Astrology quiz questions and answers

१. करोड़ों-अरबों मील की दूरी पर स्थित ग्रह सचमुच जड़-चेतन पर प्रभाव डालता है ?

संगीता पुरी
दिन-रात का होना और मौसम का बदलना पृथ्वी सापेक्ष सूर्य के कारण है। कछुए तथा मछलियां खास मौसम में अण्डे देती हैं। बड़े वृक्षों में सूर्य के वातावरण में विस्फोट के अनुरुप ही उसके छल्ले में विस्तार होता है। कुछ पुष्प सूर्योदय के पश्चात् ही प्रस्फुटित होते हैं और सूर्यास्त होते ही मुरझा जाते हैं तो कुछ शाम के समय ही प्रस्फुटित होते हैं। 15 मार्च से 15 अप्रैल के मध्य के समय को पतझड़ का मौसम कहते हैं, प्रायः सभी पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं और उनकी जगह नए पत्ते आ जाते हैं! चकवा पक्षी चंद्रमा के प्रति पूर्ण समर्पित होते हैं। बिल्ली की पुतली चंद्रमा के प्रकाशमान भाग के समानुपाती ही खुली होती है। पूर्णमासी और अमावस्या को समुद्र में बड़ा ज्वारभाटा और दोनो अष्टमी को लघु ज्वारभाटा उत्पन्न होता है। पूर्णमासी के समय अधिकांश व्यक्तियों का मनोवैज्ञानिक संतुलन बिगड़ता है , अमावस के समय बहुत सारे लोग अपेक्षाकृत अधिक मानसिक अशांति महसूस करते हैं। लोग सूर्य और चंद्रमा के प्रभाव को स्वीकार भी करते हैं , किन्तु अन्य ग्रहों के प्रभाव को वे स्वीकार नहीं करते , क्योंकि ज्योतिषीय ज्ञान के अभाव में वे इसे समझ नहीं पाते !

२. उस जानकारी से क्या लाभ जो विश्व को अकर्मण्य बना दे ?
बुरे समय की जानकारी मनुष्य को कमजोर नहीं बनाती , उसका आत्मविश्वास नहीं छीनती। यदि कोई कमजोर पड़ जाता है , तो वह अपनी कमजोर चिंतन-शैली और कार्यक्रमों की वजह से। उसके आत्मविश्वास के गिरने का कारण जाने-अनजाने किया गया उसका दुष्कर्म हो सकता है , उसका संदिग्ध चरित्र हो सकता है , उसका गलत निर्णय हो सकता है , उसकी बुरी भावनाएं हो सकती है। जो सज्जन होते हैं , उनके लिए बुरे समय और अच्छे समय में बहुत कम अंतर रह जाता है। वो किसी की बुराई नहीं करते , उनका बुरा कैसे हो सकता है ? जब मनुष्य किसी एक क्षेत्र में बहुत ऊॅचाई पर पहुंच जाता है , तो जीवन के शेष संदर्भों की सफलता या विफलता उसे बहुत कम ही प्रभावित कर पाती है। किसी संदर्भ में बड़ी ऊॅचाइयों को स्पर्श करनेवाला व्यक्ति का दृष्टिकोण एक दार्शनिक की तरह ही विराट हो जाता है और सभी प्रकार के सुख-दुख को महसूस करने का उसका तरीका बिल्कुल भिन्न होता है। इसलिए कहा गा है– ‘ ज्ञानी भुक्ते ज्ञान ते , मूरख भुक्ते रोय ’

३. क्या भावी अनिष्टकर घटनाओं को टाला जा सकता है ?
किसी भी प्रकार का सुख या दुख हमारी कार्यशैली ,संसाधन-साध्य के तालमेल , चिंतनधारा या सुख और यश की चाहत के सापेक्ष होता है। सबका संतुलन हो तो परिणाम अनुकूल होगा तथा सुख की प्राप्ति होगी , विपरीत स्थिति में यानि असंतुलन होने पर परिणाम प्रतिकूल और दुख की प्राप्ति होगी। इस तरह कोई व्यक्ति स्वयं अपने सुख या दुख का भागी बन जाता है। हर युग में व्यक्ति को कष्ट हुआ है। हरिश्चंद्र , राम , युधिष्ठिर – सभी को बुरे ग्रहों के प्रभाव के दौर से गुजरना पड़ा है। सत्युग में राजा हरिश्चंद्र ने स्वप्न में सारी संपत्ति और राजपाट एक ब्राह्मण को दान में दे दिया था और फिर दक्षिणा की आपूर्ति के लिए उन्हें श्मशान-घाट में चैकीदारी करनी पड़ी थी। सत्यव्रती थे , सत्यपालन में उन्हें सफलता मिली , यशस्वी बनें। त्रेतायुग में भगवान राम को राज्याभिषेक की जगह वनवास मिला , वन में सीता का अपहरण हुआ , रावण से युद्ध करना पड़ा । संपूर्ण जीवन संघर्षमय था , फिर भी हर क्षण उन्होनें मर्यादा की रक्षा की , अतः मर्यादा पुरुषोत्तम राम बन भगवान बन गए। द्वापर में युधिष्ठिर को वनवास मिला , धर्मव्रती थे , धर्म का पालन करते रहें , धर्मराज कहलाए , यशस्वी बनें। इतिहासकाल में भी महाराणा प्रताप को अपने जीवनकाल के अधिकांश समय जंगलों की खाक छाननी पड़ी , घास की रोटी खाना कबूल हुआ , परंतु आन और शान की रक्षा करते रहे। निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि जो व्यक्ति उच्च आदर्शों के लिए काम करते हैं , उनके सहयोगी भी हर युग में बनें होते हैं। जो चरित्रवान होते हैं , जिनके लक्ष्य उॅचे होते हैं , उन्हें बुरे समय में बुजुर्गों का आशीर्वाद प्राप्त होता है , गुरु की कृपा उनपर बनी होती है।

४. सुख या दुःख क्या है ?

यशस्वी का गंभीर लगाव उसके यश से होता है , यश लांछित होने पर उसे कष्ट होता है। धनी का लगाव उसके धन से होता है , धन नष्ट होने पर उसे कष्ट होता है। किन्तु सन्यासी या दरिद्र का लोटा या लंगोटा ही कहीं खो जाए तो उसे कष्ट होता है। निष्कर्षतः जिससे हमारा आकर्षण या लगाव होता है , उससे बिलगाव ही कष्ट का कारण बनता है। इस प्रकार के कष्ट के दूर करने के लिए यह समझदारी पर्याप्त होगा कि ‘ जो हमारा है , वह हमसे विलग रह ही नहीं सकता और जो हमारा नहीं है , वह हमारे साथ रह ही नहीं सकता।’

५. ‘वार’ पर आधारित फलित और कर्मकाण्ड का औचित्य क्या है ?
पंचांग में तिथि , नक्षत्र , योग और करण की चर्चा रहती है। ये सभी ग्रहों की स्थिति पर आधारित हैं। किसी ज्योतिषी को बहुत दिनों तक अॅधेरी कोठरी में बंद कर दिया जाए , ताकि महीने और दिनों के बीतने की कोई सूचना उसके पास नहीं हो । कुछ महीनों बाद जिस दिन उसे आसमान को निहारने का मौका मिल जाएगा , केवल सूर्य और चंद्रमा की स्थिति को देखकर वह समझ जाएगा कि उस दिन कौन सी तिथि है , कौन से नक्षत्र में चंद्रमा है , सामान्य गणना से वह योग और करण की भी जानकारी प्राप्त कर सकेगा , किन्तु उसे सप्ताह के दिन की जानकारी कदापि संभव नहीं हो पाएगी , ऐसा इसलिए क्योंकि सूर्य , चंद्रमा या अन्य ग्रहों की स्थिति के सापेक्ष सप्‍ताह के दिनों का नामकरण नहीं है। ज्योतिष ग्रंथों में लिखा है——-

सोम शनिश्चर पूरब न चालू।

मंगल बुध उत्तर दिशि कालू।

यानि सोमवार और शनिवार को पूर्व दिशा में नहीं जाना चाहिए , किन्तु सब लोग इस बात से भिज्ञ हैं कि प्रत्येक दिन की तरह सोमवार और शनिवार को पूरब दिशा से चलनेवाली गाडि़यों की संख्या उतनी ही होती है , जितनी अन्य दिनों में। इन अंधविश्वासों को हम हजारो वर्षों से ढोते आ रहें हैं। आज के वैज्ञानिक युग में इस प्रकार की बातें आम लोगों के बीच कौतुहल , हास्य और व्यंग्य का कारण बनतीं हैं। इन नियमों को मानने के लिए कोई तैयार नहीं है। किन्तु ज्योतिषी बंधुओं को इस प्रकार की कमजोरियों को भी स्वीकार करने में हिचकिचाहट नहीं है। अब तक ज्योतिष के जिस स्वरुप को उभारा गया है , उससे आम आदमी संकट के समय ग्रहों के भय से भयभीत होते है । जिस दिन ज्योतिष के वैज्ञानिक स्वरुप को वे जान जाएंगे , वे निडर और निश्चिंत दिखाई पड़ेंगे।

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