(अंतरराष्ट्रीय वृध्दजन दिवस के लिए विशेष)

एक तरफ तो मुझें वरिष्ठ नागरिक का खिताब दिया और दूसरी तरफ कदम कदम पर मेरी तौहीन की. कोई सहे तो कहां तक सहे, आपही बतायें ? इसलिए मैं तो बिना वकील किए जनता की अदालत में सीधे ही अपना पक्ष रख रहा हूं. किसी धार्मिक ग्रंथ पर हाथ भी नही रख रहा. मेरा कहना तो यह है कि अधिकांश में साम्मर्थवान ही उन पवित्र ग्रंथों के सामने झूठी कसमें खाते है, राष्ट्पिता की तस्वीर के नीचे भ्रष्टाचार को बढावा देते हैं और दो नम्बर के लेन-देन में उनकी तस्वीर छपे नोटों का इस्तैमाल करते हैं. यदि यह सब ना होता तो इतना कालाधन देशसे बाहर कैसे जाता ? ‘रियल स्टेट’ यानि जमीन-जायदाद और सोने की खरीद फरोख्त में कैसे लगता ?
आदमी वरिष्ठ नागरिक योंही नही बन जाता. उसे जिन्दगी के साठ बसंत निकालने पडते हैं. वरिष्ठ नागरिक होने का अहसास पहले पहल मुझे बैंक ने कराया. एक साल अक्टूबर में अपनी सेवानिवृति के बाद आनेवाली जनवरी माह में मैं जब अपनी पेंशन लेने बैंक गया तो काउंटर पर बैठे बाबूजी ने मुझे कहा अंकल ! आप पिछले नवम्बर में जिन्दा थे, इस बात का सार्टिफिकेट लेकर आएं तभी आपको पेंशन मिलेगी. देखा आपने ? जनवरी में बाबूजी कह रहे है कि आप पिछले नवम्बर में जिंदा थे या नही ? इसका प्रमाण लाएं.
रिटायरमेंट के बाद किसी के सुझाव पर कम्प्यूटर सीखने हेतु एक प्रायवेट संस्थान में जाना शुरू किया. कई दिनों की माथापच्ची के बाद भी कुछ समझ में नही आया, और आए भी कैसे ? एकतो Computer के Key Board में अक्षर ही सही क्रम A B C D में नही है दूसरे Windows को close यानि बंद करना हो तब भी Start का बटन ही दबाना पडता हैं.
इतना ही नही जब सब जगह स्त्री-पुरूषों की समानता की बात हो रही है तो कम्प्यूटर में ऐसा क्यों नही है ? यहां मिसेज वर्ड -MS- तो है लेकिन मिस्टर वर्ड नही है. ऑपरेट करते वक्त कम्प्यूटर बार बार Any Key मांगता है जबकि ऐसा कोई बटन ही उसमें नही हैं. मुझे तो इस झमेलें का जो कारण नजर आया वह यह कि इसे बनानेवाला का नाम तो गेटस-बिल गेटस- है लेकिन उसने कम्प्यूटर पर विन्डोज ही बनाई है अतः मैं तो घबराकर कम्प्यूटर संस्थान से भाग आया.
बढती उम्र अपने साथ और भी कई तरह की समस्याएं लेकर आती हैं. उसी सिलसिले में एक बार मुझें मेरा पुत्र पास के सरकारी अस्पताल ले गया. आउटडोर में बैठे डाक’साब बहुत व्यस्त थे. मरीजों की लम्बी लाईन लगी हुई थी. कई मरीजों के तो सामने रखे स्टूल पर बैठने से पहले ही डाक’साब Prescription स्लिप’ पर दवाई लिखना शुरू कर देते थे. आखिर इतने सालों का तजुर्बा जो हैं. बीच में एक बार जब नजरें उठाकर उन्होंने मेरे को एवं पुत्र को देखा तो पुत्र ने उन्हें कहा डाक’साब इन्हें दिखाना है तो वह बोले, ‘यह तो पहले से ही दिख रहे है’. इस पर मेरे लडके ने उत्तर दिया
‘सर ! मेरा मतलब है कि इन्हें कई शारारिक समस्याएं है, उन्हीं के बारे में आपसे बात करनी हैं. यह सुनकर डाक’साब फिर दूसरें मरीजोंको देखने लगे.
वहां दाल ज्यादा गलती न देखकर वह मुझे एक प्रायवेट क्लिनिक लेगया. वहां डाक’साब ने स्टैथस्कोप वगैरह से कुछ देख दाखकर पहले लडके की माली हैसियत की जानकारी ली, फिर पूछा कि इनका मेडीकल बीमा है या नही इसके बाद मन ही मन कुछ अंदाज लगाकर कहा कि कई टैस्ट होंगे. इस पर लडके ने कहा कि सर! यह तो ज्यादा पढे लिखे भी नही है, यह टैस्ट कैसे देंगे ?
इस वार्तालाप के दौरान सूनी आंखों 2 से मैं बारी बारी पुत्र और डाक’साब को देखता रहा. और क्या करता ?
एक बार मैं अपने दांतों की कोई समस्या लेकर जब एक डैन्टिस्ट के पास गया तो कुछ देर जांच पडताल के बाद वह बोले
इनकी अक्ल दाढ निकालनी पडेगी.
इस पर जब मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी तरफ देखा तो वह बोले
वैसे भी अब आपको इनकी (उनका आशय शायद दाढ एवं अक्ल, दोनों से होगा) क्या जरूरत है ?
देखा आपने ? डाक’साब सरे आम कह रहे है कि मुझे अक्ल, दाढ वगैरह की क्या आवश्यकता हैं. कहावत भी है ‘साठी बुद्धि नासी’
वैसे इसका कुछ कुछ अनुभव मुझे रेलवें की नौकरी के दौरान हो चुका हैं. वहां इंजीनियरिंग, ट्रैफिक, सिगनल इत्यादि हर ब्रांच में काम करने का तरीका-रूल्स रेग्यूलेशन-तय हैं. सब विस्तृत रूप में लिखा रहता हैं. समय समयपर ट्रेनिंग होती रहती है. कहने का तात्पर्य यहकि अपनी तरफ से ऐसा कुछ नही करना पडता जिसमें दिमाग पर जोर डालना पडे. कहते है कि एक बार एक रेलवे के ऑफीसर को अस्पताल के ‘न्यूरोलोजी’ विभाग में किसी ईलाज के लिए लेजाया गया तो वहां के डाक्टर यह देखकर हैरान रह गए कि उस आफीसर के दिमाग में जंग-रस्ट- लग चुका था अर्थात उसे काम में लिए बगैर वर्षों हो गए थे. मैंने जब यह सुना तो घबराकर वह नौकरी छोड आया. कहते है कि मिलिट्री की सर्विस में भी कमोवेश यही हाल है. खुदा जाने क्या सच है ?
कई बार कान भी उम्र का तकाजा करने लगते हैं. एक बार मेरे एक मित्र को उॅचा सुनने की शिकायत हुई तो वह कुछ अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद एक झोलाछाप डाक्टर के पास पहुंचा. उसने कानों की कुछ जांच करने के बाद कहा कि आपकी समस्या हल होजायेगी, दो सौ रू. लगेंगे. जब उसने हामी भरली तो उसने फीस लेकर गत्ते पर, एक स्लिप चिपकाकर उसकी पीठ पर लटकादी जिस पर लिखा था ‘कृप्या जोर से बोले, मुझे कम सुनाई देता है’. अब वह समस्या उसकी न होकर दूसरों की होगई.
आंखों की मंद पडती रोशनी से परेशान होकर एक बार आंखों के डाक्टर के पास गया तो वह मुझे कुर्सी पर बैठाकर बारी बारी एक एक आंख से आल्फा बेट पढवाने लगे. मैंने उन्हें बीच में टोककर बताने की कोशिश की कि यह सबतो मैं बचपन में पहले से ही पढ चुका हूं लेकिन वह मुस्कराते रहे और कहा कि कोई बात नही फिर से एक बार और पढलें. मुझे लगा कि डाक्टर साहब को यह विश्वास नही था कि मुझे पढना आता है या नही ? जब डाक्टरही मरीजपर अविश्वास करेगा तो कोई दूसरा क्या करेगा ?
हास्पीटल वगैरह में तो शरीर के अवयवों के चैक करने कराने की बात समझ में आती है लेकिन यही बात जब नगर परिषद इत्यादि में कही जाय तो अलग ही अनुभव होता हैं. एक बार मुझे कोई टैक्स जमा कराने वहां जाना पडा. कार्यालय में जाने से ऐसा लगा गोया कुछ लोग गांव की चौपाल पर बैठे हो. खैर, पूछते पूछते हैड साहब की सीट के पास पहुंचा और उन्हें कहा कि टैक्स जमा कराना हैं. इस पर वह बोले कि पहले अपना हैड चैक कराओ ! मैं तो यह सुनकर सन्न रह गया. हाय राम ! अब यही चैक होने को रह गया ? क्या सरकार ने इतने साल मुझे नौकरी में योंहि ढोया. कुछ देर बाद जब संभला तो किसी ने समझाया कि Accounts section में जाकर पूछलो वह सब बता देंगे.
एक बार बाल कटवाने एक नाई के पास जाना हुआ. जबसे ‘कौन बनेगा करोडपति’ एपिसोड चला हेयर कटिंग सैलूनवालों ने अपने भाव उसी अंदाज में बढाने शुरू कर दिए है. मसलन पहले बीस फिर चालीस और अब अस्सी रू. लेते हैं. बाल कटवाते समय मैंने उसे मजाक के लहजें में कहा कि मेरे सिर पर बाल कम है अतः उसे कुछ कम रेट लेनी चाहिए तो उल्टे वह बोला अंकल ! एक एक बाल को ढूंढ ढूंढकर काटना पडता है इसमें मेहनत ज्यादा लगती है अतः मैं तो एक्सट्रा पैसे मांगने की सोच रहा था, आप कम की बात कर रहे हैं. यह सुन कर मैं तो चुप्पी खा गया. ज्यादा बोलता तो ज्यादा पैसें लगते.
एक बार एक समारोह में जाना हुआ. उसी समारोह में जब मंच पर बुलाकर मुझे पूछा गया कि रिटायर्ड होने के बाद अब आपका क्या करने का विचार है ? तो मैंने कहा कि साहित्य और समाज की सेवा करने का ईरादा हैं. इस पर श्रोताओं में से एक ने उठकर कहा कि आप लिखना बंद कर दे तो साहित्य की सेवा होजायेगी और सुनाना बंद कर देंगे तो समाज की सेवा हो जायेगी. आखिर प्राबलम कहां है ? समारोह के बाद वहां बुफे सिस्टम के खाने की धक्का-मुक्की में मेरे वयोवृद्ध मित्र का डैंचर-बत्तीसी- कही गिर गया. और बहुत ढूंढने पर भी नही मिला तो हारकर हमने माईक पर अनाउंस करवाया. डैंचर मिलना तो दूर उल्टे भीडमें से कई आवाजें आई कि ‘कहां लगा रखा था ?’
इस उम्र में आने पर घर में बच्चें अविश्वास की नजरों से देखने लगे हैं. सही सच्ची बात बताओ तब भी ऐसे देखेंगे गोया मैं कोई झूठ बोल रहा हूं. एक बार मुझे अजमेर से दिल्ली आना था इसलिए मेरे लडके ने स्लिीपर में रिजरवेशन करवा दिया लेकिन मौके की बात अपर बर्थ मिली. लडके ने सलाह दी कोई बात नही सफर के समय नीचे वाले से एक्सचेंज कर लेना. खैर,ट्रेन में उपर की सीट पर ही जैसे तैसे सफर पूरा करके जब घर आया और लडके को बताया तो उसने कहा कि आपको कहा था कि नीचे वाले से एक्सचेंज कर लेना तो मैंने कहा कि नीचे की सीट पर कोई था ही नही किससे एक्सचेंज करता ? वह मुझे सूनी सूनी आंखों से देखने लगा आखिर अविश्वास की हद होगई.
रिटायरमेंट के बाद बच्चें जब मुझे पापा के बजाय डैड कहने लगे तो मैंने दबे स्वर में वाइफ से ऐतराज किया और कहा कि अगर सरकार को पता लग गया कि मैं ‘डैड’ हो गया हूं तो पेंशन बन्द होने में देर नही लगेगी और फिर वृद्धाश्रम के अलावा कोई विकल्प नही बचेगा.
वरिष्ठ नागरिकों के विषय में एक कवि की यह पंक्तियां भी है:-
‘कौन कहता है कि बुढापें में, इश्क का सिलसिला नही होता.
आम तब तक मजा नही देता, जब तक पिलपिला नही होता.’
सबसे अच्छा अनुभव तो मेरे शहर के दिवानी कोर्ट में हुआ. वहां अंग्रेजों के जमाने से हमारें समाज के मंदिर के मालिकाना हक का मुकदमा चल रहा हैं. बचपन में तो यहां तक सुना था कि कई मुकदमें तो मुगलों के समय के चल रहे है. खुदा जाने कहां तक सही है ? मैं जब किशोरावस्था में था तो पंचायत के बडें बूढों के साथ अदालत जाया करता था अब रिटायर होने के बाद भी कभी कभी जाना होता था. एक बार किसी बात पर इजलास में हमारे उन्हीं वयोवृद्ध वकील साहब ने मुझे सम्बोधन करते हुए कहा
‘वह फाईल लाए हो यंगमेन ?’
उस रोज मैंने महसूस किया कि कोई तो मुझे पहचान पाया.
शिव शंकर गोयल
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