एक वाक्या याद आ गया, सोचा रविवार की चर्चा में आपसे कुछ कहूँ। विधानसभा चुनाव का माहौल, क्या होगा पता नहीं, बागीयो के स्वर बुलंद थे, कई दलबदलू और पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं ने बगावत का स्वर अपना लिया था ।
व्यापारी वर्ग हो या कुछ वार्ड के कार्यकर्ता भाईसाहब के खिलाफ थे, बार बार जब मिलो बोलते – इस बार जीता के बता देना तुम्हारे भाईसाहब को । अगर परिवर्तन चाहते हो तो आ जाओ हमारे साथ । क्या मिलेगा आपको इतनी कतर्वयनिष्ठा से, और भी ना जाने क्या क्या ।
पर मैंने भी बोल दिया – पिता तुल्य है भाईसाहब मेरे लिये, आपके यहाँ पुत्र पिता का साथ छोड़ते होगें मैं तो हर हाल में संगठन का, पार्टी का, मेरे परिवार का और देवनानी जी का साथ नहीं छोडूंगा।
और हाँ जहाँ तक बात हार जीत की है तो मैं आपको बता दूँ कि आज भी अजमेर भाजपा का गढ है, और उस गढ में प्रत्येक कार्यकर्ता अजमेर में भाजपा के पक्ष में अपना मतदान करेगा । मैं भी जोश में था, जीत तो हम जायेगे ही । वो बोला इतनी कानफिडेंस के साथ कैसे बोल सकते हो ।
मैंने कहा पहला तो मोदी का नेतृत्व, भाजपा की छवि, भाईसाहब का सहज एवं सरल स्वभाव, उनकी मिलनसारिता और कुशल नेतृत्व और दूसरा -“ददू हैं ना….”
वो व्यक्ति आज भी कहीं मिलता है तो बोलता है बलराम जी आप सही थे ।
रविवार की चाय के साथ, पढें और आनंद ले ।
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