खोटे सिक्के चलते देखे
सच्चे हाथ मलते देखे।
भ्रष्टाचार की छांव में गुनाहों को पलते देखे।
शर्म बेच दी जिसने
चांदी में उसको तुलते देखे।
दो रोटी की खातिर इन्सां को
कड़ी धूप में सारा दिन जलते देखे।
दूध पिलाया जिनको हमने
सांप बनकर डंसते देखे ।
हैं इन्सानियत से कोसों दूर ‘श्याम’
कसमें ईमान की खाते देखे।00
– श्याम कुमार राई ‘सलुवावाला’