हम लोग सबसे हल्का काम कर रहे है ….आलोचना…हां हो सकता है आन्दोलन में कुछ गलतीयां हो सकती है संचालन में कमी या फिर मेरी बात कहुं तो आज भी देश तैयार नही इन आन्दोलन के लिये ।……अगर ये आन्दोलन फेल हुआ है तो ये हमारी हार है ….जो वातावरण उन्होने बनाया है वो काबिले तारीफ था….. मै यहां उनकी इस दाैर मे इतनी सी बात को सबसे बडा सम्मान मानता हुं ….आज हम सब कुछ खो चुके है…..आज अन्ना की टीम भष्टाचार कि पहली दहलीज पर धोषणा कर दी है।
जे पी के आन्दोलन का चेहरा लालु हमे याद है ये शुरूवात है दोस्त अब देखो ये बईमान कितनी ईमानदारी से इस देश का सत्यानाश करते है। हमे आलोचना इस बात कि करनी चाहीये प्रतिष्ठित ‘टाइम’ पत्रिका ने देश की सुस्त आर्थिक विकास के लिए प्रधानमंत्री और उनकी सरकार की आलोचना की है।
इसका असीम उदाहरण ये लो अभी….
अन्ना निकले राजनीति पर… इस बीच यह खबर आ रही है कि अब मॉनसून सत्र में लोकपाल बिल पर चर्चा नहीं होगी.
अन्ना का आंदोलन हुक्म रानों को जगाने का आंदोलन बना क्योकि आम जनता भ्रष्टाचार से त्रस्त है । आंदोलन बनाम संसंद के युद्ध से सब नेता लाम बद्ध हो गए । संवाद का सेतु टूट गया बुद्धिजीवियों ने विकल्प की बात सुजाई । जी न्यूज ने एसएमएस पोल करवाया और अन्ना ने विकल्प देने की घोसणा की ——–आगे सारी बात जनता की अदालत में
जय भारत !
वो कहते फिर रहे हैं, वो जीत गए
हमने कहा जीत, तुम्हारा भ्रम है
ये भ्रम हारने का, पहला क्रम है
अरे ना समझो, एक पैर पीछे लेना जोर से दौड़ने की निशानी है
इतनी नादानियों के बाद ऐसा सोचना, तुम्हारी एक और नादानी है
खैर तुम्हारी तुम जानो, हम तो ब
स इतना जानते हैं
ये सिर्फ एक आन्दोलन नहीं
आम भारतवासी के लिए उम्मीदों की नयी सहर है
एकजुटता से ही कोई मुल्क मुकम्मल होता है
ये मुकम्मल होते भारत का पहला पहर है
कितने ही सैलाब खड़े हैं, कितने ही तूफां बाकी हैं
अभी तो ये दरिया की छोटी सी लहर है…:)
सरकार बहरी हो गयी.. विपक्ष नपुंसक हो गया.. बहुत से बुद्धिजीवी पैदा हो गए अचानक से और कहते हैं कि इन्हें अनशन नहीं तोडना चाहिए था..खुद एक दिन व्रत रहने में हाथ-पाँव फूल आते हैं और ७४ साल का बूढा,शुगर के दो मरीज़,एक विकलांग अनशन पर बैठा है १० दिनों से.. तब कोई कुछ नहीं कहता पर उनके अनशन तोड़ने का विरोध होता है.. देश के २३ गणमान्य व्यक्तियों ने कहा कि तोड़ लीजिये अनशन और पोलिटिकल पार्टी बनाइये तो हाय-त
ौबा मची है ?? अनशन समाप्त करके पोलिटिकल पार्टी बनाने के कदम पर मैं सिर्फ यही कहना चाहूँगा..
वो कहते फिर रहे हैं, वो जीत गए
हमने कहा जीत, तुम्हारा भ्रम है
ये भ्रम हारने का, पहला क्रम है
अरे ना समझो, एक पैर पीछे लेना जोर से दौड़ने की निशानी है
इतनी नादानियों के बाद ऐसा सोचना, तुम्हारी एक और नादानी है
खैर तुम्हारी तुम जानो, हम तो बस इतना जानते हैं
ये सिर्फ एक आन्दोलन नहीं
आम भारतवासी के लिए उम्मीदों की नयी सहर है
एकजुटता से ही कोई मुल्क मुकम्मल होता है
ये मुकम्मल होते भारत का पहला पहर है
कितने ही सैलाब खड़े हैं, कितने ही तूफां बाकी हैं
अभी तो ये दरिया की छोटी सी लहर है.
-दीपक पारीक (एडवोकेट)