हास्य व्यंग्य : मेरी एक तो तेरी दोनों आंखें फूटे

नहीं नहीं स्वयं को अब च्यवन ऋषि मत समझ लेना। कोई राजकुमारी आएगी और तुम्हारी दोनों आंखें गलती से फोड़ जाएगी
और बदले में उस दीमक से ढके हुए बूढ़े घूसट को सुंदर सुकन्या राजकुमारी मिल जाएगी। हां, माना लड़की जब पत्नी बन जाती है दोहरी भूमिका निभाती है। खैर अभी हम आंख में धूल झोंकने की बात कर रहे हैं ।नहीं नहीं, हम आंख फूटने की बात नहीं कर रहे हैं।दोनों में काफी अंतर होता है  आंखों में धूल झोंकने का काम विक्रेता बाजार में होता है। जबकि आंखें फूटने का काम क्रेता की असावधानी से होता है।जहां बाजार की चकाचौंध से धृतराष्ट्र नहीं वह गांधारी बन जाती है। गए होंगे इस त्योहार आप भी शॉपिंग करने। यह चमक यह दमक, मुफ्त डिस्काउंट, सबसे सस्ता सबसे अच्छा, पहले आओ पहले पाओ कानों में पड़ा होगा।
क्रेता सावधान रहें उसे कभी नहीं सुनता ।बाजार में जाते ही कानों को बस कीमत सुनाई देती है।श्रीमती मिश्रा भी हर बार कानों से निर्णय लेती है।बाजार से सस्ती चीज खरीद, स्वयं को तीस मार खां भी समझती है।घर आकर जब सामान देखती है।डिस्काउंट माल डिफेक्टिव निकलता है।तब सिर पकड़ कर मां को याद करती है।
मां कहती थी।महंगा रोए एक बार सस्ता रोए बार-बार। लेकिन  मैडम यह गलती हर बार करके रोती है। इस बार भी त्योहार आया  है। दरवाजे पर कोई आया है देखो तो। सांगानेर में सेल लगी है।सुमन ने जैसे ही मुस्कुराते हुए सखियों को यह बात बताई।
मानो उनकी तो लॉटरी ही लग गई।
चलो सखी उस शॉप पर जहां  परिधानों का राज, दर्शन करें डिस्काउंट पाए कितना मनोहारी काज और सभी सखियां सज- धज कर हवा सड़क से बात करते  फराट्टे से निकल पड़ी। रास्ते भर यही खुसर-पुसर करते,कहा था ,उसने। सुनो ना प्रिये मेरी सहेली बता रही थी।  फलाने मार्केट में साड़ी और सूट बहुत सस्ते हैं। कुछ शॉपिंग करवा  ले आओ। क्षमा करो भाग्यवान, मेरे पास तो समय नहीं। सखियों के साथ चली जाना, कहते हुए पति ऑफिस के लिए निकल गए।कोई बात नहीं, वैसे भी हमें उनके साथ जाना भी कहां था। तेज ठहाके के साथ सभी हंसते हुए। शहर के  परकोटे को छोड़ दूर 20 किलोमीटर काली कोस तिसरे तिवाड़े पेट्रोल फूंक कर डिस्काउंट शॉपिंग करने पहुंची। अचानक सहेली ने गाड़ी को एक शोरूम नुमा दुकान के आगे रोका। तुरंत सब सखियां भूखी शेरनी  की भांति शॉपिंग पर टूट पड़ी।
मैडम यह फिक्स रेट की दुकान है। कोई सैकड़ों सूट के बाद एक आद सूट पसंद आया। भैया क्या कुछ भी कम नहीं करेंगे? हम इतनी दूर से आए हैं। उधर दुकानदार  तिरछी नजरों से मन ही मन मुस्कुराया, महिलाएं तो होती ही मूर्ख है। पूरा मार्केट इनकी मूर्खता पर ही तो टिका है।नहीं मैडम, यह थोक बाजार की फिक्स रेट  दुकान है। यहां खुदरा माल इतने में ही मिलेगा। अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोचें वाली मिश्रा मैडम की बारी आई।मुआ हमको मूर्ख समझता है? अब तक बहुत बह चुका पानी, अब ना तुम्हारी दाल गलेगी। मन ही मन सोचते हुए बोली।
अच्छा चलिए बिल बनाइए। बिल; बिल का नाम सुनते ही मानो समझदार चूहा बिल में घुस गया हो।अरे मैडम,  हम तो आपके फायदे की ही बात कर रहे थे।बिल बनवाओगी तो जीएसटी लगेगा, ज्यादा पैसा देना होगा। मैडम ने अब,कड़क लहजे में कहा आप बिल बनायें।बाहर खड़ी सहेलियां इंतजार कर रही है।अरे यार, तू भी किस  चक्कर में फंस गई। वह हंसी और बोली, मेरी एक आंख तो उसकी दोनों फूटनी चाहिए।हाहाहाहा …. सभी खिलखिलातीं हुए दूसरी दुकान में घुस गई। हां, यार यह बात तो तू सही कह रही है।बिल के नाम से ही उसका मुंह देखने लायक था। जागो देवियों जागो, देखो।देव जाग गए।कुंभकरण भी जाग गया।
क्रेता तुम कब तक सोए रहोगे?
-एकता शर्मा, रायपुर छत्तीसगढ़

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