श्रीकृष्ण होने का मतलब

शिव शर्मा

कृष्ण कोई एक व्यक्ति नहीं, मानवीय व्यकितत्व के उत्कर्ष की परम अवस्था है। जीवन में प्रेम, ज्ञान, कर्म और सामर्थ्य के अधिकतम सम्भव  विकास का प्रमाण है।  प्रेम के माध्यम से राधा गोपियों को दानलीला (माखन की मटकियां फोड़ना), मानलील (यमुना में नहाती हुई गोपियों के वस्त्र चुरा कर उनके देहाभिमान को मिटाना) के बाद महारास यानी जीव ब्रह्म के एकत्व की अनुभूति करा दी।  कर्म ( प्रेम, युद्ध और स्वयं की देह छोड़ने तक सारे प्रसंगों में अनासकित । ज्ञान (गीता का उपदेश । सामर्थ्य ( सुदर्शन चक्र) । यह होता है कृष्ण होने का अर्थ।  अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से क्षत विक्षत हो गए उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को बचाने के लिए वेद व्यास जी ने कहा कि कोई ब्रह्मचारी मनुष्य ही अपनी ब्रह्म शकित से इसे बचा सकता है। तब कोई भी आगे नहीं आया कि मै ब्रह्मचारी हूं। उस वक्त कृष्ण ने कहा कि मै ब्रह्मचारी हूं। जरा सोचिये कि आठ पत्नियों का पति और कथित अस्सी पुत्रों एवं एक पुत्री का पिता कह रहा है  िकवह ब्रह्मचारी है। इतनी अनासकित  वाली अवस्था में जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य होता है कृष्ण। प्रेम राधा से किया, विवाह रुक्मणि सहित आठ स्त्रियों से ; फिर भी भगवान माने जाते हैं। जिस से प्रेेम किया उसे मुक्त कर दिया। जिनसे विवाह किया उन्हें तार दिया। यह है कृष्ण।

   युद्ध के बाद द्वारका लौटने के लिए राजमाता गांधारी से अनुमति लेने उसके पास गये। गांधारी ने शाप दिया कि 36 साल बाद तुम्हारा यदुकुल भी इसी तरह नष्ट होगा जिस तरह मेरे सौ पुत्र मारे गए हैं। कृष्ण मुसकराते हुए बोले कि आपका शाप स्वीकार है। अब तो ,ारका जाने की अनुमति दे दो। कृष्ण के ऐसे असीम र्धर्य के सामने गांधारी रो पड़ी।  समझो, यह होता है कृष्ण।
    अपने प्रिय सखा एवं बुआ के पुत्र अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया। उसे महाभारत का युद्ध जिताया। फिर भी जब देखा कि अर्जुन का अहंकार जाने वाला नहीं है तो उसकी सारी शति छीन ली – वह गाण्डीव धनुष पर प्रत्यंचा चढाने में भी असमर्थ हो गया।  इतना अलगाव।   और अंत में देह छोड़ने वाले दिन शांत भाव से सारथी दारूथ (?) को कुलाया। महल में किसी को कुछ नहीं कहा। ऐसे निकलक जैसे घूमने जा रहे हों। जंगल में एक स्थान पर रथ ठहराया और सारथी को कहा कि तुम अब आगे तम आना। फिर गहन वन में देह त्याग दीं इस से पहले सुदर्शन चक्र  दुर्वासा मुनि को लौटा किया था। बांसुरी के सातों स्वरों को आकाश में विसर्जन कर दिया। यों स्वयं के प्रति यानी अपने अवतारी व्यक्तित्व के प्रति भी निर्लिपत रहते हुए अपने ही देहांत के साक्षी हो गए।  एक ही मनुष्य में यह सब होना असम्भव की सीमा तक कठिन है लेकिन कृष् ऐसी कठिनतम सम्भावना के भी प्रामाणिक दृष्टांत हैं।  इसीलिए अजमेर के सूफी फकीर बाबा बादामशाह ने कहा था कि कृष्ण जैसा दूसरा अवतार कोई नहीं है।
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