कुंभ की साइंटिफिक व्याख्या

ग्रह के ऊर्जाओं की
मंगलमई बेला
तटिनी पर अमृत की
छवि कुंभ मेला ।
हमारे पौराणिक शब्दों के अर्थ अधिकतर सांकेतिक होते हैं । कुंभ की बात करें तो यहाँ कुंभ का अर्थ घड़ा, सुराही या कलश की बजाय पानी से अधिक ताल्लुक रखता है।
वैसे कुंभ का शाब्दिक अर्थ होता है – घड़ा ।  सरल सी बात है कि जब बात घड़े की हो तो सबसे पहले ध्यान पानी का आता है । जी हाँ, यहाँ संकेत जल का हीं है ।
आइए समझते हैं कि कुंभ को नदी के जल या नदी स्नान से क्यों जोड़ा गया है । सबसे पहले जानते हैं कुंभ से संबंधित पौराणिक कथा के बारे में ।
पौराणिक कथा –
 पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी वेश धरकर अमृत कुंभ हासिल तो कर लिया परंतु अमृत से भरा हुआ कलश (कुंभ)लेकर जब वह जा रहे थे तो असुरों ने उस कलश को छीनने के लिए भगवान के साथ छीना झपटी की । इन्हीं चेष्टाओं के बीच कलश में से अमृत की चार बूँदें छलक कर बाहर पृथ्वी पर गिर पड़ीं । यह अमृत बूँदें हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज तथा नासिक में गिरी जिससे ये स्थान तीर्थ बन गए । कालांतर में इन चारों तीर्थ स्थलों पर कुंभ मेले के आयोजन होने लगे । इन चारों कुंभ में सबसे ज्यादा महत्व प्रयागराज का माना जाता है । क्योंकि यह गंगा यमुना और सरस्वती (पाताल प्रवाहित) जैसी पवित्र नदियों का संगम स्थल है । तीर्थ अर्थात जहाँ मोक्ष की प्राप्ति होती है । अतः दुनिया भर से करोड़ों लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिवेणी तीर्थ के संगम पर आयोजित कुम्भ में पहुँचते हैं । पौराणिक मान्यता है कि कुंभ स्नान से मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
नील खमंडल ग्रह नक्षत्र ये
सकल साक्षी हैं अखिल जगत के ।
ये विराट के झिलमिल प्रहरी
हल करते सब प्रश्न अगत के ।
विज्ञान से जोड़िए –
ब्रह्ममाण्ड अथवा यूनिवर्सम (संस्कृत शब्द) का निर्माण करोड़ों अरबों-खरबों तारों से मिल कर हुआ है । अनंत ब्रह्मांड में ग्रह, नक्षत्रों, गैलैक्सीज, खगोलीय पिण्डों, आकाशगंगाओं, ब्लैक होल्स सभी शामिल हैं जो अनंतकाल से अपनी अपनी गतियों और ऊर्जाओं के साथ निरंतर गतिमय हैं । इन खगोलीय पिण्डों के विज्ञान को एस्ट्रोलाॅजी कहते हैं । जाहिर है कि इस ब्रह्माण्ड में मौजूद हरेक तत्व पर इन ग्रहों नक्षत्रों और खगोलीय पिण्डों की स्थितियों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है । ग्रहों नक्षत्रों का मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव से संबंधित  विज्ञान को ज्योतिष शास्त्र कहते हैं । विज्ञान की भाषा में हमारे सौर मंडल की बात करें तो यह सूर्य पर केन्द्रित है । यानि सूर्य ग्रहों का राजा हुआ । जन जीवन पर भी सूर्य का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है, ये हम सब जानते भी हैं । कुंभ के समय सूर्य समेत ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी बनती है कि जिससे ग्रहों से दिव्य रश्मियाँ, अमृत ऊर्जाओं का उत्सर्जन होता है और इस ऊर्जा के विकिरण का सबसे अधिक प्रभाव नदियों के जलों पर पड़ता है । इस समय नदियों का जल शुद्धता के  ऊर्जात्मक विकिरणों से भरा रहता है ।
क्या कहता है ज्योतिष  –
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक माघ पौष में ग्रहों की दुर्लभ कोणीय अवस्था बनती है जो नदियों के जलों में महान औषधीय प्रभाव उत्पन्न करती है अतः इन मुहूर्तों में पवित्र नदियों में स्नान करने से मंगलमय, अमृतमय फलों की प्राप्ति होती है । जब तक ये सभी ग्रह अपनी दुर्लभ स्थितियों में आसीन रहते हैं, निर्मल ऊर्जाओं का प्रवर्तन अनवरत् जारी रहता है ।
12 साल में क्यों लगता है कुंभ  –
ज्योतिषीय गणना के मुताबिक पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में होता है एवं सूर्य और चंद्रमा एक सीध में होते हैं तब एक अद्वितीय खगोलीय संयोजन बनता है और इसी समय जब बृहस्पति वृषभ राशि में प्रवेश करता है तो यह एक दुर्लभ घटना होती है । माना जाता है कि इस योग के कारण इस समय पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार खुल जाते हैं और कुंभ स्नान से मनुष्य को सहजता से उच्च लोकों की प्राप्ति हो जाती है । बृहस्पति हर 12 साल के बाद वृषभ राशि में प्रवेश करता है इसलिए महाकुम्भ का संजोग 12 साल के बाद हीं बनता है । सूर्य चंद्रमा और बृहस्पति की स्थितियों के कारण एक अत्यंत सकारात्मक विद्युत चुम्बकीय विकिरण उत्पन्न होता है जिससे इस समय गंगा का पानी असीम सकारात्मक विद्युतीय आवेश से भरा हुआ होता है ।
साधनाएँ होती हैं फलित –
ग्रहों की यह स्थिति एकाग्रता और ध्यान साधना के लिए भी उत्कृष्ट होती है जिसमें साधकों की साधना सहज हीं सिद्ध हो जाती है इसी कारण से कुंभ में दुनिया भर से तन्त्र मन्त्र साधकों, साधु-सन्तों का आगमन होता है ।
अगर आप अधिक व्यवहारिक और तर्कपूर्ण  मस्तिष्क के व्यक्ति हैं तो इन समयों में आकाश में ग्रहों की परिवर्तित स्थितियों को भी देख सकते हैं ।
इस बार 7 ग्रह एक कतार में गोचर कर रहे हैं और ग्रहों की यह स्थिति या दुर्लभ संयोग 26 फरवरी तक रहेगा इसी के साथ अमृतमय विकिरणों की ऊर्जा के श्रोत का सर्वाधिक विसर्जन प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में होगा ।
-कंचन पाठक, लेखिका नई दिल्ली
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