प्रकृति एवं जीवन रक्षा के लिये नदियों का संरक्षण जरूरी

भारत में कई नदियां सूखने या प्रदूषित होने के कारण मरने के कगार पर हैं। इन नदियों की हालत इतनी खराब हो गई है कि कुछ तो नालों में बदल गई हैं और उनका नदी होना भी मुश्किल है। नदियों के सूखने और प्रदूषित होने के कारणों में मुख्य हैं, अत्यधिक पानी का दोहन, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन। नदियां जीवन का आधार है, लेकिन तेजी से बढ़ते प्रदूषण, तथाकथित भौतिकवादी सोच एवं नदियों के प्रति उपेक्षा एवं दोहन के कारण कई नदियां अब ‘मृत’ होने की कगार पर है। गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी दुनिया की प्रदूषित नदियों में शामिल हो चुकी है। राष्ट्रीय स्तर पर नदी प्रबंधन, नदी प्रदूषण और नदी संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर लोगों को जागरूक करना नितांत आवश्यक है। नदियां के अत्यधिक ख़तरे में होने से मानव जीवन, पर्यावरण एवं प्रकृति भी संकट में है। जरूरत है मानसूनी जल को नदियों से जोड़ने एवं संरक्षित करने की।
देश में सर्वत्र नदियों का अस्तित्व खतरे में है। विशेषतः उत्तर प्रदेश में नदियों की संख्या लगभग 1,000 है, जिनका 55 हजार किलोमीटर का नेटवर्क है। उनमें से 30 हजार किलोमीटर क्षेत्र में जल घटा है या सूखा है। प्रदेश की 100 छोटी और सहायक नदियां सूख चुकी हैं। बिहार की 50 से अधिक नदियां संकट में हैं। इनमें 32 बड़ी नदियां सूख चुकी हैं, जबकि 18 में पानी थोड़ा बचा है। यमुना नदी भारत की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है और यह अत्यधिक प्रदूषण और पानी के अत्यधिक दोहन के कारण मरने के कगार पर है। साहिबी नदी, जो कभी दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान की एक महत्वपूर्ण नदी थी। ओडिशा में कई नदियां सूख रही हैं और प्रदूषित हो रही हैं, जिससे वहां के पर्यावरण और लोगों के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। हैरानी की बात है कि गंगा, सोन और अघवारा जैसी बड़ी नदियों में भी पानी कम है। उत्तराखंड में अल्मोड़ा-हल्द्वानी की लाइफलाइन कोसी और गौला नदियों का जलस्तर कम हो रहा है।
महानदी बचाओ आंदोलन और ओडिशा नदी सुरक्षा समिति द्वारा आयोजित ओडिशा नदी सुरक्षा सम्मेलन में राज्य की नदियों की बिगड़ती स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। सरकार से एक समग्र नदी नीति बनाने एवं ओडिशा एवं अन्य प्रांतों की नदियों की स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की पुरजोर मांग उठी। पर्यावरणविद् राजेन्द्र सिंह ने कहा, “ओडिशा की कई नदियां मरने के कगार पर हैं। अगर नदियों का स्वास्थ्य नहीं सुधरा, तो मानव का स्वास्थ्य भी नहीं बचेगा।’ बात केवल ओडिशा की ही नहीं है, बल्कि सभी प्रांतों में सिंचाई, औद्योगिक उपयोग और घरेलू जरूरतों के लिए नदियों से अत्यधिक पानी निकाला जा रहा है, जिससे नदियों में पानी की कमी हो गई है। औद्योगिक कचरा, सीवेज और कृषि अपवाह नदियों में प्रवाहित हो रहा है, जिससे पानी प्रदूषित हो रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा के तरीकों में बदलाव आया है, जिससे कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति बढ़ गई है और नदियों में पानी का प्रवाह कम हो गया है। नदियों से रेत का अवैध खनन भी नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचा रहा है और नदियों के बहाव को बदल रहा है। जंगलों की कटाई से मिट्टी का कटाव बढ़ रहा है, जिससे नदियों में गाद जमा हो रही है और उनकी गहराई कम हो रही है।
भारत नदियों का एक अनोखा देश है जहां नदियों को पूजनीय माना जाता है। गंगा, यमुना, महानदी, गोदावरी, नर्मदा, सिंधु (सिंधु), और कावेरी जैसी नदियों को देवी-देवताओं के रूप में पूजा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में बनाया गया जल शक्ति मंत्रालय, नदी घाटियों में आर्द्रभूमि के पुनरुद्धार और संरक्षण और नदी प्रदूषण के खतरनाक स्तर से निपटने पर ध्यान केंद्रित करता है। देश के समक्ष वाटर विजन 2047 प्रस्तुत किया गया है यानी आजादी के सौ वर्ष पूरे होने तक देश को प्रत्येक वह कार्य करना है, जो देश को पानी के मामलों में सबल बना सके। इसमें हमारी नदियां भी शामिल हैं। हमें अपनी नदियों को 2047 तक निर्मल व अविरल बनाने के संकल्पित लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ना होगा। भारत की नदियों की दिन-ब-दिन बिगड़ती हालत एवं बढ़ते प्रदूषण पर पिछले चार दशकों से लगभग हर सरकार कोरी राजनीति कर रही है, प्रदूषणमुक्त नदियों का कोई ईमानदार प्रयास होता हुआ दिखाई नहीं दिया है।
नदियां हमारे जीवन की जीवन रेखा है, गति है, ताकत है। ये पानी, बिजली, परिवहन, मछली और मनोरंजन के लिए स्रोत हैं। नदियां पर्यावरण के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद हैं। नदियों के किनारे बसे शहरों की वजह से ये आर्थिक रूप से भी अहम हैं, इनसे ताज़ा पीने का पानी मिलता है, बिजली बनती है, खेती के लिए ज़रूरी उपजाऊ मिट्टी मिलती है। नदियों से जल परिवहन होता है। नदियां मरेंगी तो समाज मर जाएगा। नदियों पर खतरे के तीन बड़े कारण हैं और इन्हें पुनर्जीवन के लिए सरकारी एवं सामाजिक स्तर पर गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है। देश में जनसंख्या का दबाव बढ़ने के साथ ही जमीनों की कीमतें बढ़ीं, इसके साथ ही नदी किनारे भूमि पर अतिक्रमण, सिंचाई के लिए भूजल शोषण और नगरों के गंदों नालों से बढ़ता प्रदूषण नदियों के लिए गंभीर खतरा बन गए और छोटी बड़ी तमाम नदियां सूख रही है। कई नदियां बेमौत मर गईं। केंद्र व प्रदेश की सरकार को सबसे पहले नदियों की जमीन का सीमांकन व चिह्नांकन कराने के साथ ही राजस्व नक्शे में नोटिफिकेशन करना चाहिए। तभी कुछ सुधार की संभावना है।
नदियां मानव अस्तित्व का मूलभूत आधार है और देश एवं दुनिया की धमनियां हैं, इन धमनियों में यदि प्रदूषित जल पहुंचेगा तो शरीर बीमार होगा, लिहाजा हमें नदी रूपी इन धमनियों में शुद्ध जल के बहाव को सुनिश्चित करना होगा। नदियों को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किये जाने की जरूरत है। देश में नदी जल एवं नदियों के लिए कानून बने हुए है, आवश्यक हो गया है कि उस पर पुनर्विचार कर देश के व्यापक हित में विवेक से निर्णय लिया जाना चाहिए। हमारे राजनीतिज्ञ, जिन्हें सिर्फ वोट की प्यास है और वे अपनी इस स्वार्थ की प्यास को इस पानी से बुझाना चाहते हैं। नदियों को विवाद बना दिया है, आवश्यकता है तुच्छ स्वार्थ से ऊपर उठकर व्यापक मानवीय हित के परिप्रेक्ष्य मंे देखा जाये। यह किसी से छिपा नहीं है कि हमारे देश में गर्मी और लू के दिन जहां बढ़ रहे हैं, वहीं बरसात के दिन घटते जा रहे हैं। अब जलवायु परिवर्तन की मार देश के दूरस्थ अंचल तक दिख रही है। ऐसे में मानसूनी वर्षा के जल को यदि सलीके से नहीं सहेजा गया तो देश की सामाजिक-आर्थिक-प्राकृतिक स्थिति पर जल-संकट का बड़ा घातक प्रभाव होगा। नदियों के लिए ताजा पानी उपलब्ध कराने, जैव विविधता को बढ़ावा देने से लेकर जलवायु को नियंत्रित करने और सांस्कृतिक परंपराओं को बनाए रखने तक स्वस्थ, निर्मल एवं पवित्र मुक्त बहने वाली नदियां को संरक्षित करना जरूरी है। तालाब संरक्षण की बात तो सभी करते हैं, लेकिन आज जरूरी है कि छोटी नदियों की भी सुध ली जाए।
आज गंदे पानी को नदी जल से अलग रखने के विषय पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस गंदे पानी को उपचारित करके उसे कृषि कार्यों व उद्योगों में उपयोग में लाया जा सकता है। हमारी जिन नदियों ने नालों का रूप धारण कर लिया है, उन्हें पुनः नदी बनाने की जरूरत है, नदियों के प्रति मित्रवत व्यवहार रखना तथा उनकी चिंता करना जरूरी है। हम नदियों की रक्षा में अग्रणी समुदायों और नागरिक समाज के आंदोलनों को मजबूत करना होगा। मजबूत डेटा और साक्ष्य उत्पन्न करने के लिए खोजी अनुसंधान को बल देना होगा। विनाशकारी परियोजनाओं का पर्दाफाश करने और उनका विरोध करने के अभियानों को स्वतंत्र और निडर बनाये। अगर इस ग्रह पर कोई जादू है तो वह पानी में है। यह हमें अपनी अर्थव्यवस्था के एक हिस्से के रूप में व्यापार और वाणिज्य के लिए सस्ता और कुशल अंतर्देशीय परिवहन भी प्रदान करता है। यह पृथ्वी पर सबसे विविध और लुप्तप्राय वन्यजीवों में से कुछ का घर भी है।
प्रे्षकः
     (ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार एवं स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
25 आई॰ पी॰ एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
फोनः 22727486, 9811051133

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