संभल जा अब भी ऐ इंसान, क्यूं करता है नाहक यूं अभिमान
प्यार से आया तू जग में, प्यार लुटाता जा
दुखियों के दर्दो गम तू मिटाता जा इतना तो कर ही सकता है अरे ऐ नादान
क्यूं करता है नाहक यूं अभिमान …।
कंकड़-पत्थर जमा कर ले तू जितने भी
साथ न ले जा पाएगा कुछ भी ये जान ले
फिर क्यूं है इतना परेशान
अरे ओ अंजान
क्यूं करता है नाहक यूं अभिमान ….. अरे संभल जा अब भी ऐ इंसान, क्यूं करता है नाहक यूं अभिमान।00
– श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’