ये होते हैं मूल नक्षत्र
=============
ज्योतिष में कुल मिलाकर छह मूल नक्षत्र बताए गए हैं। इनमें से मूल, ज्येष्ठा, आश्लेषा को मुख्य मूल नक्षत्र माना गया है तो वहीं अश्विनी, रेवती और मघा को सहायक मूल नक्षत्र माना गया है। जो बच्चा मूल नक्षत्र में जन्म लेता है, उसके स्वभाव और सेहत पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। माना जाता है कि 8 वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का विशेष प्रभाव नहीं रह जाता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले शिशु की सेहत संवेदनशील होती है और माना जाता है कि पिता को नवजात का मुख नहीं देखना चाहिए लेकिन इसका निर्णय उस समय कुंडली की स्थिति के अनुसार किया जाता है। यदि किसी बच्चे का जन्म मूल नक्षत्रमें होता है तो यह देखा जाता है कि बच्चे के जन्म कि स्थिति क्या है उसे किस चीज से समस्या हो सकती है। इसका निर्धारण माता पिता की कुंडली देखकर भी किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार यदि बच्चे का गुरु और चंद्र मजबूत है और पिता एवं परिजनों के ग्रहों की स्थिति अनुकूल है तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है।
राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9611312076
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।