शिक्षा में तेजी से बढ़ते स्मार्टफोन के उपयोग और उसके घातक प्रभावों को लेकर दुनियाभर में हलचल है, बड़े शोध एवं अनुसंधान हो रहे हैं, जिनके निष्कर्षों एवं परिणाम को देखते हुए कड़े कदम भी उठाये जा रहे हैं। शोध एवं अध्ययनों के तथ्यों ने चौंकाया भी है एवं चिन्ता में भी डाला है। पाया गया कि जो छात्र अपने फोन के करीब रहकर पढ़ाई करते हैं, उन्हें ध्यान केंद्रित करने में बहुत मुश्किल होती है, भले ही वे इसका उपयोग न कर रहे हों। स्मार्टफोन के उपयोग से नींद की गुणवत्ता कम होने, तनाव बढ़ने, एकाग्रता बाधित होने, स्मृति लोप होने, अवांछित सामग्री का अधिक उपयोग करने, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ने जैसे खतरे उभरें हैं। इन बढ़ते खतरों को देखते हुए दुनियाभर में कम से कम 79 शिक्षा प्रणालियों ने स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिसे लेकर, कई देशों में बच्चों की शिक्षा और निजता पर इसके प्रभाव को लेकर बहस जारी है। ‘संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन’ (यूनेस्को) की वैश्विक शिक्षा निगरानी (जीईएम) टीम के अनुसार, 60 शिक्षा प्रणालियों या वैश्विक स्तर पर पंजीकृत कुल शिक्षा प्रणालियों का 30 प्रतिशत ने विशेष कानूनों या नीतियों के माध्यम से 2023 के अंत तक स्कूलों में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगा दिया है। भारत में अभी इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया है।
सर्वेक्षण के आंकड़े यह संकेत देते हैं कि डिजिटल शिक्षा और स्मार्टफोन के इस्तेमाल में बच्चों की भागीदारी तेजी से बढ़ रही है। यह बदलाव शिक्षा के क्षेत्र में नए अवसर पैदा कर रहा है, लेकिन साथ ही इसके साथ कई चुनौतियाँ भी हैं, डिजिटल शिक्षा को संतुलित और सुरक्षित बनाना आने वाले समय में एक प्रमुख चुनौती है। डिजिटल शिक्षा के बढ़ते प्रभाव के साथ, यह आवश्यक हो गया है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट का सही, संयमपूर्ण और सुरक्षित उपयोग सुनिश्चित किया जाए ताकि बच्चों का विकास सही दिशा में एवं समग्रता से हो। निस्संदेह, शिक्षा के बाजारीकरण और नए शैक्षिक प्रयोगों में मोबाइल की अपेक्षाओं को महंगे स्कूलों ने स्टेटस सिंबल बना दिया है। लेकिन हालिया वैश्विक सर्वेक्षण बता रहे हैं कि पढ़ाई में अत्यधिक मोबाइल का प्रयोग विद्यार्थियों के लिये मानसिक व शारीरिक समस्याएं पैदा कर रहा है। सर्वविदित है कि विभिन्न ऑनलाइन शैक्षिक कार्यक्रमों के चलते छात्र-छात्राओं में मोबाइल फोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। तमाम पब्लिक स्कूलों ने ऑनलाइन शिक्षा के लिए मोबाइल फोन का इस्तेमाल अनिवार्य तक बना दिया है। कमोबेश सरकारी स्कूलों में ऐसी बाध्यता नहीं है। लेकिन वैश्विक स्तर पर किए गए सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आया है कि स्मार्टफोन एक हद तक तो सीखने की प्रक्रिया में मददगार साबित हुआ है, लेकिन इसके नकारात्मक प्रभावों को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने से पढ़ाई में बाधा आती है, नैसर्गिक शैक्षणिक गुणवत्ता आहत होती है।
भारत में 21 राज्यों के ग्रामीण समुदायों में 6-16 वर्ष की आयु के स्कूली बच्चों के 6,229 अभिभावकों के बीच किए गए अखिल भारतीय सर्वेक्षण से पता चला कि अधिकतर बच्चे पढ़ाई के बजाय मनोरंजन एवं अश्लील सामग्री के लिए स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि जिन छात्रों के पास गैजेट्स हैं, उनमें से 56.6 प्रतिशत ने डिवाइस का इस्तेमाल मूवी डाउनलोड करने और देखने के लिए किया, जबकि 47.3 प्रतिशत ने उनका इस्तेमाल संगीत डाउनलोड करने और सुनने के लिए किया। सर्वेक्षण से पता चला है कि ग्रामीण भारत में 49.3 प्रतिशत छात्रों के पास स्मार्टफोन की पहुंच है, लेकिन उनमें से केवल 34 प्रतिशत ही पढ़ाई के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं।
वैश्विक स्तर पर, आज दुनिया भर में 6.378 बिलियन स्मार्टफोन उपयोगकर्ता हैं-जो कि कुल आबादी का लगभग 80.69 प्रतिशत है। इसमें दो मत नहीं कि एक समय महज बातचीत का जरिया माना जाने वाला मोबाइल फोन आज दैनिक जीवन की जरूरतों को पूरा करने वाला बेहद जरूरी उपकरण बन चुका है। खासकर कोरोना संकट के चलते स्कूल-कालेजों के बंद होने के बाद तो यह पढ़ाई का अनिवार्य हिस्सा बन गया। आललाइन कक्षाओं के बढ़ते प्रचलन में लगने लगा था कि इसके बिना तो पढ़ाई संभव ही नहीं है। लेकिन नादान बच्चों के हाथ में मोबाइल बंदर के हाथ में उस्तरे जैसा ही साबित हुआ है। निश्चित तौर पर ये उनके भटकाव, गुमराह, दिग्भ्रमित और मानसिक विचलन का कारण भी बना है। इसी कारण कई देशों में स्कूलों में स्मार्टफोन पर बैन लगा दिया है, क्योंकि इन देशों का मानना है कि यह बच्चों की शिक्षा और उनकी गोपनीयता पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
अनेक देशों में हुए सर्वेक्षणों ने स्मार्टफोन के उपयोग से विद्यार्थियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर चिंता जतायी है। इनकी रिपोर्ट एवं चौंकाने वाले तथ्य भारत में शिक्षा के नीति-नियंताओं की आंख खोलने वाले हैं। यूनेस्को की टीम के मुताबिक बीते साल के अंत तक कुल पंजीकृत शिक्षा प्रणालियों में से चालीस फीसदी ने सख्त कानून या नीति बनाकर स्कूलों में छात्रों के स्मार्टफोन के प्रयोग पर रोक लगा दी है। दरअसल, आधुनिक शिक्षा के साथ आधुनिकीकरण एवं विकास की अपेक्षा को दर्शा कर तमाम पब्लिक स्कूलों में मोबाइल के उपयोग को अनिवार्य बना दिया गया। निस्संदेह, आधुनिक समय में स्मार्टफोन कई तरह से शिक्षा में मददगार है। लेकिन यहां प्रश्न इसके अनियंत्रित एवं अवांछित प्रयोग का है। साथ ही दुनिया में अनियंत्रित इंटरनेट पर परोसी जा रही अनुचित, अश्लील, अनुपयोगी सामग्री और बच्चों पर पड़ने वाले उसके दुष्प्रभावों पर भी दुनिया में विमर्श जारी है। मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग छात्रों के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य के लिए बुरा है तथा इसके लगातार उपयोग से चिंता का स्तर बढ़ता है, आत्म-सम्मान कम होता है तथा अकेलेपन की भावना बढ़ती है। इसका अंधाधुंध व गलत उपयोग घातक भी हो सकता है। दरअसल, स्मार्टफोन में वयस्कों से जुड़े तमाम एप ऐसे भी हैं जो समय से पहले बच्चों को वयस्क बना रहे हैं। उन्हें यौन कुंठित बना रहे हैं। बड़ी चुनौती यह है कि बच्चों की एकाग्रता भंग हो रही है। बच्चों में याद करने की क्षमता घट रही है।
बदलते शैक्षणिक परिदृश्यों में जब शिक्षा में स्मार्टफोन का उपयोग टाला नहीं जा सकता, लेकिन उसका नियंत्रित उपयोग तो किया ही जा सकता है। निस्संदेह उसका उपयोग सीमित एवं संयमपूर्वक किया जाना नितांत अपेक्षित होना चाहिए। संकट यह भी कि मोबाइल पर खेले जाने वाले ऑन लाइन गेम जहां बच्चों को मैदानी खेलों से दूर कर रहे हैं, वहीं स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डाल रहे हैं। हमें किसी भ्रम में नहीं रहना चाहिए। पूरी दुनिया में बढ़ता मोबाइल फोन का प्रचलन एक संकट है एवं एक चुनौती है। क्या हम वाकई सोचते हैं कि छात्रों को स्कूल में ज्यादा स्क्रीन टाइम की ज़रूरत है? कुछ सर्वेक्षण के परिणामों ने विश्वविद्यालय के संसाधनों और शैक्षणिक जानकारी तक मोबाइल पहुँच के लिए छात्रों की बढ़ती माँग को प्रदर्शित किया, साथ ही अपने साथियों और प्रशिक्षकों के साथ तेज़, व्यक्तिगत, इंटरैक्टिव डिजिटल संचार की बढ़ती ज़रूरतों को भी दर्शाया। भारत में स्मार्टफोन के उपयोग को बैन करने का निर्णय जल्दबाजी में न हो, पहले अनुसंधान हो, परामर्श किया जाना चाहिए तथा उनके अनुप्रयोग पर गहन विचार किया जाना चाहिए। निश्चित तौर पर स्मार्टफोन छात्र-छात्राओं का सहायक तो बन सकता है, लेकिन सबकुछ इसके भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। इससे छात्रों की स्वतः स्फूर्त मेधा कुंद होने का खतरा है। छात्र जीवन को तकनीक का वन नहीं, बल्कि पुरुषार्थ और प्रतिभा का उपवन बनाये। वृक्ष भी जीते हैं, पशु-पक्षी भी जीते हैं, परन्तु वास्तविक जीवन वे ही जीते हैं, जिनका मन मनन का उपजीवी हो। मननशीलता की संपदा मानव को सहज उपलब्ध है, जिसका अधिकाधिक उपयोग और विकास कर जीवन को सार्थक दिशा प्रदान करें। प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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