व्यंग्य । कभी खोली घरवाली की वार्षिकोत्सव अलमारी

आपको भी सुन रहा है या मेरे ही कान बज रहें हैं। कहीं दूर देखो कितना मनोरम गरबे का पहला भजन; गरबों रे महाकाली न दीज्यो बज रहा है। अहा । मन भावन भाव-विभोर हो अक्षुधारा बहने ही वाली थी कि अचानक डीजे का मौसम बदल गया। उसके बाद तेज डीजे पर, अंग लगा दे रे मोहे रंग लगा दे रे चल रहा है। हे भगवान याद आया।
बचपन में कौन इन बेचारों को चंदा देता था। अरे भाई ऐसे अश्लील गानों पर हुड़दंग जो नहीं होता था ।एक आद बार होली या अन्न कुट्ट पर चंदा दिया जाता था। होली का चंदा  इस डर से की कोई नशेड़ी घर का सामान उठाकर स्वाहा ना कर दे और अन्नकूट का इसलिए क्योंकि उस दिन त्यौहार की थकावट के बाद मां भी  रसोई से आराम चाहती थी।लेकिन लगता है आजकल हम महिलाएं भी रोज ही आराम चाहती हैं।  ऐसा क्यों ? और आप ही बताओ कौन कहता है।
हमारे देश में एकता, भाई चारे, सांस्कृतिक सौहार्द्र  का अभाव है। कभी अलमारी खोल कर देखी है, आपने अपनी घरवाली की। गरबा के घाघरे से लेकर क्रिसमस के गाउन, सावन के लहरिया से लेकर दुर्गा पूजा के 16 श्रृंगार, ठहरो, ठहरो हम ब्यूटी पार्लर का बखान करना तो भूल ही गए। हां तो मैडम ड्रेस हो गई जूतियां हो गई अब कुछ ब्राइडल, हाईलाइट स्मोकी आई मेकअप थीम के  अकोर्डिग हो जाए।
ओह, यस, व्हाई नोट ?
जी हां,फिल्मी दुनिया के कारण करवा चौथ की करवा कथा तो उत्तर भारत से दक्षिण पूरे महाद्वीपीय क्षेत्र में दूर-दूर तक  ऐसे फैल गई। मानो फिल्मों के निर्देशक अगस्त्य मुनि उत्तर की गंगा को दक्षिण की गोदावरी बना आए हो। ये सदानीरा अपभ्रंश घाटी से पथ भ्रंश घाटी की ओर निरंतर , अविरल बह रही है। अब  इसके प्रवाह को रोकना नामुमकिन है।देखो यह तो अब न केवल भारत अपितु विदेश में भी धूम मचा रही है। अरे हमारी औरतें तो ईद की मुबारक पार्टी क्या नवरोज, नवाखवाई में भी  नई ड्रेस खरीदे बिना नहीं रहती । यह सब तो मुख्य प्रोग्राम है जो सरकारी कैलेंडर में थे।इसके अलावा वे एक्स्ट्रा प्रोग्राम तो हम आपको बताना ही भूल गए। जिन पर भी  वे घर के कलेक्टर की  तरह इच्छानुसार  ही नहीं अनिवार्य रूप से वस्त्र आभूषण की शॉपिंग करती हैं। 365 दिनों में 50-60 दिन शादी विवाह  के कार्ड , कुछ 50-60 दिन जच्चा बच्चा हैप्पी बर्थडे, किटी पार्टी और अन्य धार्मिक अनुष्ठान सत्यनारायण भगवान की उज्जमन पूर्णिमा ,पौष के व्रत त्यौहार में घरवालों से सब्सिडी अनुदान राशि भी पाती है।
बताओ? पति के बजट का दीवाना निकाल कर भी वे अवसाद में जाती है।हद तो तब हो गई, जब एक मोहतरमा ने मोहर्रम की भी मुबारकबाद दे डाली। हमने कहा कृपया मातम को तो छोड़ दो।
देखो तो सही यार सात वार आठ त्यौहार को छोड़कर हमारी आज की जेनरेशन ने सात वार साठ त्योहार के उच्च शिखर पर संस्कृति की धरोहर की प्रत्यंचा फैलाई है और आप कहते हैं। देश में सामाजिक संस्कृति की  आर्थिक मंदी छाई है? आपको तो खुश होना चाहिए जनाब । कितनी अच्छी बात है । किसी भी राष्ट्रीय पर्व पर अब राष्ट्रपति के अभिभाषण से पूर्व हमारे देश में महिलाएं तिरंगे जैसी साड़ी ,सूट परिधानों में लिपटी हुई नजर आती है। और आप कहते हैं देश में आपसी भाईचारे का अभाव है? माहौल बिगड़ रहा है? एक व्हाट्सएप क्लिक पर पूरा क्लब हाउस भर जाता है जनाब। अब बस डांडिया रास आ गया।जिस काम का निरोध है वह भी निर्विरोध किया जाएगा। अब हम आपको इसके आगे की कथा सुनाते हैं।इन सब आयोजनों के कर्ताधर्ता भी दान-धर्म के प्रथम श्रेणी ठिकाने में पुण्य के सहभागी होंगे। सोसाइटी में गणमान्यों की गणपूर्ति हो या ना हो।गणेश चंदे में भ्रष्टाचार कर हौसलों को बुलंद कर, पुनः  दुर्गा पूजा के चंदे का अध्यादेश जारी कर दिया जाएगा। आप अल्पमत में है।
यहां बहुमत की सरकार/सोसायटी चलती है। आप इस पर संयुक्त बैठक भी नहीं बुला सकते। हां ,बस संयुक्त  सहभागिता निभा कार्यक्रम को सफल बना सकते हैं। वर्ना ।वर्ना समाज से बहिष्कृत समझें जाओगे। कोई नहीं, जब माता है साथ तो डरने की  क्या बात?
जोर से बोलो,जय माता की। कुछ तो बोलो जय माता दी ।
एकता शर्मा, रायपुर,छत्तीसगढ़

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