![केशवराम सिंघल](http://ajmernama.com/wp-content/uploads/2013/02/keshav-ram-singhal.jpg)
मेरे मन में अकसर प्रश्न उठ खड़ा होता है – भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर संयुक्त राष्ट्र के निगरानी दल के जमे रहने का औचित्य क्या है? यह प्रश्न स्वाभाविक भी है क्योंकि भारत कश्मीर मसले पर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकारता रहा है और भारत नहीं चाहता कि इस मसले का अंतरराष्ट्रीयकरण हो. पर वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र का निगरानी दल – यू.एन.एम.ओ.जी.आई.पी.(United Nations Military Observer Group in India and Pakistan) – भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के लिए कई दशकों से तैनात है. जैसा ज्ञात हुया है, इस दल में विभिन्न देशों के अनेक सैनिक पर्यवेक्षक, अंतरराष्ट्रीय सैन्यकर्मी और स्थानीय असैन्यकर्मी मौजूद हैं. इस दल का मुख्यालय मई से अक्टूबर तक श्रीनगर में और नवंबर से अप्रैल तक इस्लामाबाद में रहता है. इस दल की तैनाती संबन्धी जानकारी संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर उपलब्ध है. कश्मीर में भारत-पाक के बीच मौजूद नियंत्रण रेखा तक यू.एन.एम.ओ.जी.आई.पी. की गाड़ियाँ बेरोकटोक आती-जाती हैं. वर्तमान में रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया के मेजर-जनरल यंग-बूम चोई इस निगरानी दल के प्रमुख हैं. भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर संयुक्त राष्ट्र का निगरानी दल – यू.एन.एम.ओ.जी.आई.पी.- का पहला जत्था 24जनवरी 1949 को आया था, जिसका काम भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर निगरानी रखना था, ताकि दोनों देशों के बीच संघर्ष ना हो पाये. पर वास्तव में इस निगरानी दल के रहते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच 1965, 1971और 1999 में युद्ध हुया. इसके अलावा पाकिस्तान ने कश्मीर के विवादित क्षेत्र में से 5130 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र ग़लत तरीके से चीन को दे दिया और हम देखते ही रह गए. पाकिस्तान ने इस दल को कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण का माध्यम बना रखा है.
सवाल उठता है कि यू.एन.एम.ओ.जी.आई.पी. की भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर जमे रहने की प्रासंगिकता और जरूरत क्या है? भारत सरकार क्यों नहीं यू.एन.एम.ओ.जी.आई.पी. को इस क्षेत्र से हटने को कहती है?
– केशव राम सिंघल
यून्यूज़ (‘UNews’) यूएन इंफोर्मेशन सेंटर (UN Information Centre), नई दिल्ली का मासिक सूचना-पत्र है, जिसके फरवरी 2013 अंक में यूएनएमओजीआईपी के प्रमुख मेजर जनरल यंग-बूम चोई का एक साक्षात्कार प्रकाशित हुया है, जिसमें मेजर जनरल यंग-बूम चोई कहते हैं:
“UNMOGIP has a long history – since 1949 – and its mission here is very clear. The UN mandate 307 which was issued in 1971 was to supervise along Line of Control and report back to UN headquarters. I know that since the 1972 Shimla Agreement, the Indian government’s standpoint is different: Which is that India does not need UNMOGIP any more ….. UN’s position is that UNMOGIP could be terminated only by a decision of the Security Council. The Shimla agreement does not supercede the UN mission here until another UN resolution for terminating the mission is issued. … But the Pakistani side does not have the same point of view as the Indians have! That is the issue. …”
इस प्रकार यह स्पष्ट होता दिखता है कि यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव और सुरक्षा परिषद के निर्णय के बिना हल होने वाला नहीं है.