ऋतुओं के राजा बसंत

j k garg

ऋतुओं के राजा  बसंत का पर्व बसंत पंचमी धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक बसंत पंचमी को हीविद्या एवं बुद्धि की देवी माता सरस्वती का जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसारऋतुराज बसंत के साथ धरती पर कामदेव और उनकी पत्नी देवी रति आते हैं और सभी मेंप्रेम और काम भावना जागृत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि बसंत पंचमी के दिन कामदेवऔर देवी रति की पूजा करने से पति-पत्नी के प्यार में वृद्धि होती है और दोनों कारिश्ता मजबूत होता है। मान्यताओं के अनुसार कामदेवप्राणियों के अंदर प्रेम भावना जागृत करते हैं वहीं देवी रति श्रृंगार करने कीइच्छा को बढ़ाती हैं। हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, कामदेवके धनुष से निकला बाण सीधा दिल पर लगता है। इस बाण के लगने से दिल प्रेम की भावनासे भर जाता है। इसीलिये बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के साथ-साथ भगवान श्रीहरि विष्णु, कामदेवऔर रति का पूजन भी होता है | बसंत पंचमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा अर्चना करकेउनसे जीवन में विद्या, बुद्धि, कलाएवं ज्ञान प्राप्त का वरदान मांगा जाता है | धार्मिकमान्यताओं के मुताबिक  सृष्टि के रचियता ब्रह्मा जीने जीवो और मनुष्यों की रचना भी इसी दी को की थी | ब्रह्माजी सृष्टि की रचना करके जब उसे  देखने लगे तो उन्हें  प्रथ्वी पर चारों तरफ  सुनसान निर्जन वातावरण  दिखाई दिया जिससे प्रजापति खिन्न और उदास हो गये | ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु जी की आज्ञा अनुसार अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिडका धरती परगिरने वाले जल से वहां हर जगह  पर कंपन होने लगता है औरएक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी स्त्री प्रकट हुयी उस देवीके एक हाथ मेंवीणा और दुसरे हाथ में वर मुद्रा थी बाकी अन्य हाथो में पुस्तक और माला थी | ब्रह्माजी उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध किया  देवी केवीणा बजाने के साथ ही संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त को गयी | उसीक्षण ब्रम्हाजी ने उस स्त्री को “सरस्वती” कहाऔर सरस्वती को मधुर वाणी के साथ-साथ विद्याऔर बुद्धि भी प्रदान की | भगवानराम  भी वसंत पंचमी के दिन शबरी के आश्रम पर आये  एवंशबरी के झूटे बैर भी राम ने प्रेम पूर्वक खाये थे |  किंवदंतीयो के मुताबिक सूफी संत चिश्ती निजामुद्दीन औलिया अपने जवान भतीजेकी मृत्यु से अत्यंत दुखी हो गये थे|  मशहूरशायर अमीर खुसरो ने वसंत पंचमी के दिन कुछ औरतों को पीले कपडे पहन कर पीले फूल लेजाते देखा तो खुद भी पीले कपडे पहन कर पीले फूल लेकर चिश्ती साहब के पास पहुँचे| उन्हेंदेख कर चिश्ती साहब के चहरे पर हँसी आ गयी| तभीसे दिल्ली में निजामुद्दीन औलिया की दरगाह और चिश्ती समूह की अन्य सभी दरगाहों परवसंत उत्सव को मनाया जाने लगा| वैज्ञानिक और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बसंत ऋतुशरद ऋतु के ठंड से शीतल हुई पृथ्वी की अग्नि ज्वाला, मनुष्यके अंत:करण की अग्नि एवं सूर्य देव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है। बसंतऋतु ही वो समय है जहां प्रकृति पुरे दो महीने तक वातावरण को प्राकृतिक रूप सेवातानुकूलित बनाकर संपूर्ण  प्राणियों को स्वस्थ जीने का मार्ग प्रदान करती है। साहित्यकारोंके लिए वसंत प्रकृति के सौन्दर्य और प्रणय के भावों की अभिव्यक्ति का अवसर है तोवीरों के लिए शौर्य के उत्कर्ष की प्रेरणा हैमां शारदा का प्राचीनतम मंदिर पकिस्तान अधिकृतकश्मीर में मुज़्ज़फ़राबाद के निकट पवित्र कृष्ण-गंगा नदी के तट पर स्थित है। पौराणिकमान्यता है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने इस मंदिर का निर्माण कर मां शारदा को वहांस्थापित किया था इसीलिए उस मंदिर को ही मां शारदा का प्राकट्य स्थल माना जाता है।आदि गुरु शंकराचार्य ने इसी शारदा पीठ में मां शारदा के दर्शन किए थे।पंजाब और हरियाणा में  बसंत पंचमी के दिन है.लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करके भगवान से आशीर्वादलेने के लिये गुरुद्वारे या मंदिर जाते हैं | बड़े और बच्चेसभी पतंग उड़ाते हैं | लोक गीत गाते और  नाच गाना करके आनन्द मनाते हैं | उत्तर प्रदेश औरराजस्थान में  देवी सरस्वती की पूजा की जाती तथापतंगबाजी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं |राजस्थान मेंलोग चमेली की माला पहनते हैं | उत्तर प्रदेश में कई भक्त बसंत पंचमी पर भगवान कृष्ण की पूजा करते हुएकेसर चावल चढ़ाते हैं. इस दिन पीले गेंदे से घर और प्रवेश द्वार सजाए जाते हैं |  पश्चिम बंगाल के कई शहरों  और बिहार में देवीसरस्वती की मनमोहक आकर्षक मूर्ति बनाकर विशाल पंडाल बना कर देवी मां की पूजा करनेके लिए इकट्ठा होते हैं  देवी मां को  मीठे पीले चावल और बूंदी के लड्डू चढ़ाते हैं  |उत्तराखंड के लोग फूल, पत्ते औरपलाश की लकड़ी चढ़ाकर देवी सरस्वती की पूजा करते हैं पीले वस्त्र धारण करते हैं, माथेपर पीले रंग का तिलक लगाते हैं और पीले रुमाल का इस्तेमाल करते हैं | पतंग उड़ाते हैं और केसर हलवा खाते हैं | गोकुल औरवृंदावन में भी बसंत उत्सव धूमधाम और नाच गाने के साथ मनाया  जाता है |ब्रज भूमी में बसंत पंचमी को रास नृत्यहर्षोल्लास के साथ किया जाता है मान्यताओं के मुताबिक भगवान कृष्ण ने बसंत पंचमीको ही रास किया था | सनातनधर्मी लोगों के लिये बसंत पंचमीमहत्वपूर्ण पर्व है  | अन्नदाताकिसानों के लिये भी यह एक प्रमुख पर्व है | सनातनधर्मी इसपर्व को संगीत, ज्ञान, कला, विद्या, वाणीऔर ज्ञान की देवी सरस्वती के समर्पण के दिन  केरूप में  हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं  | बसंत पंचमी  के दिनोंमें सरसों के खेत लहलहा उठते हैं इसीलिए लोग इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनते हैं |सम्पूर्ण भारत में माघ शुक्ल पंचमी को “वसंतपंचमी” उत्सव मनाया जाता है।बसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु प्रारंभ होती है | इसे “श्रीपंचमी”, ऋषि पंचमी, मदनोत्सव, वागीश्वरीजयंती और “सरस्वती पूजा का उत्सव” भीकहा जाता है।  वसंत पंचमी के दिन ही होलिका दहन स्थान कापूजन किया जाता है और होली में जलाने के लिए लकड़ी और गोबर के कंडे आदि एकत्र करनाशुरू कर देते हैं। इस दिन से होली तक 40 दिन फागगायन यानी होली के गीत गाए जाते हैं। प्रकृतिकी अनुकम्पा से हमारे भारत में हीनियमित रूप से छः ऋतुएँ होतीहै | योगीराजक्रष्ण ने कहा था में ऋतुओं मे वसंत ऋतु हूँ मुझे वसंत ऋतु सबसे अधिक प्रिय है | इसीलिए इन छः ऋतुओं में वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता  है। इसे ऋतुराज यामधुमास भी कहते हैं। “वसंतपंचमी” प्रकृति के अद्भुत सौन्दर्य, श्रृंगारऔर संगीत की मनमोहक ऋतु यानी ऋतुराज के आगमन की सन्देश वाहक है। वसंत पंचमी के दिनसे शरद ऋतु की विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होने लगताहै। प्रकृति भी नवयौवना की भांति श्रृंगारकरके इठलाने लगती है। पेड़ों पर नई कोपलें, रंग-बिरंगेफूलों से भरी बागों की क्यारियों से निकलती भीनी सुगंध, पक्षियोंके कलरव और पुष्पों पर भंवरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने लगती है। कोयलकूक-कूक के बावरी होने लगती हैं। बसंतका वर्णन मेरी स्वजन कविता अग्रवाल ने इस प्रकार किया है :- उर्वी ने किया अनुपमश्रृंगार फैली हरीतिमा दिग दिगंत | पुष्पोंसे सजे तोरण द्वार कोयलिया गाए राग मल्हार | शिशिर का अब हुआ अंत देखो आएऋतुराज बसंत ।ओढ़ चुनरिया पीली पीली महक रही वो भीनी भीनी | खुशियाँ छाई चहुँ ओर अनंत देखोआए ऋतुराज बसंत। बसंत के अंदर श्रृंगारअपने यौवन पर पहुंच जाता है |  इस वर्ष बसंत पंचमी का पर्व भारत में और संसार मेंजहां जहां सनातन धर्मी रहते हैं वहां 3 फरवरी 2025 को हर्षोल्लास के साथ मनायाजाएगा |

डा. जे. के. गर्गपूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर

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