प्रश्न यह नहीं कि भारतीय समाज का यह अज्ञान गांधी के होने, ना होने को कितना प्रभावित करता है ,सवाल है कि भारतीय चेतना के पास इतना बड़ा उजाला है कि जिसके सामने परमाणु विध्वंस का धुआँ भी अंधेरे कोनों में छिपकर रहता है ल, वहाँ हमारा एक वर्ग पता नहीं किस अज्ञान से दीक्षित होकर अपनी सबसे बड़ी और मुखर पहचान को नकारता रहा है।
यह भी सच है गांधी को मानने या उनका लाभ उठाने वाले भी गांधी को बिना जाने पूज रहे हैं ,दूसरी ओर उनके विरोधी विरोध करने के नाम पर गांधी को नकार रहे हैं। जबकि गांधी ना पूजा करवाना चाहते हैं और नकारना तो संभव ही नहीं है।
दरअसल गांधी को जान लेना अपने आप को जान लेना है ..नींद से जाग जाना है ..अपनी अस्मिता को पहचान लेना है ।
गांधी होने का मतलब अमुक नगर में अमुक व्यक्ति ने जन्म लिया..अमुक महानता सिखाई..वीरता दिखाई ..नहीं हैं । हमें सफ़ाई अच्छी लगती हैं, हमें शोषण बुरा लगता है, हम घृणा में नहीं चाहते, किसी को कष्ट नहीं देना चाहते, हिंसा से आहत होते हैं, सच के साथ रहना चाहते हैं, धर्म का अनुसरण करते हैं, किसी से भेदभाव नहीं करते हैं …यही सब गांधी है।
गांधी का समूचा जीवन एक प्रयोग शाला है जहां मानवीय मूल्यों का शोधन होता है। गांधी केप्रयोग मानवीय होने की दिशा में अपने आप को जानना है
गांधी पहली बार पढ़ाई के लिए विदेश पढ़ने जाते हैं। वहाँ पढ़ाई के साथ शाकाहार आंदोलन में भाग लेते हैं। गीता और बुद्ध चरित्रम का अध्ययन करते हैं। अंग्रेज़ी में अनुवाद करते हैं। सच बोलकर अच्छे परिणाम पाते हैं। उसके बाद 1893 में एक साल के गिरमिट पर वकील अनुवादक की हैसियत से दक्षिण अफ़्रीका जाते हैं। वहाँ ब्रितानी शासन का भारतीयों के साथ अमानवीय व्यवहार देखकर पहले ही दिन से भारतीयों को जगाना शुरू कर देते हाँ।एक साल के अंदर नेटाल कोंग्रेस बनाकर अहिंसक आंदोलन शुरू कर देते हैं, जो बाद में अलग अलग तरीक़े से विस्तार पाता है, जेल जाते हैं, अख़बार निकालते हैं, आश्रम बनाते हैं और सत्ताईस साल बाद जब वापिस भारत आते हैं तो यहाँ के राष्ट्रीय आंदोलन को धुरी बन जाते हैं। वे न केवल राष्ट्रीय आंदोलन वरन शिक्षा, अंधविश्वास, स्वास्थ्य,स्वच्छता के समवेत आग्रह को समेटते हए आगे बढ़ते हैं। एक एक महात्मा की तरह मनुष्य मात्र की पीड़ाओं से लड़ते हैं । वे न कोई अपना पंथ चलाते हैं और ना ही समाज से पलायन कर बैरागी बनना चाहते हैं.।
उनका यह सब करना दुनिया में अच्छाई के प्रति विश्वास भरता है तो वहीं बुराई के पैरोकार तिलमिला उठते हैं। वे कभी धर्म की आड़ लेकर तो कभी देश के नाम पर गांधी की हत्या करना चाहते हैं..पिस्तौल देकर वीर का तमग़ा अपनी क़मीज़ पर टांगना चाहते हैं और किसी ना किसी गोडसे को मानव बम बनाकर गांधी के सामने खड़ा कर देते हैं।
गोडसे को मानव बम बनाने वाले आज भी हमारे आस पास हैं। बल्कि अधिक ताक़त के साथ हैं। गोडसे को पूजने वाले मानव बम के उपासक है।दुर्भाग्य से एक बड़ा वर्ग इन उपासकों के उपदेश सुनकर गांधी को नकारने लगता है।
गांधी को जानना बड़ा आसान है । वह किताबों में है। जीवन मूल्यों में है। सत्य और प्रेम में है। गांधी को जानना शिक्षित होने बड़ा प्रमाण है, वरना साक्षर तो पूरा ब्रिटिश साम्राज्य था ही जो अपने ही वारों से स्वयं ध्वस्त हो गया।
*रास बिहारी गौड़*