हास्य-व्यंग्य
खबर है कि महंगाई बढ रही हैं. यह बात और कोई माने न माने परन्तु अखबारों में साग-सब्जियों के अलावा आटा-दाल के भाव फिर छपने लगे है, यही ईशारा काफी है. कहते है कि जब जनता को आटा-दाल के भाव पता लगने लगे तो समझों अब जेब ज्यादा ही ढीली होने वाली है अर्थात महंगाई बढ रही हैं.
वैसे वस्तुओं के भावों को स्थिर रखने या रोकने में बडे 2 व्यापारिक घराने एवं बडी 2 कंपनिया भी सहयोग करती रही है. उदाहरणार्थ 155 ग्राम वाला विम बार घटकर 135 ग्राम का होगया. इसी तरह बीकाजी नमकीन 80 से 40 ग्राम हो गई. पहले जहां 30 रू. के पैकिट में 10 सेनेटरी पैड आते थे, अब सिर्फ 7 ही आ रहे है. जबकि पहले 100 रू. में150 ग्राम का चॉकलेट का पैकेट आता था, अब उसका वजन 100 ग्राम कर दिया गया है. ब्लेड के पैकिट में भी एक ब्लेड कम कर दी गई है हालांकि मूल्य वही है. इनका कहना है कि कहां बढाए है दाम ?
उल्लेखनीय है कि वर्षों पूर्व अपने समृध्द गुजरात में रतल के बांट चला करते थे. उनका वजन देश के अन्य भागों में प्रचलित बांटों से आधा होता था. मसलन एक सेर में जहां अन्य स्थानों पर 900 ग्राम वजन होता था तो रतल के एक सेर के बांट में 450 ग्राम ही होते थे. इससे वस्तु का वजन और मूल्य घटकर आधा रह जाता था. अगर सरकार अपने गुजरात के रतल के बांट फिर से चालू करदे तो महंगाई अपने आप घट जायेगी. इसमें न हींग लगेगी न फिटकरी और रंग भी चौखा आ जायेगा.