पहली बार बने तीनों मुख्यमंत्री में सबसे कमजोर साबित हुए,अतिविश्वास और मोदी पर भरोसा राजस्थान में भाजपा कै कर गया भारी नुकसान*
*पिछले साल नवम्बर में तीन राज्यों राजस्थान,मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे। तीनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसने कांग्रेस की सरकारों को बेदखल किया था। तब भाजपा ने तीनों ही राज्यों में अपने कद्दावर नेताओं राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह को मुख्यमंत्री नहीं बनाकर नए चेहरों पर दांव लगाया। ऐसे में राजस्थान की कमान पहली बार विधायक बने भजन लाल शर्मा, मध्य प्रदेश की मोहन लाल यादव और छत्तीसगढ़ की विष्णुकांत साय को सौंपी गई। तीनों के नाम की पर्ची दिल्ली से राज्यों की राजधानी में पहुंची और वहां सीएम के दावेदार उपरोक्त तीनों नेताओं ने ही उनके नाम का ऐलान किया।*
*लेकिन सिर्फ 6 महीने बाद ही इन तीनों मुख्यमंत्री की लोकसभा चुनाव में हुई परीक्षा में जहां यादव और साय कामयाब रहे,वहीं भजनलाल के नेतृत्व में राजस्थान में भाजपा को भारी झटका लगा और वह 25 सीटों से 14 पर सिमट गई। जबकि पिछले दो चुनाव में है लगातार 25 में से 25 सीटें जीत रही थी। मध्यप्रदेश में उसे पिछली बार 28 सीटें मिली थी। लेकिन उसने इस बार सभी 29 सीटों पर कब्जा कर लिया। जबकि छत्तीसगढ़ में भी उसने 11 में से 10 सीटें फिर जीत ली। यानी जहां मध्य प्रदेश के पहली बार मुख्यमंत्री बने यादव का सक्सेस रेट 100 फीसदी रहा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री साय का 90 फीसदी रहा,वहीं भजनलाल का सक्सेज रेट महज 56 प्रतिशत रहा। यानी चुनावी परीक्षा में वो फर्स्ट डिवीजन 60 प्रतिशत सफलता भी नहीं दिला पाए। इन हारी हुई 11 सीटों में भरतपुर भी शामिल है,जो भजनलाल का गृह जिला है। यह परिणाम तो तब है,जब मुख्यमंत्री के रूप में भजनलाल ने चुनाव के दौरान राजस्थान में सभी 25 सीटों पर 90 सभाएं,रोड शो और बैठकें की थी।*
*दरअसल,राजस्थान में भाजपा अतिविश्वास, केवल मोदी के चेहरे के भरोसे,उम्मीदवारों के चयन में गलतियां और जातीय समीकरणों को साधने में नाकाम रहने के कारण 11 सीटें गंवा बैठी। साथ ही उसे वसुंधरा राजे की उपेक्षा भी भारी पड़ी। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद राजस्थान में भाजपा इस गलतफहमी का शिकार हो गई थी कि जब मोदी के चेहरे पर राज्य का चुनाव जीता जा सकता है, तो फिर लोकसभा चुनाव में तो किसी और नेता या नेतृत्व की जरूरत ही नहीं है। मोदी और शाह भी राज्यों में अपनी अंगुलियों पर नाचने वाला नेतृत्व तैयार करने के लिए नए-नए प्रयोग कर रहे थे। इसलिए राजस्थान में वसुंधरा को किनारे कर भजनलाल शर्मा को सीएम बनाया गया। इसी अति विश्वास के चलते चुरू में राजेंद्र राठौड़ के कहने पर सांसद राहुल कस्वा का टिकट काटा गया, तो बाड़मेर में भारी विरोध के बावजूद कैलाश चौधरी को टिकट दिया गया। कस्वा तो पार्टी बदलकर भी सांसद बन गए। लेकिन कैलाश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे। यानी अगर यहां पार्टी रविंद्र भाटी को टिकट दे देती,तो ये सीट उसे आसानी से मिल जाती।*
*संगठन के नाम पर पहली बार भाजपा पूरे राज्य में बिखरी बिखरी लगी। विधानसभा चुनाव से पहले अध्यक्ष बनाए गए सीपी जोशी खुद अपने लोकसभा क्षेत्र चित्तौड़ में ही फंसकर रह गए। जबकि पूर्व अध्यक्ष सतीश पूनिया को हरियाणा भेज दिया गया। वसुंधरा राजे अपनी उपेक्षा के कारण झालावाड़ में केंद्रित होकर रह गई। जबकि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन लाल मेघवाल और भूपेंद्र यादव भी जीतने के लिए अपने-अपने लोकसभा सीटों में लगे रहे। भाजपा के प्रत्याशी भी मोदी के नाम पर वोट मांगते रहे। उन्होंने स्थानीय मुद्दों की अपेक्षा की और राम मंदिर और धारा 370 हटाने जैसे मुद्दों सहित मोदी सरकार की योजनाओं पर वोट मांगते रहे। मोदी भी अपनी सभाओं में ये कहकर कि इन्हें मिलने वाला हर वोट मोदी को मिलेगा, उन्हें और आलसी बना गए।*
*मुख्यमंत्री भजनलाल संगठन से निकले हुए नेता है। लेकिन उन्हें सत्ता का अभी अनुभव नहीं हुआ है। उनके मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य भी अनुभवी नहीं है। भाजपा उम्मीदवारों के चयन में जातिगत का समीकरण भी ठीक से नहीं साध पाई। ऐसे में 11 सांसदों के टिकट काटने और चार चेहरों को बदलने के बावजूद वह सफलता की कहानी नहीं दोहरा सकी। जाट और राजपूतों की नाराजगी के साथ ही वह गुर्जरों व मीणा भी नहीं साध पाई। शायद किरोड़ी लाल मीणा को उनके कद के हिसाब से मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने का ये असर रहा हो।*
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