गणेश में गण का अर्थ है “वर्ग और समूह”और ईश का अर्थ है “स्वामी” अर्थात जो समस्त जीव जगत के ईश हैं वहीं देवों के देव भगवान गणेश ही है | इसलिए उन्हें गणाध्यक्ष, लोकनायक गणपति के नाम से भी जाना जाता है | गणेशजी की चार भुजाएं चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक हैं। शिव मानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर “(ॐ ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है)। विघ्नहर्ता गणेशजी की व्याख्या करने से स्पष्ट होता है कि गज दो व्यंजनों से यानि ग एवं ज से बना हैं, यहाँ अक्षर जन्म और उद्गम का परिचायक है वहीं ग गति और गन्तव्य का प्रतीक है | निसंदेह हमें गज से जीवन की उत्पति और अंत का संदेश मिलता है यानि हमारे नश्वर शरीर को जहाँ से आया है वहीं पर वापस जाना है | निसंदेह जहाँ जन्म है वहां म्रत्यु भी है | सच्चाई तो यही है कि विनायक गणेशजी के शरीर की शारीरिक रचना के भीतर भोले शंकर शिवजी की सूक्ष्म सोच निहित है, भगवान शिव ने गणेशजी के अंदर न्यायप्रिय,योग्य, कुशल एवं सशक्त शासक के समस्त गुणों के साथ उनके अंदर देवों के सम्पूर्ण गुण भी समाहित किये हैं |
गणेशजी की मूर्ति का विसर्जन क्यों किया जाता है ?
भाद्र शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी की मूर्ति की स्थापना ढोल नगाड़े के साथ घरों में जाती है | भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन के बाद देश के विभिन्न प्रान्तों में गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया, अगले बरस तू जल्दी आना के नारों के साथ गणपति की मूर्ति का विसर्जन हर्षोल्लास के साथ सरोवरों में किया जाता है | धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी से अगले 10 दिन तक गणपति को वेद व्यास जी ने भागवत कथा सुनाई थी।गणेश जी की शर्त थी कि महर्षि एक क्षण के लिए भी कथावाचन में विश्राम ना लेंगे। यदि वे एक क्षण भी रूके, तो गणेश जी वहीं लिखना छोड़ देंगे। महर्षि ने उनकी बात मान ली और साथ में अपनी भी एक शर्त रख दी कि गणेश जी बिना समझे कुछ ना लिखेंगे। हर पंक्ति लिखने से पहले उन्हें उसका मर्म समझना होगा। गणेश जी ने उनकी बात मान ली। इस कथा को गणपति जी ने अपने दाँत से लिखा था। दस दिन तक लगातार कथा सुनाने के बाद वेद व्यास जी ने जब आंखें खोली तो पाया कि लगातार लिखते-लिखते गणेश जी के शरीर का तापमान काफी बढ़ गया है। महर्षि वेद व्यास जी ने गणेश जी को आदेश दिया कि वो तुरंत पास के कुंड में डुबकी लगा कर अपने आप को ले ठंडा कर लें । अत: इसी मान्यता के अनुसार गणेशजी की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है
हाथ में अंकुश:
गणेशजी का अंकुश हमें अपने लक्ष्य की और केन्द्रित रहते हुए हमेशा आगे बड़ने का पाट पढ़ाता है | | मनुष्य को अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिये सतत प्रयास करते हुवे निरंतर आगे बड़ना ही होगा | गणेशजी के हाथ में अंकुश हम सभी को भोतिकता से आध्यात्मिकता की तरफ चलने की शिक्केषा भी देता है | आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ : निर्सविवाद रूप से जीवन में हमेशा जीत उन व्यक्तियों की होती है जो परिस्थतियों के अनुसार अपने आप को परिवर्तित करके आगे बड़ते हैं | गणेशजी के आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हमें परिस्थतीयों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता विकसीत करने की सीख देता है | अत: भगवान गणेशजी का आशीर्वाद की मुद्रा में हाथ हमको उच्च कार्यक्षमता और अनुकूलन क्षमता प्काराप्त करने की प्रेरणा देता है |
चूहे की सवारी: सभी देवी-देवता गणेशजी की बुद्धिमता के कायल हैं, तर्क-वितर्क में हर देवी-देवता गणेशजी से हार जाते थे | प्रत्येक समस्या के मूल में जाकर उसकी मीमांसा एवं विवेचना कर उसका तर्कसंगत हल खोजना उनकी विशेषता है इसलिए हर एक के मन में यह सवाल उठना लाजमी है कि भगवान गणेशजी ने निकृष्ट माने जाने वाले चूहे (मूषक) को ही अपना वाहन क्यों चुना ? इसी सन्दर्भ में यह भी उल्लेखनीय है कि चूहा भी तर्क-वितर्क में किसी से पिछे नहीं रहता है, चूहे का काम हर किसी भी वस्तु को कुतर डालना है | जो भी वस्तु या चीज चूहे को दिखाई देती है, चूहे महाराज उसकी चीर फाड़ करके उसके प्रत्येक अंगो का विस्तृत विश्लेष्ण सा कर देते है,अत: संभवत गणेशजी ने चूहे के इन्हीं गुणों को देख कर चूहे को अपना वाहन चुना होगा | गणेशजी की चूहे की सवारी के बारे में यह भी कहा जाता है कि जैसे चूहे की इच्छा कभी पुरी नहीं होती, उसे कितना मिले हमेशा खाता रहता है वैसे ही मनुष्य की इच्छायें भी कितना भी मिले कभी पुरी नहीं होती क्योंकि लोभी आदमी का लालच कभी भी नहीं खत्म होता है | गणेश हमेशा चूहे की सवारी करते हैं इसका अर्थ है कि बेकाबू इच्छायें हमेशा विध्वंस का कारण बनती है | इनको काबू में रखते हुए इन पर राज करो, न कि इन इच्छाओं के मुताबिक खुद को उनमें लिप्त हो जा हो क्योंकि मनुष्य की इच्छायें और कामनाएं कभी भी पूरी नहीं होती है वरन आदमी इच्छाओं के मकड जाल में फसं कर असंतुष्ट तनावग्रस्त और दुखी रह कर रह कर अपने जीवन को बर्बादी के कगार पर ले आता है | अत: निसंदेह गणेशजी की चूहे की सवारी इन्सान की कभी भी पूरी नहीं होने वाली इच्छाओं का परिचायक है |
खड़े होने का भाव: गणेशजी की यह अवस्था बताती है कि दुनिया में रहते हुए मनुष्य को सांसारिक कर्म भी करने जरूरी है | वस्तुतः इन सबमें एक संतुलन बनाये रखते हुए उसे अपने सभी अनुभवों को परे रखते हुए अपनी आत्मा से जुड़े रखना चाहिए और अपने जीवन को आध्यात्मिकता सेजोड़ कर अंतर मुखी बनना चाहिए | हाथी का सिर : इस कहावत से हम सभी परिचित हैं कि “ बड़ा सिर सरदार और बड़ा पांव गवांर का “ गणपति का बड़ा सिर खुशहाल जीवन जीने के लिये इंसान के अन्दर मौजूद असीमित बुद्धिमत्ता का प्रतीक है, वहीं विनायक के बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति के प्रतीक हैं | गजानन लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में ही विचरती है। हम लोगों यह भी जानना चाहिए कि गणपति के बड़े कान उनकी सर्वाधिक ग्राह्य शक्ति को दर्शाती है गजकर्णक की लंबी नाक (सूंड) महा बुद्धित्व का प्रतीक है।
विनायक का एक दंत:
विनायक का एक दंत: यह बतलाता है कि अच्छाई और अच्छों को अपने पास रक्खो वहीं बुराई और बुरों का साथ तुरंत छोड़ दो | गणेशजी के बाई तरफ का दांत टूटा है | इसका एक अर्थ यह भी है कि मनुष्य का दिल बाई और होता है, इसलिए बाई और भावनओं का उफान अधिक होता है, जबकि दाई और बुद्धीपरक होता है | बाई और का टूटा दांत इस बात का प्रतीक है कि मनुष्य को हमेशा अपनी भावनओं पर बुद्धी और विवेक से नियन्त्रण रखना चाहिए | छोटी आँखें: गणेशजी की छोटी-पैनी आँखें हमें सिखाती है कि हमें सूक्ष्म एवं तीक्ष्ण दृष्टि वाला बनना चाहिये। सफलता प्राप्ति के लिये आदमी को एकाग्र चित्त बन कर अपना ध्यान हमेशा अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखते हुए अपने मन पर नियंत्रण रखना चाहिए और मन को इधर उधर भटकने से रोकना चाहिये | बड़ा पेट: विघ्ननाशक गणेश जी का बड़ा पेट हमें सिखाता है कि मनुष्य को अच्छी बुरी सभी बातों-भावों को समान भाव से ग्रहण करना चाहिए, उन्हें समान भाव से लेना चाहिये | दूसरे शब्दों में गणेशजी का बड़ा पेट मनुष्य को उदार आदतों का धनी बनने की सीख देता है | जीवन में कुछ बातों को पेट में पचा लेना चाहिये | धीर और गम्भीर पुरुषों का समाज में सम्मान होता है |
क्यों सिर्फ माता पिता के चरणों में ही बसता है समस्त संसार ?
एक बार देवता अनेकों आपदाओं में घिरे हुए थे, तब वे मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। देवताओं की बात सुनकर शिवजी के दोनों पुत्रों कार्तिकेय व गणेशजी ने शिवजी से देवताओं की मदद करने आज्ञा मांगी तब भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जा सकेगा । भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय तो अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए। किन्तु गणेशजी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी गणेशजी को एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए।
विघ्नहर्ता गणेश जी एक मुद्रा में कलिंग सांप के फन के ऊपर नृत्य कर रहे हैं। यह बुराई पर अच्छाई की जीत दर्शाता हैं। अपने इस स्वरूप में भगवान गणेश कलियुग के उन लोगों की सहायता करते हैं जो अपने अच्छे कर्मों के बावजूद, समस्याओं को झेल रहे हैं | अलिंग अपने इस स्वरूप में भगवान गणेश कलिंग नामक सांप के फन के ऊपर नृत्य कर रहे हैं। यह बुराई पर अच्छाई की विजय को दर्शाता |
बुद्धि ऋद्धि सिद्धि सुख स्वास्थ्य सम्पन्नता को देने वाले देव देवों गणपति भगवान के श्री चरणों मे कोटि कोटि प्रणाम |
7सितंबर 2024 को देश प्रथम पूज्य भगवान विनायक का जन्मोत्सव हर्षोल्लास के साथ मना रहा है |
डॉ जे के गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर