*■ओम माथुर*
मेरा दावा है कि संसद और विधानसभाओं में बैठकर केंद्रीय और राज्य का बजट सुनने वाले आधे से ज्यादा सांसदों,विधायकों एवं बजट आने के बाद इस पर प्रतिक्रिया पेलने वाले अधिकांश नेता बजट के बारे में कुछ नहीं समझते। लेकिन टीवी कैमरों के सामने सभी आर्थिक विशेषज्ञ बन जाते हैं।
अखबारों में तो और भी जोरदार बात होती है। यहां नेता रिपोर्टरों को फोन करके बजट पर प्रतिक्रिया देने की जगह इतना ही कहते हैं कि बजट प्रतिक्रिया में नाम डाल देना। उनसे पूछो प्रतिक्रिया क्या है,तो साफ बोलते हैं बजट समझता कौन हैंं। लेकिन आप अगले दिन के अखबार देखिए,नेताओं, व्यापारियों, कर्मचारी नेताओं,युवाओं, गृहणियों की प्रतिक्रियाओं व फोटो से भरे रहते हैं। कई नेता तो इतने फोकटे होते हैं कि दिन भर चाय-नाश्ते के लिए दूसरों की जेबों के भरोसे रहते हैं। लेकिन फिर भी बजट पर प्रतिक्रिया देते हैं।
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