धुन मिलन की छेडती हूं।
गीत विरह के बन जाते हैं।।
सोचती हूं साथ बिताए वे सुनहरे पल।
और दर्द उभर कर आता है।।
होठों पर हंसी को संजोती हूं।
और आंखों का दर्द छलक जाता है।।
लाख कोषिष करती हूं तुझे भूल जाउं।
पर याद तू और ज्यादा आता है।।
-सुधा तिवाडी, भीलवाडा
