
जैसे ओम् तत्सत्, वैसे ही गुरु ओम् तत्सत्। सिद्ध कर लो तो बेड़ा पार है। तत्शषसत् यानि ब्रह्म। जिसमें तत्सत् का ज्ञान और परम शक्ति (ऊर्जा) अवतरित होती है उसे अवतार कहते हैं। ऐसे ही जिसमें इस तत्सत् को बोध करा देने वाली क्षमता उतरती है, उसे गुरु कहते हैं। …और जो इस सत्ता को जानना चाहता है उसे साधक कहा गया है। गुरु में सूक्ष्म आंतरिक शक्तियां सक्रिय होती हैं और वह शिष्य की ऐसी ही सूक्ष्म शक्तियों को सक्रिय कर देता है। इसलिए गुरु ओम् तत्सत् कहा गया है।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि देहधारी महात्माओं के मुंह से मैं स्वयं बोलता हूं। निराकार ब्रह्म में परम ज्ञान ही दिव्य प्रकाश और वैश्विक कार्य शक्ति ही ऊर्जा है। इधर गुरु तत्व से युक्त देहधारी मनुष्य भी परम का बोध कराता है तथा उसके अनुसार श्रेष्ठ समाज के सृजन के लिए प्रवृत्त करता है। इसलिए गुरु ओम् तत्सत् कहा गया है।
– दृष्टांत –
देवर्षि नारद ने लुटेरे रत्नाकर को जगा कर महर्षि वाल्मीकि बना दिया। इन्होने रामायण लिख दी। वेदव्यास ने सूत जाति के मनुष्य लोम हर्षण (या रोमहर्षण) को ज्ञान दिया और कथावाचक सूत जी के नाम से अमर कर दिया। ऐसे ही गोविंद प्रभुपाद स्वामी ने बालक शंकर के हृदय में ज्ञान उतारा और भारत को आदि जगतगुरु शंकराचार्य जैसा अद्भुत आचार्य मिल गया। गौतमबुद्ध ने हत्यारे अंगुलीमाल को साधु बना दिया और नगरवधू आम्रपाली को साध्वी (भिक्षुणी) बना दिया – यह नहीं कहा कि तू हत्यारा है तथा तुम विलासिनी हो। नज़र भर कर देखा और शुद्धिकरण हो गया। स्वामी नरहरि ने अनाथ बालक रामबोला को गोस्वामी तुलसीदास बना दिया। ऐसे अनेक दृष्टांत हैं जो गुरु की महिमा को स्थापित करते हैं।
मेरे गुरुदेव सूफी संत हज़रत हरप्रसाद मिश्रा थे। उन्होंने दीक्षा के वक्त कुछ मुरीदों पर शक्तिपात किया था। उन्हें आज्ञा चक्र पर स्थिर कर दिया। फिर ध्यानावस्था में सारे देवी-देवताओं के दर्शन कराते हुए प्रकाश के गोले तक ले गए और बोले कि इसी दिव्य रोशनी का ध्यान करना है। निरंतर अभ्यास करते हुए वहां तक खुद पहुंचना है। परम सत्ता के आदेश से किसी को तो गुरु तत्काल पूर्ण जाग्रत कर देता है। ऊपर लिखे गए उदाहरण ऐसे ही हैं।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि तू मेरे भरोसे हो जा, मैं तुझे तार दूँगा। वे यह नहीं कहते हैं कि तुम अभी योग्य नहीं हो। वे तो आश्वस्त करते हैं कि तू बड़े से बड़ा पापी है तो भी मेरी शरण में आने से पाप मुक्त हो जाएगा। गुरु भी वही जो अपने संकल्प से या अपनी रूहानी नज़र से शिष्य का अज्ञान दूर कर दे और आत्म कल्याण के पथ पर चला दे। ऐसा ही गुरु तत्सत् (ब्रह्म रूप) है और ज्योति रूप ब्रह्म के साकार दर्शन भी ऐसे ही महात्मा में होते हैं।

गुरु के पास जो भी मनुष्य जाता है, उसके भूत-भविष्य-वर्तमान को देखकर उसी के अनुसार दीक्षा मंत्र देता है। उसके नियमित जाप से संचित कर्म कटते हैं तथा आंतरिक शक्तियां सक्रिय होती रहती हैं। आप यदि धैर्यपूर्वक गुरु भाव में स्थिर रहते हैं तो भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति जरूर होती है।
जिसे सदगुरु नहीं मिला हो उनके लिए श्रीकृष्ण ने गीता में 17वें अध्याय के श्लोक 23 – 25 में कहा है कि आज्ञा चक्र पर उनका या अपने इष्ट भगवान का ध्यान करते हुए ओम् तत्सत् का जाप करें। यह मंत्र ब्रह्म का शब्द रूप है। विधिवत् जाप से साकार हो जाता है। मेरे गुरुदेव ने समझाया कि गुरु ओम् तत्सत् मंत्र को सिद्ध कर लेने से सारे कार्य फलित हो जाते हैं – लोक के और परलोक के भी।