जिन हाथों ने निवाला खिलाया था
उन हाथों को कांपता हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
जिन पैरों ने चलकर कमाया था
उन पैरों को थरथराता हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
जिन आंखों ने रास्ता दिखाया था
उन आंखों से दिखाई न देता हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
जिन कंधों पर चढ़ाकर घूमाया धा
उनको झुककर चलता हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
जिन चेहरे पर चमक ही चमक थी
उन चेहरे पे झुर्रियों को भरा हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
जवानी में खूब बोला करते थे
बुढ़ापे में ख़ामोश बैठा हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
बुढ़े मां-बाप को वृद्धाश्रम में
रोते-बिलखते हुआ देख
दुःखी हो जाता हूं।
मां-बाप की कद्र न करने वाले
एहसान फरामोश बेटों को देख
आक्रोशित हो जाता हूं।
गोपाल नेवार, ‘गणेश’सलुवा, प.बं ।
9832170390.