
यह उन दिनों की बात है जब पढाई खत्म होने के बाद मैं बरोजगारो के आलम में इधर उधर घूमा करता था।
उस समय न तो गरीबी हटाओ-बेरोजगारी मिटाओ के थोथे नारों का युग था ना ही नौ जवानों को हर साल एक करोड़ नौकरी मिलेगी का जुमला था।
मेरी इस बेकारी के बारे में पडौसियों ने डाबर कम्पनी के मार्कटिंग इन्सपेकटर को बता दिया। एक रोज पूछते पूछते वह मेरे घर आगया और मुझें कहा कि क्या आपको किसी काम- धंधे की तलाश है? मैंने उसे कहा कि कहिये क्या करना है? तो वह बोला कि हमारी डाबर कम्पनी को च्यवनप्राश की बिक्री के लिए विज्ञापन निकालना है, क्या आप यह काम करोगे? मेरे द्वारा यह शंका करने पर कि मैं तो इतना दुबला- पतला हूं, मेरा इसमें क्या रोल होगा? इस पर वह बोला कि हम च्यवनप्राश की शीशी पर आपकी तस्वीर छापते हुए लिखेंगे कि अगर आप हमारा च्यवनप्राश नही खायेंगे तो इनके जैसे हो जायेंगे।