अभिनेता-निर्देशक टीनू आनंद की वजह से अमिताभ बच्चन को उनकी पहली फिल्म ‘ सात हिंदुस्तानी ‘ में काम करने का मौका मिला….//

जी हां, अब तो शायद बहुत थोड़े फिल्म प्रेमी ही होंगे जो इस बात से अंजान होंगे कि अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म का नाम ‘सात हिंदुस्तानी’ है। जो सन् 1969 में प्रदर्शित हुई थी। अमिताभ बच्चन को इस फिल्म के मिलने के पीछे भी एक मजेदार किस्सा है।
किस्सा कुछ यूं है कि फिल्म के निर्माता-निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास ‘सात हिंदुस्तानी’ नाम से फिल्म का निर्माण शुरू करने जा रहे थे। लगभग सभी कलाकारों का चयन हो चुका था। शूटिंग चालू होने में अभी समय था सात हिंदुस्तानियों की भूमिका के लिए कंमश: अभिनेता टीनू आनंद; उत्पल दत्त, जलाल आगा, मधुकर, शेहजाद, अनवर अली तथा टी.पी. गज्जर का चयन हो चुका था।
फिल्म की शूटिंग शुरू होती इससे पहले हुआ यूं कि टीनू आनंद को कलकत्ता से महान निर्माता-निर्देशक सत्यजीत राय की तरफ से खबर आई कि जितनी जल्दी हो सके वे सत्यजीत राय की निर्देशन- टोली में शामिल होने के लिए कलकत्ता ( अब कोलकाता) पहुंच जाएं। दरअसल टीनू आनंद को फिल्म निर्देशन में विशेष रूचि थी इसलिए निर्देशन का प्रशिक्षण लेने के लिए उन्होंने सत्यजीत राय से निवेदन कर रखा था। इसलिए उन्हें उनकी तरफ से बुलावा आया था।लेकिन इधर वे फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ फिल्म के लिए अनुबंधित हो चुके थे। अत: कलकत्ता जाने के लिए इस बात की सारी जानकारी सात हिंदुस्तानी के लेखक, निर्माता-निर्देशक ख्वाजा अहमद अब्बास को देनी जरूरी थी। टीनू जी अब्बास जी से मिले उनकी सारी बात सुनने के बाद अब्बास साहब ने कहा कि वे कलकत्ता जा सकते मगर यह उनकी जिम्मेदारी होगी कि ‘सात हिंदुस्तानी’ के लिए उनके स्थान पर किसी कलाकार को उन्हें ही लाना होगा तभी वे जा सकते हैं।
उन्हीं दिनों अमिताभ बच्चन कलकत्ता से बंबई आकर फिल्मों में काम पाने के लिए हाथ पैर मार रहे थे। ये बात टीनू आनंद को मालूम थी। उन्होंने अमिताभ से बात की तो वे उस फिल्म में काम करने को राजी हो गए। पर अंतिम निर्णय तो अब्बास जी को करना था। तय हुआ कि अब्बास जी से मिला जाए। टीनू आनंद अमिताभ बच्चन को लेकर अब्बास जी के आफिस पहुंचे साथ में अमिताभ के भाई अजिताभ भी हो लिये थे। आफिस पहुंचकर टीनू आनंद यहले आफिस में गए और थोड़ी देर बाद बाहर आकर बोले कि काम तो मिल जाएगा पर अब्बास जी ने कहा है कि वे सिर्फ पांच हजार ही देंगे। इस पर दोनों भाई बोले क्या हम अब्बास साहब से मिल सकते हैं? टीनू आनंद के हां कहने पर दोनों भाई अंदर गए। फिल्म से संबंधित जरूरी बातों के साथ अब्बास जी ने मेहनताना की बात पर उन्होंने पांच हजार रुपये की ही पेशकश की। उन्होंने कहा, चूंकि यह छोटे बजट की फिल्म है इसलिए मैं सिर्फ पांच हजार ही दे सकूंगा इस पर दोनों भाईयों ने हामी भरी और आफिस से निकल आए।
तो इस तरह अमिताभ बच्चन टीनू आनंद की जगह फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में काम करने का अवसर मिला। और टीनू आनंद अमिताभ को सिनेमा के पर्दे पर लाने की वजह बने। बाद में टीनू आनंद ने अमिताभ को 1981 में ‘कालिया’ 1988 में ‘शहंशाह’ , 1989 में ‘मैं आजाद हूं’ और 1998 में ‘मेजर साब’ जैसी फिल्मों में निर्देशित भी किया।
तो ये था सदी के महानायक द्वारा सिनेमा की पहली पायदान पर कदम रखने का किस्सा…
आशा करता हूं रोचक लगी होगी। यहां तक आप आए इसके लिए अपना कीमती समय दिया। शुक्रिया अदा करता हूं। आभारी हूं , प्यार-मोहब्बत भरा ताल्लुक बनाए रखिएगा, अभी तो चलता हूं फिर मिलूंगा.
श्याम कुमार राई ” सलुवावाला “