तुम्हारी पहचान हमसे हुईं हैं।

बेशक मैं रेत हूं सच में तुम महल हो
बेशक मैं मूरत हूं सच में तुम मंदिर हो,
बेशक मैं नदी हूं सच में तुम सागर हो
बेशक मैं पौधा हूं सच में तुम वृक्ष हो,
असल में तुम्हारी पहचान हमसे हुईं हैं
वरना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
बेशक मैं अकेला हूं सच में तुम भीड़ हो
बेशक मैं गांव हूं सच में तुम शहर हो,
बेशक मैं ज़मीन हूं सच में तुम पर्वत हो
बेशक मैं अंधेरा हूं सच में तुम रोशनी हो,
असल में तुम्हारी पहचान हमसे हुईं हैं
वरना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
बेशक मैं बच्चा हूं सच में तुम मां हो
बेशक मैं बालक हूं सच में तुम पिता हो,
बेशक मैं भाई हूं सच में तुम बहन हो
बेशक मैं सदस्य हूं सच में तुम परिवार हो,
असल में तुम्हारी पहचान हमसे हुईं हैं
वरना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
बेशक मैं अक्षर हूं सच में तुम शब्द हो
बेशक मैं पृष्ठ हूं सच में तुम पुस्तक हो,
बेशक मैं विद्यार्थी हूं सच में तुम शिक्षक हो
बेशक मैं अनपढ़ हूं सच में तुम विद्वान हो,
असल में तुम्हारी पहचान हमसे हुईं हैं
वरना तुम्हारा कोई अस्तित्व ही नहीं होता।
गोपाल नेवार,’
गणेश’सलुवा, खड़गपुर, पश्चिम मेदिनीपुर,
पश्चिम बंगाल।  9832270390.
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