
इस शहर की चौतरफा पहाड़ियाँ आध्यात्मिक ऊर्जा (कॉस्मिक एनर्जी) का केंद्र रही हैं – आंतेड़ माता, चामुंडा माता, खोबरानाथ भैरों, कोटेश्वर महादेव, नौसर माता, तारागढ़ (तारा पीठ, मीरां साहब की दरगाह), मीरशाह अली, बाबा बादामशाह की दरगाह आदि । ऐसी ही रूहानी जगह है शम्भूनाथ की टेकरी। यह सोमलपुर में है। इसी पहाड़ी की जड़ में है बादामशाह कलंदर की दरगाह।
सूफी संत हज़रत हरप्रसाद मिश्रा साहब बताते थे कि आठ सौ साल पहले यहां किन्हीं नाथ योगी शम्भू बाबा ने तपस्या की थी। वह शिवभक्त थे, गोरख पीठ में दीक्षित थे। आकाश मार्ग से यहां आते-जाते थे। उसी तपस्या के प्रभाव से यह पूरी टेकरी रूहानी हो गई। उन्होने और बादामशाह साहब ने इस टेकरी में महादेव शिव के साक्षात विराट दर्शन किए थे।
गुरूदेव ने बताया कि एक बार बादामशाह जी के गुरू हज़रत निजामुलहक साहब यहां आए थे। उन्होंने अपने शिष्य से पूछा कि यहां (टेकरी की तलहटी में) क्या दिख रहा है। तब बाबा बोले कि जमीन से आसमान तक उजाला ही उजाला दिख रहा है। यह सुन कर हुजूर ने कहा कि अपना ठिकाना यहीं बनाओ। परिणाम है बाबा की वर्तमान दरगाह। इतनी चैतन्य है यह टेकरी और उसकी तलहटी।
यह पूरी पहाड़ी कभी-कभी सोने के रंग जैसी दिखती है। यह यहीं के तेजस तत्व का संकेत है। हज़रत मिश्रा जी के अनुसार यह पहाड़ी इधर-उधर सरकती भी है। तब मेघ गर्जन जैसा नाद सुनाई देता है। इसे यहां तप करने वाले शंभूनाथ बाबा के नाद योग का दीर्घ कालीन असर बताया जाता है।
ऐसी अनुभूति बाबा के एक मुरीद फतेहचंद जी मिश्रा को भी हुई थी। उन्होंने यह बात इस लेखक को कही थी। फतेहचंद जी ने तो बाबा बादामशाह को निजामुल हक कलंदर की मजार से बात करते हुए भी देखा था।
इस क्षेत्र मे अलीशाह की गुफा भी है। अलीशाह का भी इस शहर में बहुत नाम रहा है। अजमेर के आधुनिक सूफी संतों मे गफूर बाबा, गुलाब शाह, टाट शाह, मीर शाह, ताज्जुद्दीन बाबा, रामदत्त जी मिश्रा आदि भी आदरणीय रहे हैं।