लखीम पुर और कश्मीर में फ़र्क़ है

रास बिहारी गौड़
अजब कुतर्क के सहारे कुछ प्रयोजित आवाज़ें लखीमपुर में सत्ता-सुत के हाथों होने वाली हत्याओं को कश्मीर के आतंकी हमले से तोल रही हैं ..विपक्ष को कह रही हैं वह यू पी छोड़कर कश्मीर जाए…
प्रथम दृष्टया कोई भी हत्या किसी भी बचाव की हक़दार नहीं होती..उसके अनेक कारक होने के बावजूद स्थान विशेष की सत्ता और शासकीय व्यवस्था का दायित्व होता है कि वह उसके लिए सख़्त कदम उठाए..लेकिन देखने में आता है कि चालाक सत्ता अपना दायित्व दूसरों के गले मढ़ देती है….जैसा कि इन दिनों हो रहा है…।
जहाँ तक काशमीर का सवाल है वहाँ निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले आतंकवादियों के लिए किसी को कोई सहानुभूति नहीं है ..बल्कि सच तो ये हैं कि वर्तमान केंद्रीय सत्ता उनसे निपटने का सपना दिखाकर हमें नित नए नारे देती रही है..नोट बंदी से लेकर धारा 370 हटाने तक…। अब काशमीर सीधा केंद्र यानि गृह मंत्री के अधीन है ..और वहाँ क़ानून व्यवस्था पहले की ही तरह पंगु है तो दोष किसका है ..? सवाल गृह मंत्री, प्रधानमंत्री से होने चाहिए ..हम सवाल विपक्ष या उन आवाज़ों से कर रहे हैं जो लखीमपुर को कश्मीर होने से बचा रही हैं.।
यह सच है कि आतंकवाद वैश्विक समस्या है ..उससे निपटने के लिए समय और संसाधन अलग तरह के चाहिए..इसलिए उसे देश के दूसरे हिस्से की किसी हिंसा से नहीं जोड़ सकते..।
अब बात करते हैं लखीमपुर खीरी की जिसके सारे सबूत और तथ्य चीख-चीख कर सत्ता की नीयत बता रहे है ..बेशर्मी की हद ये है कि देश से उस ओर आँखे मुँदने की ज़िद की जा रही है …उसके बरक्स काशमीर को खड़ा कर छद्म राष्ट्रवाद का नारा उछाला जा रहा है …।
सच भी है सत्ता हमारे विवेक और याददास्त के भरोसे निश्चिंत है ..। वह जानती है मीडिया और अज्ञानी शोर में यह सब कुछ उसी तरह दब जाएगा जैसे हाथरस की लाश दब गई, गंगा तैरती लाशें खो गई।
वैसे ही हम सवाल पूछना भूल चुके हैं..हम सवाल नहीं ,सवाल पूछने वाले का चेहरा देखते हैं..। *हमारे लिए किसी भी मौत का मतलब ..हमारे बच जाने भर से है …।*

*रास बिहारी गौड़*

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