होली पर विशेष लेख

होली पर हो जाना, इस होली पर रे मानव। तुम थोड़ा मानव हो जाना। थोड़े- थोड़े मानव तो सब हैं ही, तुम थोड़े -से,थोड़ा ज़्यादा हो जाना। होली का पर्व बुराई का दहन कर देता है,तभी तो होलिका जल के राख हो गयी थी, तभी तो बुराई का सर्वनाश हो गया था। अच्छाई में कुछ तो आकर्षण है ही, तभी तो लाख बाधाओं को पार करके भी प्रहलाद जीत गया था। तुम्हें ज़्यादा कुछ नहीं करना मानव,तुम्हें बस सच का दामन थामना है,तुम्हें बस मानवता की मशाल थामनी है,तुम्हें बस रोते को हंसाना है, तुम्हें बस भूखे को खिलाना है,तुम्हें बस हारे को जीताना है,तुम्हें बस आभासी दुनिया से बाहर आना है,तुम्हें असली दुनिया का असली मानव बन जाना है जो दूसरों को गिराने में नहीं, उठाने में विश्वास करता है,जो राह में कांटे बिछाने में नहीं,राह में पुष्प बरसाने में विश्वास करता है,जो अपने साथियों की जीत की ख़ुशी मनाता है,जो दूसरे के दुःख में डुब जाता है,जो डुबते की पतवार बन मझधार से पार लगाता है। सुनो मानव! जब तुम ऐसा मानव बन जाओगे ना तो ईश्वर को भी गर्व होगा अपने निर्णय पर और अपने विश्वास और आस पर कि उन्होंने मानव को वाक़ई में अद्भुत सांचे में ढ़ाला है। ऐसा जब तुम करोगे ना तो पल-पल रंग बदलती इस दुनिया में गिरगिट को मात देते हुए कुछेक के बीच तुम आधार- कार्ड की सी तरह एक दम मानक और स्थायी हो जाओगे,इतने विश्वसनीय कि तुम्हारे आगे हीरे की चमक भी फीकी पड़ जाएगी। तुम्हारे मानवता के प्रयासों से सारी दुनिया में रंग भर जाएंगे और जब ऐसा हो जाएगा तो हर दिन होली और हर दिन धुलंडी होगा और तब फ़िर मानव तुम्हें गुजिया और भी ज़्यादा मीठी लगेगी,एक-दूसरे पर मानवता के प्राकृतिक रंग ऐसे चढ़ेंगे कि आज के कृत्रिम रंग कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे,तो हे मानव! इस होली तुम ऐसा हो जाना कि मिसाल बन जाएं सभी के लिए तुम जैसा हो जाना।
डॉ. नेहा पारीक
सहायक आचार्य , अंग्रेज़ी विभाग
सुबोध महाविद्यालय, जयपुर