहानी हो गया। ऐसी मुरीदी को सलाम करते हुए हिंदुस्तान के कामिल शायर साहिर लुधियानवी साहब ने एक बार कहा था – अरे भाई ! किसी को दुनिया में कहीं कोई खुसरो मिले तो हमें बताना ; हम उसके घर की जियारत करेंगे। खुसरो का नाम व कलाम पूरी दुनिया में अमर हो गए।
हम जैसे दुनियावी मुरीदों को तो खुसरो का नाम बोलने का भी हक नहीं है। हम सब तो पीर के पास भिखारी बन कर जाते हैं। उस रूहानी शेख के लिए हमारे मन में मोहब्बत नहीं, वस्तुवादी मन्नतें होती हैं । कोई न कोई चीज मांग लेने की याचना होती है। हम जैसे शिष्य फनावादी नहीं भोगवादी होते हैं। अवसरवादी होते हैं। कामनावादी होते हैं। आडम्बर वादी होते हैं। ढकोसला वादी होते हैं। पीर के कदमों पर खुदी को मिटा देने वाली दिलेरी हम जैसे उपभोक्तावादियों में होती ही ही नहीं है। ।

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