डुबकी ( व्यंग्य कविता )

लोग गंगा में डुबकी लगाकर पाप धोते हैं,
फिर खुद को पाप मुक्त समझने लगते हैं,
पर गंगा उस पाप को अपने पास रखते नहीं
जलवाष्प बनाकर ऊपर आकाश भेज देते हैं।
जब आकाश को सच्चाई का पता चलता है
तो बारिश बनकर पापियों को लौटा देते हैं,
अरे पापियों डुबकी लगाने पर पाप धुलेंगे नही
मुर्खो पाप कभी भी आपका पीछा छोड़ेंगे नहीं।
गोपाल नेवार,
‘गणेश’सलुवा, खड़गपुर, पश्चिम मेदिनीपुर,
पश्चिम बंगाल।  9832170390.

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