सर्वमान्यऔर सर्वोच्च निर्णय शांत चित्त ठण्डे दिमाग से हीलिये जा सकते हैं। महादेव के मस्तक पर चंद्रमा और गंगा का होना इस बात का संकेत हैकि मस्तिष्क और दिमाग को सदा शीतल रखो। चन्द्रमा और गंगाजल दोनों में असीम शीतलताहै। भोले नाथ तामसी प्रवृत्ति का त्याग और अपने अंतर्मनसे पूर्ण नीतियों का बहिष्कार करने, दीन हीनों, सेवक दास को प्रेम औरआदर प्रदान करने का भी एक अनूठा उदाहरण स्थापित किया। अपने विवाह में उन्होंनेदहेज न लेकर पर्वतराज की कन्या का वरण किया। देवों और ऋषियों की भांति अपने गणों, भूत प्रेतों को भीसम्मान बारात में साथ चलने का अवसर दिया।चित्त की एकाग्रता के लिये ध्यान विशुद्धभारतीय वैज्ञानिक पद्धति है। भगवान शिव का ध्यान मग्न होना यह प्रकट करता है किउनका अधिकांश समय परिवार एवं जगत के कल्याण के चिंतन करने में बीतता है।परिवारसंतुलन की पारिवारिक सुखों का मूल आधार है। ‘ नीलकंठ माहादेव हम शिव की उपासना भक्ति करते हुए सुखमय स्वस्थ जीवन का आनन्द लेने के लिए उनके गुणों सेप्रेरणा लेनी चाहिए और उसी के अनुरूप जीवन जीना चाहिए | नीलकंठ महादेव की स्तुति उनके मन्त्र ॐ शिवाय नम: ॐत्रिनेत्राय नम: .ॐ इन्द्रमुखाय नम:ॐश्री कंठाय नमः से निरंतर करना चाहिए | भोलेनाथ जितने रहस्यमयी हैं उतनी ही उनकीवेश-भूषा भी अनूठी ही है इसी के साथ भोले शंकर से जुड़े तथ्य भी उतने ही विचित्र औरअनोखे हैं। भोलेनाथ शिव जी श्मेंमाशन में निवास करते हैं,भोलेनाथगले में नाग धारण करते हैं, भांग व धतूरा ग्रहणकरते हैं। सनातन धर्मी फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी यानी 18 फरवरी 2023 कोशिवरात्रि धूमधाम से मनाएंगे | फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को ही शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है ?जनसाधारणके मन में सवाल उत्पन्न होता है कि क्यों फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशीको शिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है ? धार्मिक मान्यताओं केमुताबिक ऐसा माना जाता है कि सृष्टि की रचना इसी दिन हुई थी । मध्य रात्रि मेंभगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था । ईशान संहिता के अनुसारफाल्गुन चतुर्दशी की अर्द्धरात्रि में भगवान शंकर लिंग के रूप में अवतरित हुए ।चतुर्दशी तिथि के महानिशीथ काल में महेश्वर के निराकार ब्रह्म स्वरूप प्रतीकशिवलिंग का अविभार्व होने से भी यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से जानी जाती है |इसीदिन,भगवानविष्णु व ब्रह्मा के समक्ष सबसे पहले शिव का अत्यंत प्रकाशवान स्वरूप प्रकट हुआ था। कहा जाता है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और आदिशक्ति का विवाह हुआ था।मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही समुद्र मंथन के दौरान कालकेतु विषनिकला था।भगवान शिव ने संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा के लिए स्वयं ही सारा विष पीलिया था। इससे उनका गला नीला पड़ गया और तभी से शिवजी को नीलकंठ के नाम से जानाजाता है।
भोले नाथ को सांसारिक होते हुये भी श्मशानका निवासी बोला जाता है इसके पीछे भी लाइफ मैनेजमेंट का महत्वपूर्ण रहस्य छिपा है।जानिये कैसे ? सच्चाई तो यही है कि संसार मोह-माया काप्रतीक है वहीं दुसरी तरफ श्मशान वैराग्य का प्रतीक है । प्रभु शिव कहते हैं किआदमी को संसार में रहते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने चाहिए वहीं साथ साथ मोह-मायासे दूर भी रहना चाहिये। क्योंकि शरीर और संसार दोनों ही नाशवान है। एक न एक दिन यहसब कुछ नष्ट होने वाला है। इसलिए संसार में रहते हुए भी आदमी को किसी से मोह नहींरखते हुए अपने कर्तव्य पूरे करने के साथ साथ एक बैरागी की तरह जीना चाहिये। मन केअंदर सवाल उठता है कि शिवलिंग मंदिरों में बाहर क्यों होता है ?निसंदेहभोले नाथ जन साधारण के देवता हैं, इसीलिए भोलेनाथ वहांरहते हैं जहाँ छोटे बड़े, जवान बुजुर्ग आसानी सेपहुंच सके | इसी मान्यता के कारण शिवलिंग को मन्दिरोंमें बाहर ही स्थापित किया जाता है जिससे बच्चे बूढे जवान जो भी जाए शिवलिंग कोछूकर,गलेमिल कर या फिर भगवान् के पैरों में पड़कर अपना दुखड़ा सुना कर हल्के हो सकते हैं। |इसीवजह से शिवजी अकेले ही वो देव हैं जो गर्भ गृह में भक्तों को दूर से ही दर्शन देतेहैं |शिवजीको भोग लगाने और अर्पण करने के लिए कुछ भी नहीं हो तो भक्त उन्हें पत्ता,फूल,याअंजलि भर के भोले नाथ को खुश कर सकता और उनकी पूजा अर्चना कर सकता है |आईये जाने भोलेनाथ शिवजी की पूजा-अर्चनामें बेलपत्र और जल क्यों चढ़ाया जाता है ? निसंदेह बेलपत्र भगवानशिव को बेहद प्रिय है और इसलिएशिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाए बिना शिव की पूजा कोपूर्ण नहीं माना जाती है | बेलपत्र में तीनपत्तियां हैं जिसको लेकर कई तरह की धारणाएं विध्यमान हैं |बेलपत्रमें तीन पत्तियां को त्रिदेव (सृजन, पालन और विनाश के देवब्रह्मा,विष्णुऔर शिव) माना गया है तो कहीं सत्व, रज और तम गुण कापरियाचक माना जाता है | ध्यान देने योग्य बातहै कि कहीं बेलपत्र में तीन पतियों को तीन आदि ध्वनियां जिनकी सम्मिलित गूंज से ऊंबनता है का प्रतीक माना गया है | बेलपत्र की इन तीनपत्तियों को महादेव त्रिनेत्र और भोलेनाथ के हथियार त्रिशूल का भी प्रतीक मानाजाता है |शिवलिंगपर बेलपत्र चढ़ाने से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुयी है |समुद्रमंथन के समय जब विष निकला तो भगवान महादेव ने पूरी सृष्टि को बचाने के लिए ही इसविष को पी कर अपने कंठ में धारण कर लिया जिसके के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गयाऔर उनका पूरा शरीर अत्यधिक गर्म हो गया जिसकी वजह से आसपास का वातावरण भी जलने लग |जाननेलायक बात है कि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है इसलिए सभी देवी देवताओं नेबेलपत्र शिवजी को खिलाना शुरू कर दिया था | बेलपत्र के साथ साथ शिवको शीतल रखने के लिए उन पर जल भी अर्पित करने के पीछे रहस्य यह है कि बेलपत्र औरजल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजीपर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा शुरू हो गई | शिवलिंग पर हमेशा तीनपत्तियों वाला ही अर्पित करना चाहिये एवं बेलपत्र चढ़ाते समय ‘ॐनमः शिवाय’ मंत्र का जाप करना जरूरी है |जानिये शिव को महादेव क्योंकहते हैं ? मनुष्य को बड़ा या महान बनने के लिएत्याग,तपस्या,धीरज,उदारताऔर सहनशीलता की आवश्यकता होतीहै। विष को अपने भीतर ही सहेज कर आश्रितों के लिएअमृत देने वाले होने से एवंविरोधों, विषमताओं के मध्यसंतुलन रखते हुए अपने विशालकाय परिवारको एक बना रखने की शक्ति रखने वाले शिव हीमहादेव हैं। भांग-धतूरे को भगवान शिवजी पर क्यों चढ़ायाजाता है ? भोले नाथ को आक,धतूरा,भांगआदि शिवको चढ़ाने की जो परिपाटी है, उसके पीछे यही तथ्यछिपा है किप्रत्येक वस्तु और व्यक्तिके अंदर अच्छे-बुरे दोनोंपहलू होते हैं, इन नशीले और विषाक्त्त पदार्थोंको शिव को अर्पित करने काअर्थ हुआ उनके दूवारा शिव-शुभ (औषधीय गुण) को स्वीकारकरना किन्तु उनकी अशुभ-व्यसनप्रवर्ती का त्याग कर देना |लाइफमैनेजमेंट के अनुसार, भगवान शिव कोभांग धतूराचढ़ाने का अर्थ है अपनी बुराइयों को भगवान को समर्पित करना। यानी अगर आपकिसी प्रकारका नशा करते हैं तो इसे भगवान को अर्पित करे दें और भविष्य में कभी भीनशीलेपदार्थों का सेवन न करने का संकल्प लें। ऐसा करने से भगवान की कृपा आप परबनी रहेगीऔर जीवन सुखमय होगा। आदिकाल से लाइफ मैनेजमेंट के सर्वश्रेष्ट गुरु भोलेनाथ सेजुड़े रोचक रहस्य पार्ट 5शिवजी केवल मृगछाल हीक्यों धारण करते हैं ? निसंदेहसमाज में वो ही व्यक्ति वंदनीय होता हैं जो अपरिग्रही हो जिसके जीवन संसार मेंशांति स्थापित करने के लिएहो | महावीर स्वामी से हजारोंसाल पहिले भोलेनाथ ने अपरिग्रही बनने का सन्देश देते हुए खुद के शरीर पर मात्रमृगछाल धारण किया क्योंकि केवल मृगछाल धारण करना अपरिग्रह का प्रतीक है |अपरिग्रहीवो होता है जो आवश्यकता से अधिक मात्रा मे धन वस्तुओं का संग्रह नहीं करता है |परिग्रहएक प्रकार का पाप है, क्योंकि किसी वस्तु कापरिग्रह करने का अर्थ हुआ कि दूसरों को उस वस्तु से वंचित करना |निसंदेहशिवसर्व समाज के सर्वमान्य देवता हैं | शिवरात्रि व्रत मनानेका अधिकार ब्राह्मणसे लेकर चंडाल तक सभी को है| भोले बाबा के लिए सब एकसमान हैं | भगवान शिवमहायोगी भी कहलाते हैं,उन्होंनेयोग साधना के द्वारा अपने जीवन को पवित्र कियाहै, वेअसीमित गुणों के अक्षय भंडार हैं |
देवों के देव महादेव कावाहन नंदी बैल क्यों ?जहाँ बैल को खामोश एवंउत्तम चरित्र समर्पण भाव वालाबताया गया है, वहीं दुसरी तरफ बैल बलऔर शक्ति का भी प्रतीक है। बैल जब क्रोधित होता है तो सिंह से भी भिड़ लेता है।सुमेरियन,बेबीलोनिया,असीरि याऔर सिंधुघाटी की खुदाई में भी बैल की मूर्ति पाई गई संसार की लगभग सभी प्राचीनसभ्यताओं में बैल को महत्व दिया गया है । निसंदेह भारत में भी बैल खेती के लिए हलमें जोतेजाने वाला एक महत्वपूर्ण पशु रहा है। जिस तरह गायों में कामधेनु कोश्रेष्ठ माना जाता है उसी प्रकार बैलों में नंदी श्रेष्ठ है। यही सभी कारण रहे हैंजिसके कारणभगवान शिव ने बैल को अपना वाहन बनाया। पौराणिक कथा अनुसार शिलाद ऋषि नेशिव कीतपस्या के बाद नंदी को पुत्र रूप में पाया था। नंदी को उन्होंने वेद आदिसमस्त ग्रंथों का ज्ञान प्रदान किया। एक दिन शिलाद ऋषि के आश्रम में मित्र और वरुणनामके दो दिव्य संत पधारे और नंदी ने पिता की आज्ञा से उनकी खुब सेवा की जब वेजाने लगे तो उन्होंने ऋषि को तो लंबी उम्र और खुशहाल जीवन का आशीर्वाद दिया लेकिननंदीको नहीं। तब शिलाद ऋषि ने उनसे पूछा कि उन्होंने नंदी को आशीर्वाद क्यों नहींदिया?तबसंतों ने कहा कि नंदी अल्पायु है। यह सुनकर शिलाद ऋषि चिंतित हो गए। पिता की चिंताको नंदीने भांप कर पूछा क्या बात है तो पिता ने कहा कि तुम्हारी अल्पायु के बारेमें संतकह गए हैं इसीलिए चिंतित हूं। यह सुनकर नंदी हंसने लगा और कहने लगा कि आपनेमुझेभगवान शिव की कृपा से पाया है तो मेरी उम्र की रक्षा भी वहीं करेंगे आप क्योंनाहकचिंता करते हैं। इतना कहते ही नंदी भुवन नदी के किनारे शिव की तपस्या करने केलिएचले गए। कठोर तप के बाद शिवजी प्रकट हुए और कहा वरदान मांगों वत्स। तब नंदी केकहाकि मैं जिंदगी भर आपके ही सानिध्य में रहना चाहता हूं। नंदी के समर्पण सेप्रसन्न होकर भगवान शिव ने नंदी को पहले अपने गले लगाया और उन्हें बैल का चेहरादेकर उसको अपने वाहन, अपना दोस्त,अपनेगणों में सर्वोत्तम के रूप में स्वीकार कर लिया।शिवजी के परिवार में जबबिच्छू ,बैलऔर सिंह ,मयूरएवं सर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणी भी प्रेमपूर्वक साथसाथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तो क्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसीभेदभाव के गिरे हुओं को , पिछड़े हुओं को ,विभिन्नधर्मों के अनुयायियों को साथ लेकर नहीं चल सकते हैं ? यहभी सत्य कि कुछ धर्मा स्वार्थी पथभ्रष्टतथाकथित धार्मिकइन्सान मौकामिलने पर अपने निज स्वार्थ के खातिर समाज मेंसांप्रदायिक सद्दभावको नष्ट करनेके अंदरशामिल हो जाते है|हमसभी आत्म चिंतन करें जब शिवजीके परिवार में विरोधी स्वभाव के प्राणी प्रेम पूर्वकसाथ साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं तोक्यों नहीं हम हमारे समाज एवं देश में बिना किसी भेद भाव के गिरे हुओं को ,पिछड़ेहुओं को ,विभिन्नधर्मोंके अनुयायियों को साथ लेकर चल सकते हैं ? यहभी सत्यकि कुछ धर्मांध स्वार्थी पथभ्रष्टतथाकथित धार्मिकमनुष्य मौकामिलनेपर अपने निज स्वार्थ के खातिर समाज मेंसांप्रदायिक सद्दभावको नष्ट करनेके अंदरशामिल हो जाते है|शिवरात्रीके पावन पर्व हम सभी सनातन धर्मी भारत वाशी संकल्प ले कि हम समाज केविभिन्नधर्मालंबी लोगोंके साथ मिलजुल कर रहेंगे एकदुसरे का सम्मान करके प्रेम पूर्ण समंध बनायेगें |समाजकेअंदर ऊँच नीच का भेदभाव मिटाने के लिये काम करेंगे | आदिकालके सर्व श्रेस्ष्ट मेनेजमेंट गुरु भोलेनाथ अपने परिवार के अंदर निवास करनेवालेविपरीत स्वभाव वाले प्राणी बिच्छू,बैलऔर सिंह ,मयूरएवंसर्प और चूहा जैसे घोर विरोधी स्वभाव के प्राणियों के साथ प्रेमपूर्वक रहते हैंतोहम विभिन्न धर्मों के अनुयायियों हिदू मुसलमानसिख ईसाई फ़ारसी जैन देशवासियों को साथ लेकर क्यों नहीं जीवन व्यापन कर सकते हैं ? सही मायने में भगवान शिवकी सच्ची पूजा आराधना तभी होगीजब हम उनकी शिक्षाओं को जीवन के अंदर धारण करके मिलजुल करप्रेमपूर्वक एक परिवारकी भातीं रहगें | ॐनमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय,ॐनमः शिवाय परिवार संतुलन की पारिवारिक सुखों का मूलआधार है। ‘हमदो हमारे दो एवं छोटा परिवार सुखी परिवार’ काशाश्वत प्रतीक है शिव जी के दो पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय हैं।सुखी औरसम्पन्न परिवार ले मुखिया का सबसे बड़ा गुणयह होना चाहिये कि वह अपने सुख से अधिक अपने परिजनों के सुख की चिन्ता करे औ रइसकेनिमित्त खुद की सुख सविधा त्याग करे। मनुष्य के जीवन में तीन मूल जरूरते रोटी,कपड़ा और मकान ही होते है । भगवान शिव नेइन तीनों ही चीजों की समस्त सुविधाएं अपने परिवार को देकर,स्वयं सात्विक जीवन अपनाया है। उन्होंनेपरिवार के लोगों के लिए नाना प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजनों,बहुमूल्य वस्त्रों और भव्य भवनों कीव्यवस्था की है। उनका अपना आहार बना आक, धतूरा,बेल पत्र,वस्त्र बना बाघम्बर और निवास स्थान बनी श्मशानभूमि।
जिस परिवार में दिन रातकलह मची हो,ईर्ष्या, द्वेष, वैर, स्पर्धा का बोल बाला हो, वह परिवार नर्क बन जाताहै। स्वर्ग वहाँ है जहाँ एकता, प्रेम और शांति हो। अबदेखिये शिव का वाहन बैल, माता उमा का वाहन सिंह, शिव का कंठहार सर्प, श्री गणेश का वाहन मूषकऔर कार्तिक का वाहन मयूर। सब आपस में एक दूसरे के पुश्तैनी जानी दुशमन है। मगर वाहरे शिव का प्रताप! सबको प्रेम और एकता के ऐसे धागे में बांध रखा है कि वे आपस मेंहिलमिल कर रहते हैं।
सर्वमान्यऔर सर्वोच्च निर्णय शांत चित्त ठण्डे दिमाग से हीलिये जा सकते हैं। महादेव के मस्तक पर दूज के चंद्रमा और गंगा का होना इस बात का संकेत हैकि मस्तिष्क और दिमाग को सदा शीतल रखो। चन्द्रमा और गंगाजल दोनों में असीम शीतलताहै। भोले नाथ तामसी प्रवृत्ति का त्याग और अपने अंतर्मनसे पूर्ण नीतियों का बहिष्कार करने, दीन हीनों, सेवक दास को प्रेम औरआदर प्रदान करने का भी एक अनूठा उदाहरण स्थापित किया। अपने विवाह में उन्होंने ने लेकर पर्वतराज की कन्या का वरण किया। देवों और ऋषियों की भांति अपने गणों, भूत प्रेतों को भीसम्मान बारात में साथ चलने का अवसर दिया।चित्त की एकाग्रता के लिये ध्यान विशुद्धभारतीय वैज्ञानिक पद्धति है। भगवान शिव का ध्यान मग्न होना यह प्रकट करता है किउनका अधिकांश समय परिवार एवं जगत के कल्याण के चिंतन करने में बीतता है।परिवारसंतुलन की पारिवारिक सुखों का मूल आधार है। ‘ सनातन धर्मी भगवान की साकार और निराकार रूप भक्ति भाव के साथ पूजा अर्चना आराधना करते हैं | साकार रूप में शिव जी की देवों के देव महादेव नीलकंठ महादेव , भोले नाथ आदि रूपों में पूजा अर्चना करते है | शिव जी के मस्तक पर अर्ध चन्द्रमा दर्शाता है कि अर्ध चन्द्रमा धीमे धीमे अपने आकार मे विस्तार करके पूर्णिमा को विशाल आकार प्राप्त करके समस्त धरती के प्राणियों को शीतलता स्नेह प्रेम का अमृत पान करवाता है | इसीलिए मनुष्य को महादेव के निराकार रूप में पूजा अर्चना करते हुए जीव निर्जीव पेड़ पोधे मे सदेव उपस्तिथि भगवान शिव को अनुभव करना चाहिए और शिव बन की प्रतेयक वस्तु मे शिव ही उपस्थित है ऐसा मान कर उनकी इस विराट स्वरूप को प्रतिक्षण देखना चाहिए और शिवमय बन जाना चाहिए , ऐसा करने पर हम सभी के अंदर शिव को देखगें और सभी को अपना स्नेह प्यार सम्मान दे कर खुद का और लोगो का जीवन सुखमय मनाने में सफल होंगे | शिव शिव का निरंतर स्मरण करें | हम शिव की उपासना भक्ति करते हुए सुखमय स्वस्थ जीवन का आनन्द लेने के लिए उनके गुणों सेप्रेरणा लेनी चाहिए और उसी के अनुरूप जीवन जीना चाहिए | नीलकंठ महादेव की स्तुति उनके मन्त्र ॐ शिवाय नम: ॐत्रिनेत्राय नम: .ॐ इन्द्रमुखाय नम:ॐश्री कंठाय नमः से निरंतर करना चाहिए |
:डा जे के गर्गपूर्व संयुक्त निदेशककालेज शिक्षा जयपुर