*कलम से क्रांति तक: डॉ. अंबेडकर की पत्रकारिता और मीडिया दृष्टि*

6 दिसंबर डॉ. भीमराव अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस 
      भारत के सामाजिक, राजनीतिक और वैचारिक इतिहास में डॉ. भीमराव अंबेडकर एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने समाज के हर वर्ग के लिए न्याय, समानता और मानवाधिकारों की लड़ाई लड़ी। वह सिर्फ संविधान निर्माता, अर्थशास्त्री, विधिवेत्ता और समाज सुधारक ही नहीं थे, बल्कि एक दूरदर्शी मीडिया चिंतक और पत्रकार भी थे। उन्होंने समझ लिया था कि जब तक विचार समाज के हर स्तर तक नहीं पहुंचते, तब तक परिवर्तन अधूरा रहेगा। इसलिए मीडिया को उन्होंने समाज परिवर्तन का एक सशक्त हथियार बनाया।
बाबूलाल नागा

डॉ. अंबेडकर का मीडिया से संबंध केवल लेखन और भाषण तक सीमित नहीं था। उन्होंने समाचार पत्र निकाले, लेख लिखे, जनसंवाद किया और मीडिया को दलित और वंचित समुदाय की आवाज बनाने का माध्यम बनाया। उनके द्वारा उपयोग किया गया मीडिया सिर्फ सूचना का साधन नहीं, बल्कि क्रांति का जरिया था।

     मीडिया को हथियार बनाने का दृष्टिको:- डॉ. अंबेडकर ने कहा था— “शिक्षित बनो, संगठित बनो और संघर्ष करो।” इस संघर्ष में शिक्षा के साथ विचारों का प्रसार सबसे आवश्यक था। इसलिए मीडिया उनके मिशन का अभिन्न अंग बना। उन्होंने देखा कि मुख्यधारा के अखबार दलितों और शोषित वर्ग की पीड़ा को जगह नहीं देते। ऐसे में उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारिता की दिशा में कदम बढ़ाया।
    अंबेडकर द्वारा प्रकाशित प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं:- अंबेडकर ने समय-समय पर कई पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कीं, जिनका उद्देश्य दलित समाज को जागरूक करना, सामाजिक संगठन को मजबूत बनाना और ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अन्यायों के खिलाफ जनमत तैयार करना था।
1.बहिष्कृत भारत :- 1927 में प्रकाशित इस पत्र के माध्यम से उन्होंने समाज के दबे-कुचले लोगों की समस्याएं उजागर कीं। यह पत्र दलितों के अधिकारों, शिक्षा, सामाजिक आंदोलन और राजनीतिक सुझावों का मंच बना।
2.मूकनायक (1920):- यह डॉ. अंबेडकर की पत्रकारिता यात्रा की पहली महत्वपूर्ण कड़ी थी। यह पत्र समाज के उन लोगों की आवाज बना जिन्हें बोलने का अधिकार नहीं था। “मूकनायक” नाम ही उनके उद्देश्य को स्पष्ट करता है—मूक समाज की आवाज बनना।
3.जनता (1930):- “जनता” के माध्यम से अंबेडकर ने दलित चेतना को और अधिक राजनीतिक रूप से सक्रिय किया। इसमें सामाजिक संघर्षों, आरक्षण, राजनीतिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े मुद्दे उठाए गए।
4.प्रबुद्ध भारत (1956):- बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद अंबेडकर ने “प्रबुद्ध भारत” के माध्यम से बौद्ध दर्शन, मानवता और समता के विचार समाज तक पहुंचाए। यह उनके वैचारिक आंदोलन का अंतिम लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण चरण था।
    मीडिया के माध्यम से विचारधारा का प्रसार:- अंबेडकर के लेखन में तार्किकता, तथ्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की प्रधानता थी। उन्होंने अपने विचारों को तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर प्रस्तुत किया। उनके लेखों में धर्म, राजनीति, समाज, अर्थशास्त्र और मानवाधिकारों पर गहरी समझ मिलती है। उन्होंने मीडिया के माध्यम से निम्न मुद्दों को प्रमुखता से उठाया-छुआछूत और जातिगत भेदभाव का विरोध, शिक्षा और आर्थिक संसाधनों में समानता, महिलाओं के अधिकार, लोकतन्त्र में हाशिये पर खड़े लोगों की राजनीतिक भागीदारी, श्रमिकों, किसानों और मजदूर वर्ग की आवाज। उनके विचार युवाओं को संगठित करने और सामाजिक क्रांति की दिशा में प्रेरित करते रहे।
     मीडिया और आंदोलन: क्रांति का सूत्रधार:- अंबेडकर ने जो मीडिया बनाया वह सिर्फ विचारधारा नहीं बल्कि सामाजिक आंदोलन के साथ जुड़ा था। महाड़ सत्याग्रह, मंदिर प्रवेश आंदोलन, गोलमेज सम्मेलन आदि संघर्षों में उनकी पत्र-पत्रिकाओं ने निर्णायक भूमिका निभाई।
     उदाहरण के रूप में: महाड़ सत्याग्रह (1927) में “बहिष्कृत भारत” की लेखन शैली और रिपोर्टिंग ने पूरे देश में क्रांति का स्वर पैदा किया। मंदिर प्रवेश आंदोलन में उनका मीडिया सामाजिक चेतना का वाहक बना।
     मीडिया और अंबेडकर का लोकतांत्रिक दृष्टिकोण:- अंबेडकर का मानना था कि मीडिया सिर्फ सूचना देने का माध्यम नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ है। लोकतंत्र तभी सफल हो सकता है जब मीडिया निष्पक्ष, वैज्ञानिक सोच वाला और जनसरोकारों के साथ हो। उन्होंने कहा था— “लोकतंत्र सिर्फ राजनीतिक संरचना नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना है।” मीडिया इस चेतना को जागृत करने का माध्यम था।
      आज के संदर्भ में अंबेडकर की मीडिया दृष्टि:- आज सोशल मीडिया, डिजिटल पत्रकारिता और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के दौर में अंबेडकर की सोच और भी प्रासंगिक है। जहां आवाज दबाई जाती है, जहांजातीय अन्याय होता है, जहां असमानता कायम है, वहां अंबेडकर की मीडिया दृष्टि न्याय की रोशनी बनकर सामने आती है।
    डॉ. भीमराव अंबेडकर के मीडिया संबंधी कार्यों ने भारतीय पत्रकारिता को नई दिशा दी। उन्होंने मीडिया को सत्ता का प्रवक्ता नहीं, बल्कि समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति की आवाज माना। उनके द्वारा स्थापित पत्रकारिता परंपरा आज भी दलित आंदोलन, मानवाधिकार संघर्ष और लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का आधार बनी हुई है।
       अंबेडकर ने मीडिया को सिर्फ अक्षरों में दर्ज विचार नहीं बनाया, बल्कि उसे सामाजिक क्रांति की धड़कन बना दिया। इसलिए कहा जाता है— “जहां न्याय की लड़ाई होगी, वहां अंबेडकर की कलम साथ चलेगी।”
*बाबूलाल नागा*
(लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)
संपर्क:- वार्ड नंबर 1, नागों का मोहल्ला, जोबनेर, जिला-जयपुर(राज.) मोबाइल:- 9829165513

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