अब अंतर नहीं रहा भाजपा-कांग्रेस में

टिकट वितरण पर दिल्ली का नियंत्रण
चाल- चरित्र-चेहरा सब बदला

*ओम माथुर*
तो,भाजपा अपने जिस अनुशासन और कैडर बेस पर इतराती थी, राजस्थान विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों की पहली सूची आने के साथ ही वह धराशाही हो गया है। पार्टी को इस बात का बहुत गुमान था कि आलाकमान के फैसलों को कार्यकर्ता और नेता सिर झुककर स्वीकार कर लेते हैं। इसीलिए वह खुद को अलग चाल, चरित्र ,चेहरे की पार्टी बताती थी। लेकिन पहली सूची आने के बाद ही जिस तरह उसके कार्यकर्ता सिर उठाकर और चिल्ला-चिल्ला कर पार्टी दफ्तर तक में जाकर विरोध जता रहे हैं, उसने साबित कर दिया है कि भाजपा की हालात भी अब कांग्रेस जैसी ही हो गई है। कांग्रेस में तो दावेदारी करने,टिकट वितरण से पहले तथा बाद में खुला विरोध और बगावत हर चुनाव से पहले का उत्सव है। लेकिन भाजपा में भी अब ये उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है।

ओम माथुर
सोचिए,अभी तो भाजपा ने उन 41 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं,जिनमें 39 सीट़ों पर वह एक या लगातार तीन बार से हार रही है। जब लगातार जीतने वाली सुरक्षित सीटों के प्रत्याशी घोषित होंगे, तब विरोध और बगावत के सुर कितने तेज होंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्योंकि लगातार दो से चार बार जीतने वाली सीटों पर इस बार दावेदारों की भीड़ के साथ-साथ ही 15-20 साल से बने विधायकों को बदलने के लिए भी लंबे समय से दावेदार और कार्यकर्ता मुहिम चला रहे हैं। अपने अजमेर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों,अजमेर उत्तर,अजमेर दक्षिण, ब्यावर और पुष्कर में भी 10 से 20 सालों से जमे विधायकों का विरोध और उन्हें बदलने की मांग लंबे समय से कार्यकर्ता कर रहे हैं और इसके लिए प्रदेश के नेताओं को ज्ञापन भी देकर आ चुके हैं। राजस्थान में भाजपा की 70 से ज्यादा सुरक्षित सीटें मानी जा रही है, वहां ऐसे कई विधायक हैं, जो तीन से चार बार चुनाव जीत चुके हैं और फिर टिकट मांग रहे हैं। ये फिर वापस मैदान में उतरे,तो विरोध और बगावत किस स्तर पर जा सकती है, शायद इसे भाजपा समझ रही है। इसलिए उसने डैमेज कंट्रोल के लिए केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की अध्यक्षता में अभी से एक कमेटी बना दी है।
भाजपा में इस बार उम्मीदवार चयन में वह सब कुछ हो रहा है, जो अब तक कांग्रेस में होता रहा है। जैसे टिकट वितरण में पूरी तरह दिल्ली का नियंत्रण,राज्य के नेतृत्व को नजरअंदाज करना,महज दिखावटी सर्वे, स्थानीय स्तर पर प्रभावी दावेदारों की उपेक्षा,बागियों और बाहरी प्रत्याशियों टिकट, टिकट खरीदने-बेचने के आरोप। भाजपा कहती रही है कि कांग्रेस के टिकट दिल्ली से तय होते हैं। इस बार वहां भी यही हो रहा है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की ओर से पर कराए गए सर्वे के आधार पर पहली सूची जारी की गई है। इसमें राज्य के क्षेत्रीय नेताओं,जिसमें मोदी और शाह के करीबी भी शामिल हैं, उनकी भी अनदेखी की गई है।
राजस्थान की सबसे बड़ी भाजपा क्षत्रप मानी जाने वाली वसुंधरा राजे को पहली सूची से चिढाना शुरू कर दिया गया है। नरपत सिंह राजवी,राजपाल सिंह शेखावत,कालूलाल गुर्जर, विकास चौधरी, अनिता गुर्जर जैसे वसुंधरा सर्मथकों को टिकट नहीं दिए गए। जबकि राजवी अभी विद्याधरनगर से विधायक है। किशनगढ़,झोटवाई,, तिजारा, मंडावा, देवली-उनियारा,कोटपुतली, सांचोर सहित कई स्थानों पर खुला विरोध शुरू हो गया है। भाजपा को यह नहीं भूलना चाहिए कि पिछली बार राजस्थान में टिकट वितरण में वसुंधरा की मुख्य भूमिका थी। ऐसे में उन्हें एकदम दरकिनार करना किसी बड़ी बगावत को जन्म देने जैसा होगा। भाजपा को यह खतरा महसूस हो रहा होगा, ऐसे में देखना होगा कि आने वाली सूचियां में भाजपा कितने प्रयोग करती हैं। सांसदों को चुनाव मैदान में उतारने का उसका प्रयोग सफल नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि लगभग सभी स्थानों पर उनका विरोध हो रहा है। जाहिर है जो नेता चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थ, उनके इलाकों में अगर आप सांसद को उतार देंगे,तो उनके सपनों को टूटना तय है और यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होगा। देखना और क्या आने वाली सूची में भाजपा और सांसदों को विधानसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारती है या नहीं?
लेकिन एक बात तय है। अब भाजपा पार्टी विद डिफरेंस होने का दावा नहीं कर सकती और नाक्षहीं वह कांग्रेस पर तंज कस सकती है। अगर कांग्रेस में गांधी परिवार का दबदबा है, तो अब भाजपा पर भी मोदी-शाह की जोड़ी ने कब्जा कर लिया है। इनके दौर में कोई गारंटी नहीं है कि पार्टी के किस नेता को कब ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा। ऐसे में विरोध और बगावत के स्वर उठना लाजिमी है। क्या इसे आरएसएस और भाजपा थाम सकेंगे?

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