*बारिश शहर में, बाढ़ फेसबुक पर* साथ ही राजनीति की नाव चली

*—अमित टण्डन—*
अजमेर।
*इस बार की बरसात में बह गई सोशल साइट,*
*फेसबुक पर देख लो दीवानेपन की हाइट*
शहर में जितनी बारिश हुई, उससे ज्यादा पानी इस बार सोशल साइट्स पर देखने को मिल रहा है। खास कर फेसबुक पर। एक-एक गली के बीस बीस वीडियो और एक एक वीडियो बीस बीस लोगों द्वारा उनके फेसबुक न्यूज़ फीड पर पोस्ट किया हुआ। यह एक मिसाल है भड़ास के तुष्टिकरण की। पत्रकारों की ऑफिसियल साइट्स अथवा फेसबुक पेज पर जो कंटेंट एक बार सेंड करके दुनिया को दिखा दिया गया, उसे कॉपी करके अथवा शेयर करके स्वयं के फेसबुक एकाउंट पर री-अपलोड करने वालों का सैलाब उमड़ा पड़ा है। ऐसा लग रहा है कि पानी का जितना सैलाब शहर की सड़कों पर नहीं है उससे ज्यादा उस पानी का सैलाब फेसबुक पोस्ट के रूप में मोबाइल फोन की स्क्रीन फाड़ कर बहने को बेताब है। किसी तालाब की पाल टूटे या ना टूटे, किसी बांध की दीवार में दरार आये या ना आये; लेकिन मोबाइल फोन की स्क्रीन जरूर दरक जाएंगी और ये फेसबुकिया पानी देख-देख कर लोगों के दिमाग की दीवारें जरूर फट जाएंगी।

*बरसात का राजनीतिक रंग*
अब बरसात तो बरसात है। कोई नेता-मंत्री या मुख्यमंत्री खुद में इंद्रदेव तो हैं नहीं, जो बरसात का होना या ना होना उनके हाथ हो। कोई सरकार अपनी विधानसभा में इंद्रलोक बसा कर भी नहीं बैठी कि बरसात को सदन से कंट्रोल कर सके। मगर अब राजनीतिक लोग शहरभर में भरे पानी के अंदर सियासी रंग घोल रहे हैं। अब पोस्ट आ रही हैं कि “डबल इंजन सरकार या ट्रिपल इंजन सरकार क्या कर रही हैं??” उनकी पोस्ट से ऐसा लग रहा है कि जैसे राज्य में सरकार बदलते ही मिलीभगत से ज्यादा बारिश करवा दी गई, सरकार और इंद्रलोक के फरिश्तों ने साजिशन पानी के रास्ते जाम कर दिये और पानी कुछ चंद इलाकों में जानबूझ कर भरवा दिया गया।
गोया के कहना चाह रहे हों कि शहर में वर्ष 2022-23 तक ना कभी ऐसी बरसात हुई, ना कभी ऐसे पानी भरा, ना कभी बाढ़ के हालात बने, ना मकान कभी डूबे थे, ना कभी गांव-खेड़ों में किसी तालाब की पाल दरकी व टूटी थीं, ना कभी किसी नदी ने कुलांचें भरे थे!!! ये सब इस बारिश में अचानक होने लगा हो जैसे।
कुतर्क की होलसेल बिक्री करने वाले यह नहीं समझना चाहते कि पानी अपना रास्ता कभी नहीं भूलता। पानी अपना नया रास्ता बनाना जानता है।
स्वतंत्रता के दौरान के गुजरे तमाम वर्षों में धीमे-धीमे अतिक्रमण होते रहे, चुपके चुपके घुसपैठ करके आने वालों ने पानी के रास्तों पर अपने आशियाने बसा लिए, ज़मीन के दलाल झील, झरने, तलाब, पहाड़ तक बेच कर खा गए। कितनी सरकारें आईं और गईं, मुद्दे हमेशा उठे और वोट के लालच तले दब कर मर गए। पिछली सरकार के दौरान भी पानी भरा था और लोग बर्बाद हुए थे; उससे पिछली सरकार और फिर उससे भी पिछली सरकार, और हर पिछली सरकार से पिछली सरकार के कार्यकाल में ऐसी आपदाएं आती रहीं, मगर आपदा को अवसर में बदल कर सियासत वाले मुनाफे की सिगड़ी सुलगाते रहे।
2022 में इतनी बारिश थी कि बीसलपुर बांध तीन बार भरा जा सकता था। लिहाज़ा दो भराव क्षमता जितना पानी बहा दिया गया था। वह पानी अजमेर से लेकर सवाईमाधोपुर तक बहा और खेत खलिहानों को बर्बाद करता गया। तब तो पिछली सरकार थी। उस तबाही से सबक लेकर तब क्यों नहीं कोई ठोस प्लान बनाया गया, जबकि पिछली सरकार का एक वर्ष से ज्यादा का कार्यकाल शेष था।
ऐसे हालात गुज़रे सात दशकों में सत्तर दफा बने; लेकिन बड़े स्तर के मंत्री हवाई सर्वे करके फोटो खिंचवाते रहे और लोकल नेता घुटनों तक के पानी में खड़े होकर किसी कॉलोनी/मोहल्ले में यू ट्यूबर और फेसबुक लाइव वालों से अपनी शूटिंग करवाते रहे। अगले दिन अखबार में खबर छप गई और हो गई समाज सेवा। जैसे किसी कथा में “इति श्री प्रथम अध्याय समाप्त”।

*उतर कर भी नहीं उतरेगा*
इस पानी ने व्हाट्स एप्प को भी डुबो रखा है। यह ऐसा पानी है जो सड़कों व मोहल्लों से उतर जाएगा लेकिन दिमागी जुगालियों में लोग इसे चबाते रहेंगे। क्योंकि अभी पक्ष-विपक्ष का विधानसभा में इस पर झगड़ा तो बाकी रह गया है। जब तक विधानसभा सत्र ना हो, और उस सत्र में पक्ष-विपक्ष आम जनता की फिक्र में आपस में लड़ ना ले, तब तक यह पानी दिमाग की टूटी पाल से बहता ही रहेगा। होना-जाना तब भी कुछ नहीं है, क्योंकि बरसों बरस तक विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री रहे लोग भी वही के वही हैं; और त्राहिमाम करती जनता भी वही है, तो सुरसा के मुँह जैसी समस्या भी वही है। विधानसभा में “तीखी बहस” के बाद कथा का “इति श्री द्वितीय अध्याय समाप्त” तो हो जाएगा, लेकिन सूतजी कहते हैं कि “हे प्राणियों ये कथा कभी समाप्त नहीं होगी”।

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