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उस स्थान पर अपने धंधे में गधे को वाहन के रूप में इस्तेमाल करने वाली तीन- चार जातियाँ मुख्य थी। एक बार उनमें से एक आदमी किसी काम से दिल्ली गया। वहां ITO पुल के पास एक बोर्ड देखा जिस पर लिखा था “यहाँ हाथी रहते हैं” बोर्ड पर यह नही दर्शाया गया था कि गोया यह सूचना राजधानी में रहने वाले सफेद हाथियों के लिए थी या दूसरे सभी हाथियों के बारें में, खैर,
जब वह व्यक्ति अपने मूल निवास पर लौटा तो धंधे संबधी रोज रोज की पूछताछ से बचने के लिए उसने अपनी कोलोनी में एक बोर्ड लगा दिया जिस पर लिखा था “यहाँ गधें रहते हैं”.
इस बोर्ड को पढ कर उसकी कोलोनी के ही कुछ लोगों ने एतराज किया कि इस इ तो इस बोर्ड से गलत संदेश जायेगा कि यहां सिर्फ गधें ही रहते हैं अत: बोर्ड में सुधार करके लिखा गया कि ” यहाँ गधें भी रहते हैं “
हर जगह अलग अलग सोच के व्यक्ति होते है। वही कुछ लोगों ने “भी” शब्द पर एतराज किया और अंत में बोर्ड पर लिखा गया “हमारे यहाँ गधें रहते हैं”
कुछ दिनों बाद वहां से गुजरने वाले राहगीरों ने बोर्ड को देख कर सलाह दी कि बोर्ड पर”हमारे यहां ” शब्द की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जो कुछ है आपके यहाँ ही है। आपको किसी और से तो मतलब है नहीं।
अब लोगों की सलाह पर बोर्ड पर लिखा रह गया गधें रहते हैं “
कुछ दिनों बाद वहां से नगर निगम के कर्मचारी निकले तो “रहते है” शब्द को देख कर वहां के निवासियों को बताया कि गधें रहते हैं तो House Tax लगेगा। यह हमारे नियमों में है। इस तरह की बहस-मुसाहिबो के बाद यह तय हुआ कि “रहते हैं” शब्द को भी हटा लिया जाए।
अब बोर्ड पर रह गया सिर्फ
“गधें”
और उसके नीचे पहले से ही गधें खडे़ रहते थे।
अधिक जानकार विशेषज्ञों ने आकर सलाह दी कि आपने यह क्या करा रखा है? ऊपर बोर्ड पर लिखा है “गधें” और नीचे गधें खड़े ही है यह तो सबको दिख ही रहा है। क्यों ख्वामखाह बोर्ड लगा रखा है?
इस झिकझिक से निजात पाने के लिए आखिरकार वह बोर्ड भी वहां से हटा दिया गया।
पहले भी सिर्फ गधें ही थे अब भी महज गधें ही रह गए।