आटा-साटा के नाम पर ये कैसी सौदेबाजी?

समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ ये कुप्रथा

बाबूलाल नागा

   पिछले दिनों 3 नवंबर, 2025 को जयपुर जिले की मौजमाबाद कस्बे की तीन नाबालिग बहनें (उम्र 17, 15 और 12 वर्ष) घर छोड़कर चली गईं क्योंकि परिजन उनका विवाह आटा-साटा कुप्रथा के तहत तय कर रहे थे, जिससे वे नाराज थीं। 9 अक्टूबर, 2025 को अजमेर में आटा-साटा विवाद में पिकअप से कुचलकर दो महिलाओं की हत्या कर दी गई। अगस्त, 2025 में जोधपुर बोरूंदा स्थित रावनियाना गांव में आटा-साटा विवाद में एक युवक ने अपनी पत्नी नहीं भेजने पर ससुराल जाकर फायरिंग कर दी। इसमें युवक की सास को दो गोली लगी। फरवरी, 2025 में जालोर में छह जातीय पंचों ने एक परिवार द्वारा आटे-साटे की कुप्रथा नहीं मानने पर परिवार का हुक्का-पानी बंद कर दिया। साथ ही 20 लाख का जुर्माना भी लगा दिया। कुछ साल पहले चूरू जिले के मुंदीताल गांव में एक आटा-साटा कुप्रथा के कारण एक महिला को अपने ही मंगेतर से शादी करने के लिए घर से भागना पड़ा। नागौर में 21 साल की एक युवती ने सुसाइड नोट लिखकर आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में युवती ने आटा-साटा प्रथा को वजह बताया था।

   आटा-साटा कुप्रथा दुष्प्रभाव के चंद ये उदाहरण हैं। ऐसे कई प्रताड़ना से जुड़े मामले अक्सर सुर्खियों में आते हैं जब आटा-साटा तोड़ने पर जाति पंचायत द्वारा परिवार को आर्थिक दंड, सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थिति का सामना करना पड़ता है। आटा-साटा एक ऐसी कुप्रथा है जो सदियों से राजस्थान के कुछ इलाकों में होती आ रही है। राजस्थान में फैली इस कुप्रथा को अगर हम आसान भाषा में समझे तो शादी के लिए लड़की के बदले लड़की देना ही आटा-साटा प्रथा है। यानी ‘‘बेटी दो बहू लो‘‘ से है। इस कुप्रथा में लड़के का पिता, भाई या अन्य रिश्तेदार जो भी लड़के का रिश्ता तय करता है तो बदले में लड़की के रिश्तेदार भी अपने लड़के के लिए लड़की की मांग करते हैं। ऐसे में भाई-बहन का रिश्ता एक ही घर में इस उद्देश्य से तय होता है कि दोनों घरों के लड़कों का रिश्ता तय हो जाए। कभी-कभी लड़के का रिश्ता तय करने के लिए उसकी भतीजी, भांजी या अन्य किसी रिश्तेदार की लड़की भी दी जाती है। इस प्रकार की शादी का चलन पीढ़ियों से चला आया है।

   समाज में इस कुप्रथा को एक तरह से दहेज-मुक्त विवाह व्यवस्था माना जाता है, क्योंकि इसमें आर्थिक लेन-देन बहुत कम होता है। परिवार यह मानते हैं कि इस तरीके से रिश्ते मजबूत होते हैं और खर्च भी घटता है। हालांकि इस कुप्रथा के अपने कुछ नकारात्मक पहलू भी है। यह कुप्रथा अक्सर दांपत्य जीवन और परिवारों के बीच तनाव का कारण बनती है। लड़के और लड़कियों दोनों का ही जीवन खराब होता है। वहीं अगर लड़की की बात करें तो लड़कियों को अपनी पसंद और नापसंद देखने का कोई अवसर नहीं दिया जाता है। जब लड़कियां बड़ी होती हैं और उन्हें इस बारे में बताया जाता है तो वो सदमे में होती हैं। कई मामलों में तो ये अदला बदली बचपन में ही कर दी जाती है। वहीं, दूसरी तरफ कई लड़कियां इस कुप्रथा में फंसकर अपनी पूरी जिंदगी ऐसे ही बिताने के लिए मजबूर हो जाती हैं। कई बार अदला बदली में ऐसे रिश्ते तय हो जाते हैं, जिसमें लड़की के मुकाबले में लड़के की आयु अधिक होती है। इस कुप्रथा के चलते घर में क्लेश, कुछ दिन लड़की का जाना फिर आना कानी करना, आत्महत्या करना, तलाक के मामले बढ़ना, बाल विवाह बढ़ रहे हैं। इसमें तीन से चार घरों की जिंदगियां उजड़ जाती हैं। कई बार लड़कियां के बाल्यकाल में रिश्ते तय हो जाते हैं, जो रिश्ते बाल्यावस्था में तय होते हैं वो कई बार पद और प्रतिष्ठा के बदल जाने के बाद या किसी परिवार के पिछड़ जाने के बाद आगे निकल जाने वाले को बराबरी के नहीं लगते। ऐसे ही कई बार बालिकाएं पढ़ लिख लेती है और लड़के अनपढ़ ही रह जाते हैं या विपरीत। दोनों ही अवस्था में एक पक्ष इस रिश्ते को स्वीकार करने को तैयार नहीं होता परिणामस्वरूप आटा-साटा दुखदायी हो जाता है।

   बाल व महिला चेतना समिति, भीलवाड़ा की अध्यक्ष तारा अहलूवालिया कहती है,” आटा-साटा कुप्रथा में दो परिवार अपने बच्चों का विवाह आपसी अदला-बदली के रूप में तय करते हैं। देखने में यह आसान समझौता लगता है, लेकिन असल में यह लड़का और लड़की दोनों की पसंद और आजादी छीन लेता है। लड़की को लेन-देन की वस्तु की तरह देखा जाने लगता है, और अगर एक रिश्ता टूटे तो दूसरे का भी टूटना तय हो जाता है। ऐसे नापसंदी के रिश्ते लड़का-लड़की दोनों के जीवन को नर्क बना देते हैं। अगर एक जोड़े में तालमेल बैठ भी जाए, तो दूसरे में जरा सी अनबन पूरे रिश्ते को तोड़ देती है। नतीजा यह होता है कि एक घर की कलह दो घरों की खुशियां छीन लेती है। यह प्रथा संविधान में दिए गए समानता और स्वतंत्रता के अधिकारों के खिलाफ है। विडंबना यह है कि जो  समाज  बेटियों को जन्म लेने से पूर्व ही गर्भ में मारने की सोच रखता है, वही समाज  बेटे के विवाह के लिए बेटी खोजता फिरता है। इसलिए आटा-साटा जैसी कुप्रथा न सिर्फ महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं, बल्कि घटते लिंगानुपात को और भी भयावह बना देती हैं-जहां बेटियों का अस्तित्व कम, और सौदे का अस्तित्व रह जाता  हैं।”

   आटा-साटा का रिश्ता परिवारों द्वारा समाज के मध्य तय होता है ऐसे में रिश्ता तो दो परिवारो की सहमति मात्र से तय हो जाता है किंतु इसे तोड़ना दो परिवारों तक सीमित नहीं रहता है जिसके कारण दोनों परिवारों और वर वधु की स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है। ना चाहते हुए भी रिश्ता निभाना होता है, जब बेमन जो रिश्ते जिंदगी भर निभाए जाए वो व्यक्ति के मन और जीवन पर बोझ बन जाते हैं। ऐसा बोझ कुरीति नहीं होगा तो क्या होगा?

   बहरहाल, समाज में लड़कियों की जनसंख्या लगातार घट रही है। इसका असर भी देखा जा रहा है। लड़कों की शादी करने के लिए लड़कियों का टोटा बना हुआ है। ऐसे में शादी के लिए इस प्रथा को कई साल से सहारा बनाया जा रहा है। ऐसे में अब वक्त आ गया है इस प्रथा के खात्मे का। सभी को एकजुट होकर ऐसे रिवाजों का परित्याग करना चाहिए। इस प्रथा को समाप्त करने के लिए हमें समाज में जागरूकता बढ़ानी होगी और लोगों को इसके दुष्परिणामों के बारे में बताना होगा। हमें लड़कियों के अधिकारों का सम्मान करना होगा और उन्हें समान अवसर प्रदान करने होंगे। कई सामाजिक संस्थाएं और शिक्षित वर्ग इस परंपरा को बदलने की दिशा में काम भी कर रहे हैं। शिक्षा के प्रसार और महिलाओं की जागरूकता से अब लोग समझने लगे हैं कि रिश्ता लेन-देन नहीं, बल्कि सहमति और सम्मान पर टिका होना चाहिए। आइए, हम सब मिलकर आटा साटा प्रथा को समाप्त करने के लिए काम करें और एक बेहतर समाज का निर्माण करें।

(लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)

(संपर्कः वार्ड नंबर 1, जोबनेर, जिला-जयपुर (राज) मोबाइल-9829165513

Leave a Comment

This site is protected by reCAPTCHA and the Google Privacy Policy and Terms of Service apply.

error: Content is protected !!