Dinesh Gargजीवन में कुछ समय ऐसा भी आता है जब हम निराशा से भर जाते है,चाहे वह रोगअवस्था हो,पारिवारिक समस्या हो या अर्थ समस्या हो हमें हमारा भविष्य अध्ंाकारमय नजर आने लगता है और ऐसे समय में हम मायूसी का दामन थाम कर परिवार से किनारा करना प्रारंभ कर लेते है या फिर कुछ अनहोनी करने का विचार मन में ले आते है। यह उचित भी तो नहीं है। समस्या किसके नहीं आती,आना स्वाभाविक भी है लेकिन उससे पार पा लेना ही तो जीवन है। निराशा के समय यह चिंतन कर लेना चाहिए कि हमारी जिदंगी में बहुत सारे लोग हमसे जुड़े हुए है। उन्हें हमारी खुशी का हर पल इंतजार रहता है। हमारे बच्चे, माता पिता, मित्र, समाज सभी की निगाहे हमारी प्रतीक्षा कर रही होती है। उन्हें निराश करने के स्थान पर अपने को संभालने का प्रयास करना चाहिए। यह सत्य है कि जितना हम बड़े हो रहे होते है उतने ही हमारे माता पिता बूढ़े भी हो रहे होते है। समाज में रहते हुए समाज का कर्ज चुकाना शेष है है। हम कैसे हार सकते है? हमें अभी तो सबको धन्यवाद भी तो देना बाकी है। कल के लिए आज को खो देना उचित नहीं होगा। निराशा के समय में खुद से सवाल पूछ ले कि दिन के 86400 सैंकड़ों को सोचने में बिताने के स्थान पर कुछ पल के लिए कुछ नया सोच व सकारात्मक भी तो सोचा जा सकता है। गलती कौन नहीं करता गलती करना पाप नहीं है बल्कि गलती को दोहरा देना पाप होता है। भविष्य में अपनी गलतियों से सबक लेते हुए सकारात्मक चिंतन प्रांरभ करे आज से ही। DINESH K.GARG ( POSITIVITY ENVOYER) AJMER
dineshkgarg.blogspot.com