“इन्ही आशा अटकै रहियो”

आज विश्व उम्मीद दिवस है। इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक खलील जिब्रान की एक रचना याद आ रही है जिसका शीर्षक है  “इन्ही आशा अटकै रहियो”
ई. शिव शंकर गोयल

एक धोबी का गधा था और एक कुम्हार का गधा था। दोनों दोस्त थे। एक बार काफी दिनों बाद रास्ते में दोनों मिल गये। दुआ-सलाम के बाद कुम्हार के गधे ने धोबी के गधे से पूछा “और क्या हाल चाल है दोस्त? ” तो धोबी के गधे ने जवाब दिया कि सब ठीक ही है। तुम सुनाओ, तुम्हारा क्या हाल है? तब कुम्हार के गधे ने बतलाया कि ठीक चल रहा है। सुबह उठते ही कुम्हार घडें लाद देता है और मारते मारते हाट ले जाता है। दिन भर वहां बेवकूफों की तरह खड़े रहते है और सांयकाल होते ही कुम्हार बचे खुचे घडें लादकर मारते मारते वापस लाता है, और रूखा सूखा भूसा खाने को डाल देता है। जैसे तैसे जिन्दगी कट रही हैं। तुम सुनाओ तुम्हारा क्या हाल है? तब धोबी के गधे ने कहा कि मुझें भी सुबह पहले धोबी मैले कपडों से लाद देता है और मारते मारते घाट पर ले जाता है। वहां दिन भर इधर उधर चरते रहते है। शाम होते ही धोबी गीले-सूखे कपड़ें मुझ पर लादकर मारते मारते वापस लाता है और खाने को तुस ( गधे का भोजन) डाल देता है। क्या बताऊं यार, बड़ी मुश्किल में जिन्दगी कट रही हैं।

तब कुम्हार के गधे ने धोबी के गधे से कहा कि जब तू इतनी मुश्किल में है तो वहां से भाग क्यों नही जाता? इस पर वह बोला कि यार! मैं भाग तो जाता लेकिन धोबी के एक शादी लायक लड़की है। जब वह कोई शैतानी करती है तो धोबी उसको मारता है और डाटते हुए कहता है कि तेरी शादी किसी गधे से करूँगा। बस, इसी आशा में वहां रूका हुआ हूं।

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