बाबूलाल नागा
100 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता और यूजर्स ने सूचना के अधिकार के लिए लड़ते हुए 2011 के बाद से अपनी जिंदगी गंवा दी। कम भ्रष्ट सरकार और नैतिकता वाले समाज की चाह रखने वाले कई लोगों पर देश भर में हमले किए गए।
12 अक्टूबर, 2005 में पारित सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, भारत के लोकतांत्रिक विकास में एक ऐतिहासिक क्षण था। इसने सार्वजनिक प्राधिकरणों द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना तक पहुंच के नागरिकों के अधिकार की औपचारिक स्वीकृति को चिह्नित किया। आरटीआई, आम नागरिकों की पारदर्शिता, जवाबदेही और सशक्तिकरण की दीर्घकालिक मांग का परिणाम था। आरटीआई अधिनियम की सबसे प्रमुख उपलब्धियों में से एक सरकारी कामकाज में पारदर्शिता में वृद्धि रही है। निर्णय लेने की प्रक्रिया से लेकर सार्वजनिक धन के आवंटन तक, इस अधिनियम ने यह सुनिश्चित किया है कि नागरिकों की महत्वपूर्ण जानकारी तक पहुंच हो। इसने विभिन्न सरकारी क्षेत्रों में अक्षमताओं, अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को उजागर किया है, जिससे नौकरशाह और सरकारी अधिकारी अपने कार्यों और निर्णयों के प्रति अधिक सतर्क हो गए हैं।
चूंकि इस अधिनियम को दो दशक पूरे हो गए हैं इसलिए इसकी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के साथ-साथ आरटीआई का उपयोग करने पर आरटीआई कार्यकर्ताओं के सामने आई चुनौतियों पर भी विचार करना उचित होगा। और यह चुनौती है आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा की। क्योंकि पिछले दो दशक में, भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए आरटीआई का इस्तेमाल करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ताओं को धमकी, उत्पीड़न और यहां तक कि हिंसा का सामना करना पड़ा है। कुछ लोगों की जान भी चली गई है। आरटीआई कार्यकर्ता की सुरक्षा के लिए एक मजबूत तंत्र के अभाव ने कई नागरिकों को शासन में अनियमितताओं को उजागर करने के लिए आरटीआई कार्यकर्ताओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।
देश में तमाम छोटी-छोटी जगहों पर काम करने वाले आरटीआई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सूचना के अधिकार कानून को भ्रष्टाचार और प्रशासन से लड़ने का एक मजबूत हथियार बना लिया है लेकिन सूचना के अधिकार कानून को काम में लेने वालों को कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है। सूचना के अधिकार आंदोलन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं की आवाज दबाने की कोशिशें की जा रही हैं। इस कानून में सच्चाई जानने की मांग करने वालों को धमकियां मिल रही हैं। देश भर में आरटीआई आवेदकों के उत्पीड़न और हत्या के मामले बढ़ रहे हैं और आने वाले वर्षों में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना सबसे बड़ी चुनौती है। गैर-सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया (टीआईआई) ने ‘‘राज्य पारदर्शिता रिपोर्ट 2021‘‘ शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा था कि पिछले 15-16 वर्षों में कम से कम 95-100 आरटीआई आवेदकों की हत्या कर दी गई, जबकि 190 अन्य पर हमला किया गया, जबकि दर्जनों ने आत्महत्या कर ली।
नैतिक शासन की मांग करने वाले आरटीआई और अन्य कार्यकर्ता खतरों से जूझ रहे हैं, सिर्फ इसलिए नहीं कि उन्होंने सरकार में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया है बल्कि इसलिए क्योंकि वे क्रांति के अगुआ हैं क्योंकि वे भागीदारी वाले लोकतंत्र में सत्ता के हस्तांतरण की मांग करते हैं, जहां प्रत्येक व्यक्ति सर्वेसर्वा हो। इस सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में उन लोगों की रक्षा करना जरूरी है, जो सत्ता से हमेशा सच बोलने को तैयार हैं। आरटीआई अधिनियम की धारा चार संबंधित अधिकारियों पर दायित्व डालती है कि वह सरकार के कामकाज से संबंधित सभी जानकारियों को सार्वजनिक तौर पर प्रदान करे और अपनी वेबसाइट पर भी पोस्ट करे।
जब किसी आरटीआई कार्यकर्ता पर हमला किया जाता है तो सूचना आयोग को उस व्यक्ति द्वारा मांगी गई सभी जानकारियों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना चाहिए। अगर हमलावरों को यह पता होगा कि इस तरह के हमले करने से सूचनाएं दबेंगी नहीं बल्कि और बढ़ेगी तो कुछ हद तक हिंसा को कम किया जा सकता है।
आरटीआई कार्यकर्ताओं की सुरक्षा बड़ी चुनौती है विशेष रूप से भारत जैसे देश में। आरटीआई एक्ट ने प्रत्येक आरटीआई यूजर को संभावित ह्विसिलब्लोवर में तब्दील कर दिया है और इनमें से प्रत्येक को सुरक्षा देना या उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें गुमनामी में रखना लगभग असंभव काम है। इस तरह के लक्षित हमलों को रोकने के लिए नए तरीकों पर विचार करने की जरूरत है।
बहरहाल, सूचना के अधिकार पर काम कर ये सामाजिक कार्यकर्ता गरीब और जरूरतमंदों को हक दिला रहे हैं। कोई व्यक्ति सिर्फ अपने हितों की खातिर ही नहीं बल्कि दूसरे के हक के लिए लड़ रहा है। ऐसे में सूचना मांगने वाले कार्यकर्ताओं पर हमलों की खबरें परेशान करने वाली हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार आरटीआई कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न, उन पर होने वाले हमलों और उनकी हत्याओं से अनजान हैं। दरअसल, सरकार ने इन्हें अनदेखा करने का रवैया अपना रखा है। ऐसे में जरूरत है प्रभावी व्हिसल ब्लोअर कानून की। सरकार को इस सिलसिले में ठोस और सार्थक पहल करनी होगी। आखिर सवाल जानकारी मांगने वालों की सुरक्षा का जो है। (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)
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