भारत-पाक तनाव: दो हिस्सों में बंटे इस्लामी देश

मुजफ्फर अली
भारत के साथ इस्लामी देशों के संबंध पहले भी मजबूत रहे हैं और वर्तमान में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश नीति और बोल्ड छवि के चलते अच्छे हैं, विशेषकर सउदी अरब के साथ भारत के संबंध जितने मजबूत आज हैं उतने पहले नहीं रहे। संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, मलेशिया, कतर, ईरान, ईराक, सीरीया के साथ हमारे संबंध बेहतर है। भारत पाकिस्तान के बीच बने तनाव में इस्लामी देशों ने तटस्थता दिखाई। लेकिन उपर से दिखने वाली तटस्थता अंदरखाने असमंजस भरी थी कि भारत का समर्थन करें या ना करें। इसलिए कूटनीति से निर्णय लिया गया। अधिकतर इस्लामी देश इजरायल को पसंद नहीं करते हैं इसके कारण बहुत से हैं जिन्हे यहां विस्तार देना संभव नहीं है। इजरायल खुले में भारत का समर्थन दे रहा है तो इसलिए इस्लामी देश भारत को खुला समर्थन देने में झिझकते रहे दूसरे पाकिस्तान से रिश्ते भी उन्हे रोके हुए हैं। भारत और पाकिस्तान ने फिल्हाल सीजफ़ायर की घोषणा कर दी है। करीब 86 घंटे चले युद्व जैसे हालात में दोनों देशों को अपनी सामरिक ताकत दिखाने का मौका मिला। इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत की ताकत के आगे पाक बौना साबित हुआ है। इस युद्व जैसे हालात में जो सबसे खास बात देखने को मिली वो थी दुनिया के बाकी देशों का रवैया। अगर और गहराईं में जाएं तो दुनिया के बाकी देशों ने भारत पाक से तनाव को रोकने की रस्मी अपील ही की। लेकिन असल में दुनिया दो हिस्सों में बटीं नजर आई। बटीं हुई दुनिया के देशों ने अघोषित रुप से अपने प्रतीकात्मक प्रतिनिधी बना लिए जो भारत और पाक को समर्थन कर रहे थे। ये दो देश थे तुर्की और इजरायल। तुर्की इस्लामी देशों का खामोश प्रतिनिधी बना तो इजरायल अघोषित रुप से गैर इस्लामी व इसाई देशों का। तुर्की खुलकर पाकिस्तान के साथ था और इजरायल भारत के साथ। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब में भारत के राजदूत रहे तलमीज अहमद से जब पूछा कि तुर्की खुलेआम पाकिस्तान की मदद क्यों कर रहा है? तो तलमीज अहमद का जवाब था कि पाकिस्तान के साथ इस्लाम के आधार पर तुर्की की वैचारिक करीबी है। इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी का बयान पर नजर डालें तो साफ दिखता है कि वो भारत और पाक के बीच कश्मीर को एक मुद्दा मानता है। गौरतलब यह है कि आईओसी संगठन में सउदी अरब का दबदबा है और सउदी अरब भारत का गहरा दोस्त रहा है और वर्तमान में भी सउदी अरब के शाह सलमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपना अच्छा दोस्त मानते हैं। सउदी अरब और भारत के बीच व्यापारिक और सांस्$कृतिक संबंध बहुत पुराने और गहरे हैं। बावजूद इसके सउदी अरब ने युद्व के दौरान पाक के विरुद्व कोई बयान नहीं दिया। इसे यूं समझें कि तुर्की चाहता है कि वो इस्लामी देशों का नेता बनें और सउदी अरब का वर्चस्व खत्म हो और इसीलिए तुर्की ने मलेशिया, पाकिस्तान, तुर्की और ईरान के साथ मिलकर एक अलग इस्लामी संगठन बनाने का प्रयास किया जिसका अध्यक्ष वो खुद बन सके लेकिन सउदी अरब ने पाकिस्तान को इशारा कर तुर्की के संगठन में शामिल होने से रोक दिया। सउदी अरब पाकिस्तान को इतनी आर्थिक मदद देता है जितनी तुर्की ने कभी नहीं दी होगी इसलिए पाक ने सउदी अरब का कहना माना। पाकिस्तान तुर्की को उतना ही महत्व देता है जितना सउदी अरब चाहता है। अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत के साथ युद्व में सउदी अरब ने क्यों पाकिस्तान के खिलाफ बयान नहीं दिया, इसका मतलब तुर्की जब पाक के साथ खड़ा हुआ तो सउदी अरब की स्वीकार्यता उसमें शामिल थी। सात मई 2025 को भारत ने पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई की तो ओआईसी ने बयान जारी कर चिंता जताई और कहा था कि भारत ने पाकिस्तान पर जो आरोप लगाए हैं, उन्हें लेकर कोई सबूत नहीं हैं। सबसे अहम बात है कि ओआईसी ने कश्मीर को दोनों देशों के बीच अहम मुद्दा बताया।
दूसरी ओर इजरायल का खुला समर्थन हमारे देश के साथ था। कारण स्पष्ट था, इजरायल के साथ हमारे देश के पिछले चार दशकों में बेहतर संबंध हुए हैं, रेगिस्तान में हरियाली की तकनीक इजरायल ने हमें दी। इजरायल के साथ सामरिक और व्यापारिक समझौते भी हैं , दूसरा कारण इजरायल की कूटनीति। तुर्की, ईरान दोनों आतंकी संगठन हमास को समर्थन करते हैं, हमास इजरायल में आतंकी हमले करता है, पाक के साथ हमास का कनेक्शन भी सामने आया है इस लिहाज से इजरायल हमारे समर्थन में खड़ा हुआ। इजरायल के पीछे फ्रांस ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपिये देश हैं जो कथित तौर से इस्लामिक आंतकवाद से पीडि़त हैं। अब बची तीन महाशक्तियां, अमेरिका, रुस और चीन। पिछला सात दशक का इतिहास उठाकर देंखें तो भारत के साथ रुस के जब जब संबंध प्रगाड़ बनें तो अमेरिका ने हमसें दूरी बनाई और पाक के करीब गया और जब भारत अमेरिका के संबंध अच्छे बनें तो रुस ने पाक में दिलचस्पी दिखाई। वर्तमान हालात में रुस कूटनीति भारत और पाक दोनों से बराबर अच्छे संबंध बनाकर चलने की है क्योंकि उसे दक्षिण एशिया में अमेरिकी दखल को सीमित करना है। चीन भी अमेरिका के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए पाक का सहारा चाहता है वहीं हमारे साथ अभी उसके रिश्ते असमान्य हैं इसलिए वो पाक के समर्थन में है। अमेरिका के हित भारत से भी हैं तो पाक से भी। वर्तमान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पाक प्रधानमंत्री शाहबाज से अच्छे संबंध हैं यही कारण है कि अमेरिकी की बात पर भारत पाक के बीच उच्च स्तरीय अधिकारीयों के बीच बात हुई और युद्व विराम की सहमति बनी।
लेखक भारत और इस्लामी देशों के संबंधों पर टिप्पणीकार,
ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के सदस्य तथा द न्यूज मिरर इंडिया के एडिटर हैं

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