*विधानसभा उपचुनाव तक सलामत रहेंगे मुख्यमंत्री भजनलाल*

*तीसरी चुनावी परीक्षा में भी सफल नहीं हुए तो कुर्सी होगी संकट में,बड़े फैसले लेने में जुटे*

*राजस्थान में लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली भारी शिकस्त के बाद भी मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के पद को अगले 6 महीने कोई खतरा नजर नहीं आता है। ऐसा इसलिए,क्योंकि इन छह महीनों में राजस्थान में पांच विधानसभा चुनाव होने हैं तथा जिस तरह पिछले 10 दिन में भजनलाल जिस तेजी से फैसले ले रहे हैं, उसे यह संकेत मिल रहा है कि उन्हें दिल्ली से दौड़ने की हरी झंडी मिल गई है। उनकी सरकार ने आज यानी 15 जून को 6 माह पूरे किए हैं। कांग्रेस उन्हें पर्चीवाला मुख्यमंत्री कहती रही है। साथ उसका यह भी आरोप है कि राजस्थान में सीएम से ज्यादा तो सीएस ( मुख्य सचिव ) की चल रही है।*

ओम माथुर
*पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के कार्यकाल में हुई भर्तियों की समीक्षा,नौ लाख से अधिक जारी किए गए पट्टों की समीक्षा,17 जिलों एवं तीन संभागों के गठन की समीक्षा,तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती में 50 फीसदी महिलाओं को आरक्षण, किसानों को सालाना छह हजार की जगह आठ हजार की सम्मान निधि, भ्रष्ट अफसरों को नौकरी से निकालने आदि बड़े फैसले मुख्यमंत्री ने लोकसभा चुनाव परिणाम आने के दस दिन के भीतर लिए हैं और ये सब वादे भाजपा के विधानसभा चुनाव घोषणा पत्र में शामिल थे। लेकिन दिसंबर में शपथ ग्रहण के महज 3 महीने बाद लोकसभा चुनाव आचार संहिता लगने के कारण सरकार फैसले नहीं ले सकी। हालांकि लोकसभा चुनाव से पहले उसने पेपर लीक रोकने के लिए एसआईटी बनाई और पेट्रोल की कीमत कम की थी। इन कदमों से यह जाहिर हो गया है कि फिलहाल राजस्थान में उनके कद और पद को कोई खतरा नहीं है। हो सकता है कि 3 जुलाई से शुरू हो रहे बजट सत्र में वे रोजगार, महिला सशक्तिकरण और युवाओं के लिए और घोषणाएं करें।*
*दरअसल,लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा की बड़ी हार के बाद यह माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री भजनलाल के नेतृत्व को चुनौती मिलेगी और हो सकता है,उन्हें बदल दिया जाएगा। राजस्थान में 2014 और 2019 में सभी 25 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार 14 सीटों पर सिमट गई और 11 सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा। खुद मुख्यमंत्री भजनलाल के गृह जिले भरतपुर में भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। यूपी और महाराष्ट्र के बाद राजस्थान में उसका सबसे खराब प्रदर्शन रहा। क्योंकि राजस्थान में लोकसभा चुनाव के प्रचार की कमान पूरी तरह से भजनलाल शर्मा के हाथ में थी और सबसे लोकप्रिय नेता रही वसुंधरा राजे को प्रचार से पूरी तरह दूर रखा गया था। इसलिए हार के बाद उनके नेतृत्व पर अंगुलियां उठने लगी है।*
*लेकिन लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के कारण भाजपा नेता यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह अब किसी भी मुख्यमंत्री को उस तरह झटके से हटाने में सक्षम नहीं रहे, जितना पहले किसी का नाम पर्ची पर लिखकर बनाने में सक्षम थे। फिर अगले छह माह में राजस्थान में पांच विधानसभा उपचुनाव भी होने हैं। ऐसे में नेतृत्व परिवर्तन का सवाल ही नहीं उठ सकता। राजस्थान में खींवसर, दौसा,चोरासी, झुंझुनू और देवली -उनियारा में उपचुनाव होंगे। यहां के सांसद हनुमान बेनीवाल, मुरारीलाल मीणा, राजकुमार रोत, बृजेंद्र ओला और हरीश मीणा सांसद बन गए हैं। हांलाकि इन विधानसभा सीटों पर कहीं भी भाजपा दिसम्बर में भी नहीं जीती थी। लेकिन जिन लोकसभा सीटों के अधीन ये विधानसभा आती है,वह सभी भाजपा इस बार हार गई है। इनमें नागौर,दौसा,बांसवाड़ा,झुंझुनू और टोंक-सवाईमाधोपुर शामिल है। उपचुनाव भजनलाल की तीसरी चुनावी परीक्षा होगी,क्योंकि मुख्यमंत्री के नाते हुई दो चुनावी परीक्षाओं में तो वो नाकाम हो चुके हैं। सरकार बनते ही श्रीकरणपुर में हुए उपचुनाव में भाजपा के सुरेंद्रपाल सिंह टीटी की हार हुई थी। जिन्हें बिना विधायक बने ही सरकार में मंत्री भी बनाया गया था। उसके बाद लोकसभा चुनाव में 11 सीटें भाजपा हार गई. अब अगर उपचुनाव में भजनलाल अपने नेतृत्व में कुछ सीटें जिता सकें, तो वह अपने पद पर कायम रह सकेंगे,अन्यथा हो सकता है उपचुनाव के बाद भाजपा राजस्थान में उनका विकल्प ढूंढे। क्योंकि उपचुनाव के बाद ही राजस्थान में कुछ स्थानीय निकायों के चुनाव भी होने हैं।*
*विशेष रूप से भजनलाल और भाजपा को पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी इलाकों को साधना होगा, जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा को जबरदस्त शिकस्त मिली है। ऐसे में किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे की तलवार भी लटकी हुई है,क्योंकि उनके इस्तीफे से लोगों में गलत संदेश जाएगा,साथ ही सरकार पर भी दबाव पड़ेगा। वैसे मीणा दौसा सीट नहीं जिता पाने के कारण इस्तीफा देने को लालायित हैं,लेकिन उनके मन में मुख्यमंत्री नहीं बनने और मंत्रिमंडल में भी पूरा सम्मान नहीं मिलने की कसक है। उपचुनाव से पहले अगर मीणा इस्तीफा दे देते हैं, तो इसका भाजपा पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। वैसे मीणा सचिवालय और कृषि भवन जाना छोड़ चुके हैं और सरकारी वाहन का भी इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।*
*बहरहाल,आने वाले उप चुनाव भजनलाल के लिए ही नहीं, राज्य मंत्रिमंडल के कई सदस्यों के लिए अग्निपरीक्षा होंगे, क्योंकि इनमें कामयाबी नहीं मिली तो न सिर्फ राजस्थान में भाजपा के असंतुष्ट नेता फिर सक्रिय हो जाएंगे,बल्कि शर्मा के नेतृत्व के साथ ही पुराने और वरिष्ठ नेताओं को नजरअंदाज कर बनाए गए मंत्रियों की योग्यता और उपयोगिता पर भी सवाल उठेंगे। वैसे,भाजपा संगठन ने आज से लोकसभा चुनाव में हुई हार की समीक्षा शुरू कर दी है। पर इसका नतीजा क्या निकालना है। यही की उम्मीदवारों का चयन गलत रहा। उम्मीदवार खुद से ज्यादा मोदी के चेहरे के भरोसे रहे और संघ की नाराजगी को भुगतना पड़ा।

*■ओम माथुर■*
*9351415379*

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