
भाई जी इन दिनों बड़े आशावादी है, मतलब कि उम्मीद से है कि बजट आने वाला है.
… उनकी यह उम्मीद हर वर्ष ठीक उसी तरह होती है जैसे जब उनकी पत्नी
उम्मीद से होती थी कि बेटा आनेवाला है और बेटा आने के बाद उम्मीद यकीन में बदल
जाती थी कि बेटा नही बाप आया है .. वैसे ही बजट की यह उम्मीद हर बार इसी
यकीन से तब्दील होती है.. बजट आया नही ,बिगड़ गया है.
फिलहाल बजट आने वाला है भाई जी सुबहें-सुबहें अखबार को चाटने की
हद तक पढ़तें है. उस के समाचार पढतें है, विज्ञापन पढ़तें है, साथ-साथ
राशिफल भी …! समाचार बताते है बजट आयेगा, विज्ञापन दिखाते है बजट कैसा
आयेगा, राशिफल समझाता है कि वो तुम्हारे साथ क्या सलूक करेगा…पर भाई
जी सब कुछ जान कर अनजान बनें हुऐ, वे इस विश्वास के साथ अखबार खोलते है
कि अखबार बजट ऐसे ही देकर जाएगा जेसे होक़र अखबार देकर जाता है…
दिन भर के काम-काज बजट की फिक्र मे छुट जाते है
और उन का बजट काम – काज की फिक्र में कहीं का नहीं रहता .वे शाम को भी टीवी
के सामने आंखे गड़ाकर बजट को देखते है . इस आशंका के साथ देखते है कि कही
बजट आ ना गया हो .. आ कर चला गया हो ..हांलाकि वे जानते है कि बजट की टाइमिंग
बड़ी सटीक है वो समय से आता है . .. और आ कर चला जाता है … पर एक आदर्श
भारतीय होने के नाते बजट का इंतज़ार भाई जी का राष्ट्रीय दायित्व है.
भाई जी राष्ट्रीय मसले पर कभी किसी से समझोता नही करते है .. फिर आने
को तो हर साल सर्दी भी आती है ,बारिश भी आती है ,सर्दी मे ठिठुरने या
बारिश में भीगने का मजा नही है जो उन के इंतज़ार मे है ठीक बजट की तर्ज़
पर!
हालाकि बजट हर साल आता है, आकर चला जाता है और भाई जी समाचार मे उसे
निहारते है, विचारो मे विचारते है, पर वे जहाँ के तहां वही खड़े रहे जाते है, बजट आया चला गया
और वे उसे सड़क पे खड़े-खड़े सलाम बजाते रहे, वो तो
बाद मे पता चलता है कि वे बजट के कारण ही सड़क पर आए है,
……..इसलिए भाई जी को बजट से लेकर गजट तक हर सरकारी दस्तावेज, सड़क
छाप कह कर आगे बढ़ जाते है.
लेकिन भाई जी का कर्त्तव्य ज्ञान .. ……. कर्म किये जा
फल की इछा मत कर … पर सदा आगे गतिवान है. प्रधानमंत्री से लेकर पार्षद
तक किसी के हाथ में कागज़ के टुकड़े मे वो बजट की ही छवि देखते है ,
बाद मे पता चलता है कि ये तो पुराने चुनावी भाषण का नया कागजी संस्करण है,ऐसा
नही कि भाई जी बजट के मामले मे सत्ता पक्ष पर ही निर्भर है, वे विपक्ष को
भी पूरी तरहे तवज्जों देते है, क्यौकि वो ही तो बताते है की बजट कहाँ
से आया….कहाँ गया…. अर्थात कि बजट का आना – जाना अपनी जगह है पर उसके
रास्ते पक्ष और विपक्ष दोनों मिल के बनाते है.
भाई जी इस रास्ते को समझने की कोशिश करते है.. बजट समझाता है बजट …
मतलब रूपया .. रूपया कहाँ से आता है ….. लक से, कर्ज से, योजनाओ से कहाँ
जाता है .. विकास मे , रक्षा मे .. रुपये के आने – जाने के बीच सरकार होती है
भाई जी समझ नही पाते है. वे जानते है कि सरकार चुंगी नाका है जहाँ से बजट
गुजरेगा, उसी चिंता मे कि केसे गुजरेगा….? भाई जी खुद गुजर रहे होतें हैं.
भाई जी विद्वान् है, उन का अपना अर्थशास्त्र है, वे बजट पर
अपनी भविष्यवाणी करतें हैं, तर्क के साथ करते है, बजट आने से महगाई बढेगी,
बेरोजगारी बढेगी , उत्पादन घटेगा .. अमीर -ओर अमीर और गरीब ओर गरीब होगा ,
वे खुद क्या होंगे पता नही . क्योंकि वो दुसरो कि नजरो मे अमीर और खुद की
नज़र मे गरीब है यानि नजर – नजर के फेर मे वो अमीर और गरीब दोनों साथ
बने रहेंगे!
वे किसी शादी मे आइसक्रीम की स्टाल पर भीड़ देख कर बता सकते
है कि इस बार फ्रीज़ के भाव बढेंगे … केंसर मरीजो की मौत का आंकड़ा आंक कर
बता सकते कि तम्बाकू पर टैक्स में कितनी छुट मिलेगी,
शहर मे दो चार एक्सीडेंट देखकर उन्हें अंदाजा हो जाता है
कि जिंदगी सस्ती और गाड़िया महेंगी हो जाएगी, वे इन्काम टेक्स मे छूट
का अंदाजा इस बात से लगा लेते है इन्काम टेक्स चोरी करने वाले कितना देकर
छूट गये …
वे जानते है कि बजट मे क्या आयेगा, पर फिर भी इंतज़ार करते है …
आज ग़ालिब होते तो लिखते” उन्हें मालूम है बजट कि हकीकत … लेकिन दिल को
बहलाने का ये इंतज़ार अच्छा है ….” भाईजी फिलहाल बजट का इंतज़ार कर रहे हैं..चलो हम भी करतें हैं.