भ्रष्टाचार पर आन्दोलन से आगे अन्ना पार्ट-2 /

केजरीवाल के एक पृष्ठ बाद! पार्ट-2
यह भाग भ्रष्टाचार की जड़ की जकड़न और समाजिक स्थिति को समझने की एक छोटी सी कोशिश है। वैसे तो देश में भ्रष्टाचार का मुद्दा आये दिन गहराता जा रहा है। केजरीवाल का दिल्ली में धरना इसका ताजा उदाहरण है। वर्ष 2012 को अगर हम घोटाला उजागर वर्ष कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिये। प्रश्न हमेशा ही उठता रहा है कि क्या जनता भ्रष्टाचार को लेकर जिम्मेदार है अथवा नहीं? क्या जिम्मेदारी सिर्फ जनता की है या सिर्फ सरकार की। तो पहले हम समाज को विपक्ष में रखकर देखते है।
समाज के विपक्ष में .

विकास कुमार गुप्ता
विकास कुमार गुप्ता

भ्रष्टाचार का असली जिम्मेदार क्या समाज ही है? समाज का यह कथन की हम क्या कर सकते है? बहुधा असत्य प्रतीत हो रहा है। प्रश्न उठता है आखिर समाज जिम्मेदार क्यों है? तो अनेको ऐसे तथ्य हैं जिससे साबित होता है कि समाज ही जिम्मेदार है। माफियाओं, बाहुबलियों को आखिर चुनाव में कौन जीताता है? ईमान का ग्लैमर के पीछे फीका पड़ने में क्या समाज उत्तरदायी नहीं है? आज समाज ग्लैमर के पीछे इतना दिवाना हो चुका है कि अगर लैला-मजनूं होते तो उनको शर्म आती। अरस्तु की माने तो ‘मनुष्य एक समाजिक प्राणी हैं’ और ‘समाज का निर्माण मनुष्य ही करता है’ तब जो समाज का वर्तमान ढांचा जो व्याप्त है उसको लेकर कहीं न कहीं समाज ही जिम्मेदार है। इससे यह भी परिलक्षित हो जाता है कि मनुष्य ही समाज की स्थिति के लिए जिम्मेदार है। और जैसा हमारे समाज की अपेक्षाये है मनुष्य से, तो मनुष्य उसकी पूर्ति भी सही तरीके से कर रहा है। इससे इतर हमारे समाज ने परिभाषायें गढ़ ली है कि सफल वहीं है जिसके पास पैसा है, पदवी है आदि-आदि’’। लेकिन समाज ने उन पैसों के सृजन में होने वाले कृत्य के प्रति अपनी तीसरी आंख बन्द कर रखी है। इसको आखिर हम क्या कहेंगे? यहीं न समाज भी आंखे मूंदे हुये है। और अंततः समाज की अपेक्षाओं पर जो खरा नहीं उतर रहा उसका हश्र इस नव समाज में क्या हो रहा है? वह किसी से छुपा भी नहीं है। ईमानदार असफल व्यक्ति को समाज क्या तवज्जों दे रहा है उसे बताने की आवश्यकता नहीं। मेरा नाम जोकर समेत सैकड़ो फिल्मों में यादगार रोल करने वाले संतोष खरे कुछ दिनों पहले हजरतगंज, लखनऊ स्थित हनुमान मन्दिर के सामने लोगों के सामने हाथ फैला कर भीख मांगते नजर आये। उनके परिवार वाले सरकारी नौकरियों में है लेकिन उन्हें कोई नहीं पूछ रहा। आज समाज परिवारवाद और संयुक्तता को दरकिनार कर व्यक्तिवाद, अलगाववाद, एकान्तवाद आदि सिद्धान्तों को बहुधा अपनाने लगा है। अपार्टमेन्ट लाईफ इसका सटीक उदारण हो सकता है। कहा जाता है कि जुल्म करने वाले से ज्यादा जुल्म बर्दाश्त करने वाला जिम्मेदार होता है। आज समाज भेड़ांे से भी बद्दतर तरीके से टेªनों, बसों में यात्रा करता है। लेकिन आवाज नहीं उठाता। थानों, कचहरी, सरकारी कार्यालयों में घूस देकर भी चुप रहता है। छुटभैये माफियाओं की दादागीरी से लेकर अनेकों मामलों में समाज मौन बनाये रखता है। रेहड़ी वाले, ठेले वाले, पान की दूकान से लेकर हर वो दूकान जो सरकारी जमीन पर है, बहुधा थानों के रहनुमाओं को कमीशन देते ही है। और साथ ही अपने ही लोगों पर अत्याचार, जुल्म होते देखकर मजे भी तो यही समाज लेता है। अतः हम कह सकते है कि  समाज भी वर्तमान समाज के ढांचे के लिए जिम्मेदार है।
समाज के पक्ष में
कहा जाता है कि समाज का काम शासन करना नहीं वरन शासित होना है। व्यवस्था प्रबंधन का कार्य शासन-प्रशासन और समाज के रसूखदार लोगों के लिये है। आम आदमी तो हमेशा ही मजबूर होता है। ट्रेन में जगह नहीं है अथवा यात्रियों की हिसाब से ट्रेने कम है तब आम आदमी मजबूर है भेड-बकरियों की तरह यात्रा करने के लिये। कई बार तो ऐसा भी देखा जाता है कि आम आदमी को जबरन मजबूर किया जाता है। चाहे ट्रेन हो अथवा कोई अन्य सार्वजनिक यात्रा के साधन। बात मार-पीट तक पहुंच जाती है लेकिन टेम्पों और अन्यों को पता है आम आदमी जायेगा नहीं तो करेगा क्या? तो यह धंधा चल ही रहा है? कदम-कदम पर भ्रष्टाचार के ऐसे अनेको उदाहरण है कि आम आदमी मजबूर हो जाता है। सरकारी नौकरी, टेण्डर अथवा कुछ भी हो। पाने वालों की सूची बहुत लम्बी है। लोग कमीशन ले-लेकर लाईन में लगें है। दूसरा नहीं तो तीसरा और तीसरा नहीं चाौथा खड़ा है कतार में। तो समाज मजबूर होकर पैसे ले-देकर अपनी स्थिति मजबूत कर लेता है। और उसे डर भी है कि अगर हमारी स्थिति कमजोर हुयी तो फिर इस दोगलेपन की मानसिकता वाले समाज में जीना दूभर हो जायेगा। अतः हम कह सकते है समाज से ज्यादा जिम्मेदार शासन-प्रशासन है। एक पक्ष यह भी है कि आजादी पश्चात् देश में चाणक्य टाईप के दूरदर्शी लोगों की नगण्यता थी जो अंग्रेजों और वैश्विक स्तर की साजिश और षडयंत्र को मात दे पाते जिसके फलस्वरूप आज हमारे रुपयें की कीमत वैश्विक स्तर 56 गुना कम हुईं। जो निर्यात हम 56 में करते उसकी कीमत हम 1 ले रहे हैं।
वर्तमान समाज का रहस्य
पहले गीता रहस्य के बारे में आपने सुना होगा। क्योंकि गीता में बहुत से ऐसे गूढ़ रहस्य बताये जाते है जो अच्छे-अच्छों के समझ से बाहर हैं। और अनेकों टीकायें इसकों समझाने के लिये लिखी जा चुकी है। वैसे ही आज के समाज का रहस्य भी समझना नितांत आवश्यक हो गया है। समाजिक प्रतिद्वंद्विता के दौर में जिस समाज में हम रह रहे हैं कम से कम उसको थोड़ा-बहुत समझना तो चाहिये ही। वर्तमान में समाज के पांच मुख्य प्रकार है हालांकी इन पांचों वर्गाे में बहुत सारे अपवाद भी है।
पहले स्थान पर है देश के राजनीतिक वर्ग और टॉप के मीडिया रसूख वाले लोग। इनके लिये कोई भी नियम-कानून लागू नहीं। जो जी में आये करों सब माफ। मतलब सात खून माफ। और इनके समूह में चमचागीरी की पाठशाला के अनेको गणमान्य प्रोफेसरों की लम्बी कतारें हैं। समाज के अन्य वर्गों में यहीं से चाणक्य नीति की समझ और अनेकों अपरम्पार कर देने वाली लीलायें भी समय-समय पर पहुंचती रहती है।
दूसरे है सरकारी वर्ग के आई.ए.एस. स्तर के लोग। तो इनके लिये अंग्रेजी व्यवस्था की अपने कर्मचारियों के उपर लागू की गयी दरियादिली वाला कानून लागू है। अतः किसी मामले में फंस जाने पर भी इनके मरने तक मुकदमें चलते रहते है और इनकी नौकरी भी चलती रहती है। और अगर कोई सरकारी वर्ग देश के राजनीतिक के करीबी है तब पूछना ही क्या इनके उपर भी सात खून माफ वाला कानून प्रभावी हो जाता है। और इनके समाज में सबसे बड़ा रहस्य है चमचागीरी का जोकि देश के राजनीतिकों से इन्हें विरासत में मिला है। क्योंकि प्रमोशन और अन्य भत्ते अथवा कमीशन में ज्यादा हिस्सेदारी के लिये ओहदा बड़ा होना चाहिये तो ये जिन्दगी भर इसी फिराक में रहते है। और इनके लिये भी चाहे जो हो करते रहो, देश आजाद है और देश के सरकारी और राजनीतिक भी आजाद है। इनका एक ही मंत्र है-जैसे भगवान की आरती करने से भगवान खुश होते है वैसे ही ओहदे में रसूख वालों लोगों की आरती करते रहो नैया पार हो जायेगी।

तीसरे है पूंजीपति। देश की आर्थिक ताकत अपने बाजुओं में समेटे इन लोगों का एक ही प्रोटोकॉल है। जो भी देश का राजनीतिक और सरकारी वर्ग के हो उसकी आरती करते रहो और हड्डी पकड़ाते रहो। खुद भी लूटों और लूट का हिस्सा उन्हें भी देते रहो। नैया नदी की धार में बहती रहेगी। सोसायटी में इनके पीछे देश के राजनीतिक और सरकारी वर्ग लगे रहते है पैसों के लिये। तो ये पैसों को ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने की हर जुगत करते है। ताकि राजनीतिक और सरकारी वर्ग की कमीशन पूरी की जा सके।
चैथे में आम वर्ग है। इस वर्ग में छोटी मोटी बिना घूस की नौकरी वाले लोग। साधारण व्यापारी और छोटे-मोटे मीडिया के लोग आते है। इनमें होड़ लगी है कि कैसे ऊपर के तीन वर्गों में शामिल हो जाये। चैथे समाज से ही लोग उपरोक्त तीनों समाजों में पहुंचते रहते है। यह वर्ग हैरान, परेशान है। कभी इस वर्ग का झुकाव अध्यात्मवाद की तरफ तो कभी सांख्यवाद की तरफ तो कभी पूंजीवाद की तरफ। इस चैथे समाज की डोर हमेश पूंजीपति@राजनीतिक और सरकारी वर्गों के के हाथों में रहता है और वे ससमय इनका प्रयोग करते है।
पांचवां वर्ग वह जो जिसका ना तो कोई पता है ना घर। यह फूटपाथ पर ही रहता है।
विकास कुमार गुप्ता

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