आखिर मेरे पड़ौसी की लम्बाई मेरे पति से अधिक क्यों है हास्य-व्यंग्य

shiv shankar goyal
मुझे दूसरों के घर में तांक झांक करने तथा पति-पत्नि तथा पडौसिनों की बातें सुनने का बहुत शौक हैं. कई राज की बातें पता लगती हैं. गत दिनों की बात हैं. मेरी पडौसन अपनी सहेली से,मेरे बारें में, कह रही थी कि ‘आखिर मेरे पडौसी की लम्बाई मेरे पति की लम्बाई से अधिक क्यों है. मैंने जब यह बात सुनी तो मुझे बडा अचम्भा हुआ क्योंकि मैं तो बचपन से ही अधिक लम्बाई के कारण कुछ न कुछ भुगतता आया हूं.
बचपन में जब फुटपाथ पर बैठा दर्जी मेरे कुर्तें-पायजामें हेतु लठठा या रेजी (कपडें) की मांग करता था तो मेरी मां भगवान के साथ साथ मुझे भी कोसती परन्तु जब घर में मां को टान्ड पर से सामान उतारवाना होता तो वह मुझे ही पुकारती थी. स्कूल के संगी साथी ईमली तोडने जाते तो मेरी सेवाओं का भरपूर फायदा तो उठाते लेकिन बंटवारे के समय ईमली मेरे हिस्सें में कम ही आती. पडौसन अपने बच्चों को रावण का मेला (दशहरा) देखने मेरे साथ ही भेजती क्योंकि मेरे कन्धों पर बैठकर उन्हें न केवल रावण-मेघनाथ अच्छी तरह दिखाई देते बल्कि बच्चों के खोने का डर भी नही रहता था.

खेलते वक्त, मैं, कबडडी में पकड होने पर बिछ जाता तो सामने वाली टीम पूरी आउट हो जाती. पतंग-डोर लूटनेवाले साथी मेरा फायदा तो उठाते परन्तु मालिकों की तरह पूरा मुनाफा खुद ही हडप लेते. श्रमिकों की तरह मेरे हिस्सें में पतंग अथवा मांजें की जगह सददा ही आता.

बचपन में दो एक बार मैं जलेबी रेस में जीत गया तो बाकी बच्चें ऐतराज करने लगे कि इसको प्रतियोगिता से हटाओे. इधर मास्टर जी भी मुझें क्लास में सबसे पीछे की सीट पर बैठाते. एक बार वह जब कबीर का निम्न दोहा पढा रहे थे
‘लम्बा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर. पॅछी को छाया नही, फल लागे अति दूर.
तो पढाते वक्त बार बार मेरी ओर ईशारा किया. जब कभी वह क्लास में मुझे मारते तो मुझे झुकना भी पडता था अतः एक ही कसूर में मुझे दो दो सजाएं हो जाती जो कहते हैं कानूनन गलत हैं.
हमारे कस्बें में नगर पालिका के खम्भों पर लगे बल्ब जब भी गायब होते तो मोहल्लें के लोग मेरे पर ही शक करते, हो न हो यह इसी का काम हैं लेकिन गरज पडने पर विश्वास भी मेरे पर ही करते क्योंकि बरसात में मोहल्ले के बच्चों को पास के नदी नाले मैं ही पार करवाता.
यह तो बाद में जब मैंने एक फिल्म में अमिताभ बच्चन को यह गाना गाते हुए सुना
‘जिसकी बीबी ठिगनी, उसका भी बडा नाम हैं. गोद में उठालो तो, बच्चे का क्या काम हैं
और एक राजस्थानी गाने में साली-जीजा का यह संवाद सुना
‘मैं ठिगनी तू लम्बो घणों, शीशे में मंड जाये दोनी जणों.
तब मेरी हिम्मत बन्धी. मुझ में आत्म विश्वास पैदा हुआ और अधिक लम्बाई की वजह से शादी के समय मैंने होने वाली पत्नी को खूब छकाया. उसे आसानी से मेरे गले में वर माला नही डालने दी.
प्रारम्भ में मेरी लम्बाई की वजह से मेरी पत्नी को कुछ कुछ परेशानी जरुर हुई. मसलन, एक बार हम दोनों सब्जी मार्केट में गये. वहां मैंने सब्जी बेचने वाली से पूछा कि नीम्बू कैसे दिये तो वह हंसने लगी. साथ ही पास खडी मेरी पत्नी भी हंसते हुए कहने लगी जिसे आप नीम्बू समझ रहे हैं वह तो संतरें हैं, तब मुझे काफी झेंप महसूस हुई.
लेकिन थोडे ही दिनों में मेरी पत्नी मेरी लम्बाई की कायल हो गई. उसने देखा कि जब मैं उसे ले कर उसके पीहर गया तो बस या ट्रेन में सामान उतारने चढाने में उसे बहुत सुविधा हुई. यहां तक कि मैंने अपने बच्चों को भी भीड के ऊपर से ही डिब्बें में बास्केट बॉल की तरह पहुंचा दिया. मेलें में वह मेरे साथ जाती तो बेधडक हो कर काजल बिन्दी अथवा चूडियों की खरीद करती और मेरी उपस्थिति – अनुपस्थिति की परवाह नही करती क्योंकि भारी भीड में भी मैं उसे दूर से ही नजर आ जाता था. उसने पीहर जा कर अपनी मां से यह भी कहा कि ये जब भी मुझसे बात करते हैं तो आंखें नीची करके करते हैं (जबकि ऐसा मुझे लम्बे कद की वजह से करना पड़ता था) ऐसी बातों से मेरे सास-ससुर के ऊपर मेरी शराफत की छाप लग गई .
इधर शादी विवाह में पंगत सिस्टम की बजाय बफे सिस्टम में खाना होने लगा जिसमे मुझे लम्बाई और बास्केट बॉल खेल का कुछ कुछ अनुभव होने की वजह से हाथ दिखाने का अच्छा मौका मिलने लगा. एक बार बेकारी के आलम में केवन्डर्स सिगरेट के विज्ञापन हेतु एक मौका भी मुझें मिला. उसमे भाग लेते वक्त सडक पर साथ चलने वाले लोग मुझे गुलीवर के लिलिपुट नजर आने लगे थे.
इस तरह ऊपर से देखने पर तो मेरी लम्बाई के कई फायदें लोगों को नजर आते थे लेकिन मैं अक्सर सोचता रहता था कि जॉनी वाकर को छोडकर जितने भी मशहूर हास्य कलाकार जैसे चार्ली चैपलिन, गोप, सुन्दर, मुकरी, धूमल, राधाकृष्ण, टुनटुन इत्यादि हुए वह अधिकतर छोटे कद के ही थे. स्वयं दुनियां के मालिक ने चौबीस अवतारों में एक बावन अवतार लेकर छोटेकद की महिमा बढाई हैं अगर उन्हें लम्बूओं का भी यशगान कराना होता तो वह एक लम्बू अवतार भी लेते और मेरे जैसों का कल्याण हो जाता लेकिन अब चूंकि पडौसन मेरी प्रशंसा कर रही हैं तो मेरी हिम्मत दुबारा लौटी हैं. अब इससे ज्यादा मुझें और क्या चाहिये क्योंकि फिल्म “पडौसन” में सुनीलदत्त एवॅ किशोरकुमार को पडौसन, सायराबानो की नजरें इनायत करवाने हेतु क्या क्या पापड बेलने पडे हैं थे यह किससे छिपा हैं ?

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