
हम प्रतिदिन लगभग सात-आठ घंटे शयन में व्यतीत करते हैं । नियमित दैनिक क्रियाएँ, स्वाध्याय-पूजा पाठ, जलपान-भोजन, घरेलू-कार्यालय संबंधी कार्य, व्यायाम-टहलना, आत्मीय जनों से भेंट-वार्तालाप इत्यादि के बाद फिर शयन की तैयारी में जुट जाते हैं । दिनभर की इस व्यस्तता में यदि सिर्फ़ दो घंटे का समय और वह भी प्राथमिक स्तर तक अध्ययनरत अपने बच्चों के लिए हम उनकी पढ़ाई पर ध्यान देने के नाम से निकाल लें तो उस बच्चे को आगे हर क्षेत्र में अग्रणी रहने से कोई रोक नहीं सकता, ऐसा मेरा मानना है । बालक के आगे बढ़ने में भाषा या माध्यम कभी बाधक नहीं बनता । जीवन में ऊँचाइयाँ छूने वाले बच्चों का इतिहास उठाकर देखो शिक्षण का माध्यम उनके विकास में कभी रुकावट नहीं बना । महत्व इस बात का है कि बच्चों को घर- विद्यालय में कैसा माहौल मिल रहा है । संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं वाले प्रदेशों में शिक्षा का माध्यम उनकी मातृभाषा है । दुर्भाग्य से हमारी मायड़ भाषा को अभी यह गौरव नहीं मिला है । संघर्ष चल रहा है, आवाज़ उठाई जा रही है निश्चित रूप से हमारी मायड़ भाषा को एक दिन मान्यता अवश्य मिलेगी और हमारे विद्यालयों में भी शिक्षण का माध्यम हमारी मायड़ भाषा होगी अतः यदि आपका बच्चा बोलचाल में मायड़ भाषा का उपयोग करता है तो कभी हीनता महसूस मत कीजिए । हमारी मायड़ भाषा हमारा गौरव है ।