
भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा हाल ही में जारी एक चौंकाने वाली रिपोर्ट ने न केवल अर्थव्यवस्था को, बल्कि राष्ट्र की सुरक्षा और नागरिकों की जागरूकता को भी झकझोर कर रख दिया है। आरबीआई के गवर्नर द्वारा संसदीय समिति में प्रस्तुत एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024-25 में 500 रूपये के लगभग 1.8 लाख नोट नकली पाए गए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37 प्रतिशत अधिक हैं। यह संख्या किसी सामान्य अपराध की नहीं, बल्कि राष्ट्र के विरुद्ध एक षड्यंत्र की कहानी कहती है। जो यह दर्शाता है कि कालाबाजारी करने वाले राष्ट्र विरोधी तत्व देश में मुद्रा की मांग का गलत फायदा उठा रहे हैं। विडंबना यह है कि राजस्व खुफिया निदेशालय द्वारा नोट में इस्तेमाल होने वाले आयातित कागज और नकली नोट छापने में शामिल ऑपरेटरों पर लगातार कार्रवाई के बावजूद यह गंभीर समस्या बनी हुई है। यह न केवल नकली मुद्रा के बढ़ते खतरे को रेखांकित करता है, बल्कि राष्ट्रविरोधी तंत्र की सुनियोजित साजिश का भी पर्दापाश करता है। जबकि 2016 में नोटबंदी के ऐतिहासिक निर्णय के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया था कि भ्रष्टाचार, कालेधन और नकली नोटों के खिलाफ लड़ाई उनकी प्राथमिकताओं में है। नोटबंदी केवल एक आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि डिजिटल अर्थव्यवस्था की नींव रखने वाला साहसी एवं युगांतरकारी कदम था।
आज भारत को सिर्फ बाहरी सीमाओं पर नहीं, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी एक युद्ध लड़ना पड़ रहा है, नकली मुद्रा के खिलाफ, भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ और राष्ट्रविरोधी मानसिकता के खिलाफ। इसमें विजय तभी संभव है, जब हम सब डिजिटल भारत के निर्माण में सहभागी बनें। नकली मुद्रा का मुद्दा केवल एक आर्थिक अपराध नहीं है। यह एक प्रकार का आर्थिक आतंकवाद है, जिसका उद्देश्य भारत की अर्थव्यवस्था को अस्थिर करना, महंगाई को बढ़ाना, काले धन को बढ़ावा देना और आतंकवाद को वित्त पोषण देना है। ये नकली नोट अधिकतर सीमापार से संचालित तंत्रों द्वारा भारत में भेजे जाते हैं, जो भारत की राजनीतिक स्थिरता, आर्थिक विकास और आंतरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं। इस तरह राष्ट्र के विरुद्ध षड़यंत्र, साजिश एवं बड़े खतरों को अंजाम दिया जा रहा है। क्योंकि नकली नोट बाज़ार में असली नोटों के साथ मिलकर मुद्रा व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। आम नागरिक अनजाने में इन्हें ले लेता है और आर्थिक नुकसान उठाता है। यह काले धन और आतंकवाद को पोषित करता है। नकली नोट सरकारी योजनाओं की निष्पक्षता और वितरण प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी की डिजिटल क्रांति न केवल नकली नोटों को नियंत्रित करने का बल्कि राष्ट्र-विरोधी तत्वों को नेस्तनाबूद करने का सशक्त माध्यम है। यह मोदी की दूरदृष्टि एवं नये भारत-विकसित भारत के विजन की विजय है, उनके ही विचारों में डिजिटल लेन-देन केवल तकनीक नहीं, यह राष्ट्र निर्माण का माध्यम है। आज के भारत की अर्थव्यवस्था एक निर्णायक दौर से गुजर रही है। डिजिटल ग्राम योजना, ई-गवर्नेंस, डिजिटल साक्षरता अभियान यानी तकनीक को गाँव और गरीब तक पहुँचाने की पहल है। एक ओर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश डिजिटल इंडिया की ओर तेजी से बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर नकली नोटों की बाढ़ एक अदृश्य आतंकवाद बनकर देश की अर्थव्यवस्था, समाज और सुरक्षा को चुनौती दे रही है। निस्संदेह, हाल के वर्षों में, भारत ने नकली नोटों की कालाबाजारी पर अंकुश लगाने व काले धन पर रोक के लिये डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने के लिये अपनी स्थिति खासी मजबूत की है। सरकार की सोच है कि काले धन पर रोक लगाने के लिए नगद लेन-देन को हतोत्साहित किया जाए।
इस संकट की घड़ी में डिजिटल लेन-देन एक बड़ी राहत और समाधान बनकर उभरा है। यूपीआई, भीम मोबाइल वॉलेट्स, नेट बैंकिंग और कार्ड पेमेंट्स जैसे साधन नकली नोटों की समस्या को जड़ से समाप्त करने में सहायक हो सकते हैं। डिजिटल लेन-देन के लाभ ही लाभ है, पूर्ण पारदर्शिता यानी हर लेन-देन का डिजिटल रिकॉर्ड होता है, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आती है। कर चोरी, हवाला, और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी काली प्रवृत्तियाँ समाप्त होेती है। नकली मुद्रा की संभावनाओं पर विराम लगता है, जिससे राष्ट्र-विरोधी तत्वों के षड़यंत्र एवं साजिशें नाकाम होती है। लेन-देन सेकंडों में पूरा होता है और उनमें सरलता भी रहती है। पासवर्ड आधारित सुरक्षा व्यवस्था से लेन-देन सुरक्षित रहता है। सरकारी योजनाओं का सीधा लाभ लाभार्थियों तक पहुंचता है, पैसा सीधे उनके खातों में पहुँचता है, बिचौलियों की भूमिका समाप्त होती है। जिससे भ्रष्टाचार पर नियंत्रण होता है।
प्रधानमंत्री मोदी ने हर मंच पर डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने की बात कही है। उन्होंने गाँव-गाँव जाकर लोगों को मोबाइल बैंकिंग, क्यूआर कोड, और कार्ड से भुगतान की शिक्षा देने की मुहिम चलाई है। इसका असर यह है कि आज भारत यूपीआई ट्रांजैक्शन में दुनिया में नंबर 1 है। डिजिटल इंडिया गरीब को ताकत देता है, मिडल क्लास को सुविधा देता है और राष्ट्र को मजबूती देता है। भारत की असली शक्ति अब डिजिटल प्रचलन बन रही है, जहाँ एक बटन से करोड़ों का ट्रांजैक्शन सुरक्षित होता है। मोदी की डिजिटल क्रांति ने भारत को इक्कीसवीं सदी की आर्थिक महाशक्ति बनने की दिशा में मजबूत आधार दे दिया है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि इस डिजिटल युद्ध में सहभागी बनें, नकली नोटों को ना कहें, डिजिटल लेन-देन को अपनाएं। यही राष्ट्रभक्ति है, यही समय की माँग है। संदिग्ध नकदी की सूचना तुरंत संबंधित एजेंसियों को दें। नकली नोटों की पहचान करना सीखें और दूसरों को भी जागरूक करें। निश्चित ही जहाँ नकली नोट देश की आत्मा को खोखला करते हैं, वहीं डिजिटल मुद्रा राष्ट्र की नींव को मजबूत करती है।
निस्संदेह, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस यानी यूपीआई ने भारत के आर्थिक लेन-देन तंत्र में क्रांति ला दी है। भुगतान के तमाम विकल्पों ने भारतीय नागरिकों के आर्थिक व्यवहार को बहुत आसान बना दिया है। हालांकि, अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो डिजिटल माध्यम से लेन-देन में परहेज करते हैं। निस्संदेह, नकदी पर उनकी निर्भरता का मूल कारण डिजिटल शिक्षा का अभाव ही है। साथ-ही-साथ डिजिटल भुगतान से जुड़े घपल्ले एवं घोटाले भी है। साथ ही इसके कारणों में भ्रष्टाचार और कर चोरी की नीयत भी शामिल है। ऐसे में सरकार को डिजिटल खाई को पाटने की दिशा में रचनात्मक पहल करनी चाहिए। वहीं दूसरी आर्थिक अनियमितताएं करने वाले तत्वों से भी सख्ती से निबटा जाना चाहिए। हालांकि, दो हजार के नोट अब प्रचलन से बाहर हो चुके हैं, लेकिन उनका कानूनी आधार बना हुआ है। इस दिशा में यथाशीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि नकली मुद्रा के पीछे कुछ संगठित राष्ट्रविरोधी शक्तियाँ सक्रिय हैं। पाकिस्तान स्थित आईएसआई और उसके सहयोगी संगठनों पर पहले भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि वे नकली भारतीय मुद्रा भारत में भेजकर आतंकवाद और अलगाववाद को आर्थिक समर्थन देते हैं। देश की सरकार ने डिजिटल इंडिया, जनधन योजना, आधार लिंकिंग, और यूपीआई जैसी क्रांतिकारी योजनाओं के ज़रिए नकदी पर निर्भरता घटाने का प्रयास किया है। लेकिन यह लड़ाई अकेली सरकार नहीं जीत सकती।
नकदी रहित अर्थव्यवस्था का सरकारी महत्वाकांक्षी लक्ष्य हासिल करने के मार्ग में अभी तमाम बाधाएं विद्यमान है। यह और भी बड़ी चिंता की बात है कि नोटबंदी के आठ साल बाद भी रियल एस्टेट क्षेत्र में काले धन का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल बना हुआ है। निस्संदेह, डिजिटल युग में भी ‘नकदी ही राजा है’ मानने वालों को रोकने के लिये जांच और कानूनों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है। साथ ही इस दिशा में भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश में लगी विदेशी ताकतों की नकली करेंसी के प्रसार में कितनी बड़ी भूमिका है। विगत में पाकिस्तान से ड्रग मनी व आतंकी संगठनों की मदद के लिये नकली करेंसी के उपयोग की खबरें सामने आती रही हैं।
प्रेषकः
(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
ई-253, सरस्वती कंुज अपार्टमेंट
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