– श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’
मै यह मानता हूं कि मेरा संगीत- ज्ञान शून्य है। फिल्मी गीत-संगीत सुनने तक ही मेरी जानकारी है। मैं यहाँ यह कहने की कोशिश कर रहा हूं कि पिछले एक लंबे समय से ये जो स्वर्णिम काल के अनमोल फिल्मी गीतों के रिमेक बनाने के नाम पर असल गीतों की मिट्टी पलीद की जा रही है, ऐसा किसलिए किया जा रहा है? वो गीत जो हमारे अंतर्मन तक घर कर चुके हैं क्या अच्छे नहीं बने थे। या उनके बोल ठीक नहीं थे, धुन अच्छी नहीं थी या गायक की आवाज ठीक नहीं थी! क्या वजह है उन गीतों को भारी शोरगुल और भद्दी सी आवाज, ढेरों बाजे- गाजे के उटपटांग ध्वनि के साथ फिर से प्रस्तुत करने का दुस्साहस किया जाए! हां ये रिमेक गाने ओरिजनल गीत के मुकाबले उन्नीस भी होते तो भी सहा जा सकता था मगर उन्नीस तो क्या १०-१२ तक भी नहीं पहुंच पाते बल्कि उल्टे हो ये हो रहा है कि उन असली गीतों के प्रति और प्यार बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि आज भी ५०-६० या ६५वर्ष पुराने गीतों को श्रोतागण पसंद करते हैं और उनके शब्दों और धुन तक जेहन में जीवित हैं। और उनका आनंद भी उठाया जा रहा है, गाया- गुनगुनाया जाता है। नयी पीढ़ी खांमखां यह न समझे कि हम पुराने लोग, पुराने गानों की यूं ही तारीफ करते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’सच्चाई यही है कि पहले के गाने और आज के गानों में जमीन आसमान का फर्क है। आज जमाने में पैसे का बोलबाला सिर चढ़कर बोल रहा है और फिल्मी दुनिया में इसका असर दूसरे क्षेत्रों से सबसे अधिक पड़ा है। यहां ऐसे लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई जो सिर्फ वन टू का फोर करने के लिए इस फिल्मी दुनिया की जमात में शामिल हुए हैं।इसलिए आज फिल्मों के विषय उसकी कहानी, गीत-संगीत और कलाकारों के अभिनय पक्ष की बातें तो होती ही नहीं है बस अमुक फिल्म ने इतने सौ करोड़ का व्यापार किया है बस यही एक बात होती है। कहने का अर्थ ये है कि क्या ये रिमेक बनाने वाले ये जताना चाहते हैं कि वह गीत वैसा नहीं जैसा हमने बनाया है वैसा होना चाहिए था।उस समय ठीक से नहीं बना था, गीत के बोल अच्छे नहीं लिखे गए थे। उनमें खूब सारी गलतियां थीं, जिसे सुधार कर इन्होंने और मधुर तथा कर्णप्रिय बना दिया है! इसे ही शायद बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना… कहते हैं। किसी के बेहतरीन सृजन को कम से कम एक बार तो सोच लिया होता इन लोगों ने खूबसूरत कृति को थोड़ी सी लीपपोती कर उसे बिगाड़ने से पहले सोच तो लिया होता कि उसके सैदाइयों पर क्या गुजरेगी, इस बात का तनिक भी भान है इन रिमेक के महान कलाकारों को !?इसमें क्या तुक है कि जो पहले से ही अपने श्रेष्ठ रूप में विद्यमान है उसे कुरूप बनाने पर कैसा सृजन सुख? कैसा आनंद! यह समझ से परे है।क्या ही अच्छा होता कि ये रिमेक के धुरंधर संगीतज्ञ उन गीतों के पासंग भर के स्तर वाले स्वयं के गीत का सृजन करते तो अपने और श्रोताओं के समय का दुरुपयोग तो नहीं करते! मुझे बस यही कहना था….