(डॉक्टर्स डे)
डॉक्टर्स दुवारा मानव एवं पशुओं के सुस्वास्थ्य के लिए दी गई अमूल्य सेवा और योगदान के बारे में जनसाधारण को जागरूक करने के लिये प्रतिवर्ष भारत में 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (डॉक्टर्स डे) मनाया जाता है | भारत के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ बिधान चन्द्र रॉय को श्रद्धांजलि और सम्मान देने के लिये 1 जुलाई को उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर इसे मनाया जाता है । डॉ.बी.सी.रॉय का जन्म 1 जुलाई 1882 को बिहार के पटना में हुआ था। डा.रॉय ने 1911 में एक चिकित्सक के रुप में अपने चिकित्सा जीवन प्रारम्भ किया था। वो एक प्रसिद्ध चिकित्सक तथा प्रख्यात शिक्षाविद् होने के साथ ही स्वतंत्रता सेनानी भी थे | महात्मा गांधी के सम्पर्क में आने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के नेता बने और उसके बाद पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। इस दुनिया में अपनी महान सेवा देने के बाद 80 वर्ष की आयु में 1962 में अपने जन्मदिन के दिन ही उनकी मृत्यु हो गयी। उनके सम्मान में वर्ष 1976 में उनके नाम पर डॉ.बी.सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रारम्भ किया गया।

माँ हमारे जीवन की सबसे पहली डॉक्टर है जो जीवन भर हमारी देखभाल करती है | ईश्वर सबके जीवन की रक्षा खुद से नही कर पाते इसलिए इस धरती पर अपने दूत के रूप में डॉक्टर को भेज दिया। बीमारी से लड़ने की ताकत एक डॉक्टर ही हमे देता है। वो इन्सान डॉक्टर ही होता है जो रोते हुए आये मरीज को हँसाते हुए भेजता है। जीवन जीना एक कला है जिन्हें जीने के लिए माँ बाप के बाद एक डॉक्टर की ही सलाह की जरूरत पड़ती है। आधी से अधिक बीमारी तो डॉक्टर के सांत्वना से ही ठीक हो जाती है निसंदेह डॉक्टर इस संसार के वास्तविक हीरो होते है जो देवदूत बन कर हमारे जीवन की रक्षा करते है।
एक डॉक्टर अपने मरीज के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा चिंतित रहता है। वहीं उत्तम श्रेणी का डॉक्टर मरीज की बीमारी इलाज करने से पहिले उसके मन का इलाज करते है एवं उसे उसके उत्तम स्वास्थ्य के लिये लाभदायक सलाह मशविरा भी देते है क्योंकि वो जानते है कि स्वास्थ्य लाभ में दवा के साथ मरीज मे ठीक होने का आत्म विश्वास भी जरुरी होता है | हमें जीवन से प्यार करना भी डॉक्टर ही सीखाते है।उनको मरीज की जाति या धर्म और अमीरी गरीबी से मतलब नही होता उसके लिए सभी मरीज एक समान होते है। “बड़ी से बड़ी बीमारी को डॉक्टर अपने सुझबुझ से मरीज के सामने उस बीमारी को छोटा बनाकर अपने इलाज से उस बीमारी को खत्म कर देते है। अच्छा डॉक्टर हमे दवा का आदी नही बनाता बल्कि दवा से कैसे दूर रहे उसकी सलाह ज्यादा देता है।
याद रखिये कि बीमारी के इलाज से पहिले मरीज के दिल में यह विश्वास जरूरी है कि मेरी बीमारी असाध्य नहीं है और में उपचार के साथ अपनी दिनचर्या और सोच में जरूरी बदलाव लाकर स्वस्थ हो जा हूँगा | निसंदेह जब हम अपने सारी उम्मीदें खो देते है तब हमारे जीवन में स्वास्थ्य लाने के लिए और वहाँ हमारा साथ देने के लिए केवल डॉक्टर के पास ही उस जीवन के इलाज के लिए जादुई शक्ति होती है।
आज से बीस पच्चीस साल पूर्व सही मायने के अंदर देवदूत ही होते थे | एक बार मेरी माता जे को अचानक ह्रदयघात हो गया आधी रात को उनको अस्तपताल ले जाया गया कुछ ही समय बाद नगर के एक मात्र ह्रदय विशेषक डा सीता राम मित्तल अपनी पुराणी साईकल पर मेरी माता जीको देखने और उनका इलाज करने के लिए होस्पियल आधी रात को आ गये और मरीज के पास चार पांच घंटे खड़े रहें जब तक मेरी मान खतरे से बाहर नहीं हो गयी | मेरे सभी स्वजन औरआस पास खड़े लोग उनको देव दूत पुकारने लगे | उस समय नगर के अन्य प्रसिद्ध डाक्टर सर्जन भी जरूरत पड़ने पर रोगी के निवास पर जाने में कोइ संकोच नहीं करते थे | काश आज भी ऐसा हो पाता | कुछ समय पूर्व मेरा भतीजा ललित गर्ग ब्यावर में बीमार चल रहा था और अपने बचपन के मित्र डाक्टर से एल्ल्ज करवा रहा था उसको हमेशा उसका परामर्श शुल्क भी देता था | 25 जनवरी की रात को उसकी तबीयत अचानक खराब हो गयी स्वजन ललित के दोस्त और डाक्टर के घर पर उससे अनुनय करने लगे और ललित को देखने उसके घर पर चलने के लिए प्राथना करने लगे उसको मन चाही फीस भी देने लगे किन्तु निष्ठुर देवदूत ने मना क्र दिया कुछ ही समय बाद ललित अपनी बेटियों पत्नी स्वजनो को रोता बील्खता छोड़ पंच तत्वों के अंदर विलीन हो गया
क्या हम ऐसे डाक्टर को देव दूत पुकारे ? कभी नहीं |
भौतिक सुख सुविधा की तडक भडक के इस समय मे डॉक्टर्स भी धन लोलुपता से ग्रस्त हो गये हैं और उनके लिए उनके निजी हित और स्वार्थ मरीज के उपचार और इलाज से ज्यादा जरूरी बन गये हैं ऐसे ही डाक्टरस के कारण उनका नोबेल पेशा बदनाम होकर अपनी गरिमा को नष्ट कर रहा है | इंडीयन मेडिकल एसोसिएशन से अनुरोध है कि वो डॉक्टर से सलाह दें कि गम्भीर अपाहीज शय्याग्रस्त रोगी को देखने उनके घर पर जरुर जाकर उनका इलाज करके उनका जीवन दान दें और देव दूत बने |
हमारे प्रांत राजस्थान में स्वास्थ्य के अधिकार का कानून बन चुका है | एस कानून के अधीन सरकार डॉक्टरों को आदेश दें कि गंभीर अपाहीज शय्या ग्रस्त रोगी को देखने उनके घर पर जरुर जाकर उनका इलाज करके उनको जीवन दान दें और देव दूत बने |
सच्चाई यही है कि मनुष्य मृत्यु पर अपने साथ सिर्फ उसके कर्म साथ ले जाता है और ये कर्म ही उसके अगले जन्म में प्राब्ध के कर्म के उसको भोगने पड़ते हैं | मरीज और पीडीत रोगी की ब्द्दुआयेन डाक्टर के कर्मके खाते में दुष्कर्म ही जुडे | इसी लिए डाक्टर्स को देवदूत बन करके मरीज का इलाज करे।
वहीं दूसरी तरफ मरीजों के कतिपय रिश्तेदार अकारण ही डाटर्स से हाथापाई करके उनको शारीरिक मानसिक यातना देते हैं और उनके साथ मारपीट करते हैं इसलिए सरकार को कार्यरत डॉक्टरों की सुरक्षा के लिये समुचित कठोर कानून बनाने होएं | डॉक्टर्स डे के दिन डॉक्टरों को भी आत्म चिन्तन करते हुए अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझना होगा | डॉक्टर को चिकित्सा को मात्र पैसा कमाने का साधन नहीं मान कर उसकी जगह इसे मानवीय सेवा का नोबेल मिशन बनाना चाहिये |
डा जे.के.गर्ग
पूर्व संयुक्त निदेशक कालेज शिक्षा जयपुर