*आत्म निरीक्षण का अनूठा अवसर -पर्व पर्युषण *

पर्युषण पर्व आत्मशुद्धि और क्षमायाचना का प्रतीक है, बीते दिनों में हमने उपवास, साधना, सामायिक, प्रवचन और सत्संग किए, परंतु क्या इन साधनाओं से हम अपने स्वयं के बेहतर रूप तक पहुँचे क्या, इन दिनों ने हमें भीतर से कुछ बदला, या फिर सब कुछ वैसा ही रह गया जैसा पहले था।*
*संवत्सरी प्रतिक्रमण के बाद जब हम ‘खमत खामना’ कहते हैं, तब यह केवल औपचारिक शब्द न बनें, बल्कि आत्मा की गहराई से निकली हुई पुकार बनें, यह दिन केवल दूसरों से क्षमा माँगने का नहीं, अपने आप को बदलने का संकल्प लेने का भी है, ताकि कल से हमारा व्यवहार, हमारी वाणी और हमारी सोच में सकारात्मक परिवर्तन दिखे ।*
*आइये इस संवत्सरी के अवसर पर कुछ संकल्प करें ।*
1. *होश पूर्ण जागरुकता:* अपनी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं पर जागरूक रहें। गुस्सा, चिड़चिड़ापन अपने हिसाब से सबको हांकने की प्रवृत्ति—इनसे दूरी बनाने का प्रयास करें।
2. *विचार और वाणी का संयम:* जहाँ संभव हो, मौन रखें, और जब बोलें तो वचन मधुर, सत्य और हितकर हों।
3. *स्वीकार और संतोष:* जीवन में जो मिला है, जैसे मिला है, उसे सहर्ष स्वीकार करें, भोजन में, परिस्थितियों में, लोगों में कोई शिकायत न हो।
4. *अहंकार का त्याग:* कुछ पल ऐसे बिताएँ जैसे आप हैं ही नहीं—न मैं, न मेरा, यह अनुभूति ही आध्यात्मिक साधना का शिखर है।
5. *एकांत और मौन:* प्रतिदिन कुछ समय केवल अपने लिए रखें, बिना फोन, बिना काम, बिना किसी व्यवधान के,सिर्फ अपने विचारों और सांसों के साथ ।
6. *कृतज्ञता:* जो मिला उसका आभार, जो गलत हुआ उसका पश्चाताप, जिनसे भूलें हुईं, उनसे हृदय से क्षमा माँगें,चाहे शब्दों में या मन ही मन ।
7. *संवत्सरी का दिन हमें यह प्रेरणा दे रहा है कि यह पर्व केवल उपवास, प्रवचन और क्षमायाचना तक सीमित न रहे, बल्कि रोज़मर्रा की जिंदगी में व्यवहार, वाणी और विचारों को बदलने का अवसर भी बने।
 !! क्षमा वीरस्य भूषणम!!
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*महक उठेगी दुनिया सारी,*

 *यदि क्षमा के फूल खिला दो।*
*वैर विरोध मन से हटाकर,*
*अंतर स्नेह का दीप जला लो।।*
विगत वर्ष में जाने-अनजाने हुए समस्त अविनय-अविवेक के लिए    मन-वचन-काया से,
     *मिच्छामी दुक्कड़म*
    “कटुता घटे दिल ना बंटे,
सदा करते रहे यह प्रयास.
 कर रहे हम क्षमायाचना,
क्षमा करें आप, मन साफ”
यह जीवन एक सह यात्रा है. साथ साथ चलते हुए परस्पर लग जाती है, ठेस-ठोकर क्योंकि मानव मात्र भूल का पात्र है.आत्मा के सौंदर्य का सर्वोत्तम रूप है, क्षमा !
*क्षमा मांगने वाला वीर होता है, और क्षमा करने वाला महावीर*
    आत्म शुद्धि के इस महापावन क्षमा पर्व पर हम विदेश की धरती विलायत इंग्लैंड के लंदन शहर से अपने संस्कार और संस्कृति के अनुरूप करबद्ध होकर तहेदिल से जाने- अनजाने में हुई अपनी तमाम भूलों, अविनय, अशिष्टता  के लिए क्षमा याचना करता हूँ।
  *आइये, संवत्सरी के अवसर पर यह संकल्प लें कि हम जीवन को नई दृष्टि देंगे, ताकि जीवन ही नई सृष्टि बन जाए।*
आलेख
बी एल सामरा
अध्यक्ष, अणुव्रत समिति अजमेर
हाल मुकाम लंदन, इंग्लैंड

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